साल 2015 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अथक प्रयासों के बाद पाकिस्तान से भारत लौटने वाली गीता अब आखिरकार महाराष्ट्र के परभानी में अपने परिवार से मिल चुकी हैं। 9 साल की उम्र में वह गलती से पाकिस्तान चली गईं थी। लेकिन 2014, मोदी सरकार के आने के बाद जब सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्री का पद संभाला तो मात्र एक साल में उन्होंने गीता को वापस लाने की कोशिशें तेज कर दीं और एक दिन पता चला कि गीता भारत लौट चुकी हैं। लेकिन उनको अपने परिवार से मिलाने का सपना सुषमा जी के जीते जी पूरा नहीं हो पाया था। जो अब पूरा हुआ है।
गीता के परिवार को ढूँढने की शुरुआत
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2015 में 24 साल की गीता को भारत लाना शायद इतना चुनौतीपूर्ण काम नहीं था, जितना कि उसके परिवार को भारत में ढूँढना था। गीता सिर्फ़ सांकेतिक भाषा में बात कर सकती थीं। वह बचपन से ही सुनने व बोलने में असमर्थ थीं। घर छोड़े भी उन्हें इतना समय हो गया था कि बस ये याद था कि उनके घर के बाहर एक रेलवे स्टेशन था और गन्ने के खेत थे। गीता के घरवालों को ढूँढने में पिछले कई सालों से कई एनजीओ व कार्यकर्ता जुटे हुए थे।
शुरूआत में उनकी कहानी सुन कई लोग भिन्न-भिन्न राज्यों से संपर्क में आए। सबका दावा था कि वह गीता के रिश्तेदार हैं। हालाँकि, कोई अपने दावों को सत्यापित नहीं कर सका। दो बार तो बातें डीएनए टेस्ट तक भी पहुँची लेकिन रिजल्ट नेगेटिव आए। नतीजन गीता के परिवार को ढूँढने का प्रयास जारी रहा। इस बीच गीता ने भी समय का सदुपयोग किया। उन्होंने सांकेतिक भाषा और अन्य कौशल की ट्रेनिंग ली।
जब वह भारत आईं तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनके परिवार को ढूँढने का वादा किया। साथ ही यहाँ तक कहा कि यदि परिवार नहीं भी मिला तो गीता का कन्यादान वह स्वयं करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि उसके बाद से गीता 25 से ज्यादा रिश्तों के लिए मना कर चुकी है। टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि गीता की मदद करने वाली सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि गीता एक स्वतंत्र महिला हैं। उन्होंने शादी के सारे रिश्तों को मना कर दिया है।
इंदौर डेफ बाइलिंगुल एकेडमी ने सबसे पहले गीता की कस्टडी ली थी। वह उनके साथ 58 माह तक रही। जुलाई 2020 में उनकी कस्टडी ज्ञानेंद्र पुरोहित ऑफ आनंद सर्विस सोसाइटी को दे दी गई, जो उनके परिवार को खोजने का प्रयास कर रहे थे। पुरोहित को कुछ सुराग मिले जिनसे परिवार को खोज पाने में मदद हुई।
छिदी हुई नाक बनी सबसे अहम सुराग
गीता को परिवार से मिलाने की दिशा में सबसे अहम काम उनकी छिदी हुई नाक ने किया। हालाँकि, पहले ये देखा गया कि उलटी साइड नाक छिदाना महाराष्ट्र में बहुत सामान्य बात है, लेकिन गीता की नाक सीधी तरफ छिदी थी, जिससे पता चला कि ऐसा महाराष्ट्र के दक्षिणी इलाकों में होता है। इसके बाद मराठवाड़ा को केंद्र में रखा। जहाँ हैदराबाद में निजाम शासन से ही नाक छिदवाने को बढ़ावा दिया जाता है।
फिर, वहीं स्थानीय पुलिस के साथ, प्रशासन के साथ काम शुरू किया गया। इसके बाद गीता ने कहा था कि उनके घर के पास रेलवे स्टेशन और गन्ने के खेत हैं तो इस आधार पर छानबीन शुरू हुई। अंत में पारभानी वह अंतिम छोर था जहाँ गीता का परिवार मिल ही गया।
दरअसल, जब गीता की कहानी स्थानीय अखबार में छपी तो एक मीना दीनकर पंधारे ने परभानी जिला प्रशासन को संपर्क किया और कहा कि हो सकता है गीता उनकी बेटी हो। वह भी 1999-2000 में गायब हुई थी। मीना का पहला साक्षात्कार ही सफल रहा। उनकी बेटी की उम्र और गीता की उम्र एक पाई गई। फिर मीना व गीता में समानताएँ भी झलकीं। मीमा ने बताया कि उनकी बेटी के पेट पर एक जलने का दाग था, जो वाकई गीता के पेट पर निकला। ये चोट उसे बचपन में लगी थी।
DNA टेस्ट!
अब यहाँ तक पहुँच कर दोनों का डीएनए का टेस्ट लगभग हो ही चुका है। नाबालिग की कस्टडी भी डिसाइड हो चुकी है। गीता इस समय 29 साल की है। वह अपने भविष्य का फैसला लेने के लिए बिलकुल आजाद है। मध्य प्रदेश सोशल जस्टिस विभाग की ज्वाइंट डायरेक्टर सुचिता टिक्रे का कहना है कि वह गीता अपने परिवार से लगातार मिलती हैं और अपने आस-पास के वातावरण में घुल रही है।
परिवार से पहली बार मिली गीता, माँ ने बताया असली नाम
फिलहाल गीता पारभानी में पहल फाउंडेशन चलाने वाले अनिकेत सलगाँवकर के साथ हैं। गीता अपनी माँ से इसी फाउंडेशन के एक कमरे में मिली थीं। वह पल इतना भावुक करने वाला था कि दोनों एक दूसरे से लिपट कर बहुत रोए थे।
गीता को तसल्ली देते हुए उनकी माँ ने कहा, “आपका असली नाम राधा वाघमारे है और आपके पिता का नाम सुधाकर वाघमारे है। कुछ साल पहले उनका निधन हो गया।” हालाँकि, सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि गीता अब अपने परिवार के साथ आगे बढ़ने की इच्छुक नहीं है। वह सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से अपनी पढ़ाई और व्यावसायिक प्रशिक्षण जारी रख रही हैं।
गीता के लिए अब तक का सफर आसान नहीं था। ऐसे में वह गाँव जाने के लिए उत्सुक नहीं है। वह इस समय एक ऐसी जगह रहती हैं जहाँ उनकी हर जरूरत पूरी हो रही हैं। दूसरी ओर उनकी माँ हैं जो मिट्टी के घड़े बना कर किसी तरह गुजर बसर करती हैं।
गीता की प्राथमिकता दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से आठवीं कक्षा पास करना है। सालगाँवकर ने कहा, “एक बार जब वह कुछ बुनियादी योग्यता हासिल कर लेगी, तो हम महाराष्ट्र सरकार से उसे नौकरी दिलाने में मदद करने का अनुरोध करेंगे।”
टिक्रे ने कहा कि गीता नियमित रूप से अपने परिवार से मिल रही है, और जब वह उनके साथ घूमने में सहज महसूस करेंगी, तो उन्हें परिवार को सौंप दिया जाएगा। वह कहती हैं, “मेरी समझ से गीता, राधा होने से पहले आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना चाहती है।”
गीता पाकिस्तान कैसे पहुँची ये अब तक साफ नहीं है
अब जबकि गीता अपने परिजनों को जान चुकी हैं तो सारी कहानी स्पष्ट हो गई है। गीता 20 साल पहले सीमा पार करके गलती से पाकिस्तान चली गई थी। इसके बाद कई थ्योरी सामने आई कि वो वहाँ कैसे पहुँची। उनमें से एक थी कि गीता की बचपन में घर से भागने की आदत थी। चूँकि उस समय सीसीटीवी कैमरे नहीं हुआ करते थे, तो ये तो नहीं पता कि असल में हुआ क्या। लेकिन माना जाता है कि वह सचखंड एक्सप्रेस से अमृतसर पहुँचीं। फिर शायद समझौता एक्सप्रेस पकड़ कर लाहौर चली गई।
जब पाकिस्तानी रेंजर्स ने उसे पकड़ा, उसे गुम हुए 4 साल बीत गए थे। उसे सोशल एक्टिविस्ट बिलकिस बानो इद्ही को सौंप दिया गया। वह कराची में संस्था चलाती थीं। दुर्भाग्यवश इस बात के कोई रिकॉर्ड नहीं है कि आखिर बानो को गीता की जिम्मेदारी कब मिली, क्योंकि उस संस्था में ऐसे तमाम बच्चे थे। आज भी कुछ सिरे हैं तो इस पूरी कहानी में छूटे हुए लगते हैं, लेकिन खुशी की बात ये हैं कि गीता अपने परिवार से मिल गई हैं और उम्मीद है वह उनके साथ रहने को एक दिन खुशी-खुशी तैयार भी हो।