साल 2020 कई मायनों में उल्लेखनीय रहा। बात चाहे किसी काम को करने के प्रति नजरिया बदलने की हो या फिर किसी स्थिति से निपटने की, हर सामान्य तरीके में इस वर्ष आमूलचूल बदलाव देखे गए। मगर, इस बीच महिला अधिकारों के कुछ अति आधुनिक ठेकेदारों ने ट्रांस वुमेन (trans women) के अधिकारों के नाम पर बायोलॉजिकल वुमेन तथा उनके स्वास्थ और अधिकारों को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
Abigail Shrier का किस्सा
इसी 2020 में पत्रकार Abigail Shrier की एक किताब पब्लिश हुई। किताब का नाम था- ‘Irreversible Damage: The Transgender Craze Seducing Our Daughters’ जिसमें पत्रकार ने बताया था कि पश्चिमी देशों में किस तरह किशोरियों पर जेंडर पॉलिटिक्स के भयावह प्रभाव पड़ रहे हैं।
उन्होंने अपनी किताब में कहा कि (पश्चिमी देशों में) जो किशोर लड़कियाँ जेंडर डिस्फोरिया (एक लिंग से दूसरे लिंग को चाहने की स्थिति) से पीड़ित नहीं भी होतीं, उन्हें भी लगता है कि वो किसी शरीर में आकर फँस गई हैं, जिसकी वजह से वो मेडिकल प्रक्रियाओं से गुजरती हैं। नतीजतन बाद में या तो उन्हें पछतावा होता है या फिर कई कारणों से उनका जीवन और बदतर हो जाता है।
अब कायदे से इस किताब के निष्कर्षों को लेकर नारीवादियों को चिंतन-मनन करने की आवश्यकता थी। लेकिन उन्होंने इसके बजाय क्या किया? वो सब इकट्ठा होकर लेखिका पर इल्जाम लगाने लगीं कि लेखिका डर और नफरत के साथ ट्रांसफोबिया फैला रहीं हैं, इसलिए spotify पर मौजूद उनके एपिसोड को हटा दिया जाए।
आज के समय में हम देखें तो लेखिका ने किताब के जरिए जो निष्कर्ष दिया था उस परेशानी के कारण वाकई कई माता-पिता बहुत चिंतित हैं। मगर फिर भी, ऐसे टॉपिक पर बात करने की बजाय तथाकथित नारिवादियों की बहस ने इस साल ये दिखा दिया कि उनके लिए एक महिला की जिंदगी से ज्यादा उनकी घटिया राजनीति महत्वपूर्ण है।
हैरी पॉटर की लेखिका को भी नकारा गया
इसके बाद हैरी पॉटर की लेखिका जेके रॉलिंग को भी इन क्रांतिकारियों ने अपना शिकार बनाया। उनकी गलती बस ये थी कि उन्होंने बायोलॉजिकल सेक्स को हकीकत कहा था और मासिक धर्म को लेकर कहा था कि ये सिर्फ़ महिलाओं को ही हो सकता है।
बता दें, तथाकथित क्रांतिकारियों ने रॉलिंग के इस मत के बदले उन्हें TERF कहा। ये एक ऐसा शब्द है जिसे उन नारीवादियों के लिए अपमानजनक तौर से इस्तेमाल किया जाता है जो इस बात को नकारते हैं कि पुरुष से महिला में तब्दील हुआ ट्रांस वुमेन महिला नहीं कहलाया जा सकता।
रॉलिंग का कहना था, “अगर लिंग वास्तविक नहीं है तो कोई समान लिंग आकर्षण नहीं होगा। अगर लिंग वास्तविक नहीं है तो वैश्विक स्तर से महिलाओं की पहचान मिट जाएगी। मैं ट्रांस लोगों को जानती हूँ और प्यार करती हूँ। लेकिन लिंग को मिटाने की अवधारणा लोगों से उनके जीवन पर बात करने की क्षमता को मिटा देगी। सच बोलने का अर्थ नफरत करना नहीं है। ”
आज के टाइम में अजीब बात ये है कि इन सोशल जस्टिस वॉरियर्स को रॉलिंग की बात समझ नहीं आ सकती क्योंकि इनका अब भी मानना है कि लिंग समाज द्वारा निर्मित होता है और एक ऐसी महिला जिसे माहवारी आती हो, वह पुरुष हो सकता है, अगर समाज के लोग ऐसा मानना और उसे पुरुष कहना शुरू कर दें। उनके मुताबिक उनकी इस टेक्निक से ये तथ्य मिट जाएगा कि सिर्फ़ महिलाओं को माहवारी होती है।
महिलाओं के लिए अजीब शब्दों का प्रयोग
साल 2020 में एक सबसे अजीब बात ये भी देखने को मिली कि महिलाओं को एक सब्जेक्ट की तरह इस्तेमाल किया गया और प्रोग्रेसिव होने के नाम पर महिलाओं के लिए अलग-अलग शब्द इस्तेमाल हुए। महिलाओं को वजाइना ओनर्स (Vagina owners), मेंस्ट्रूरेटर (menstruators) समेत न जाने क्या-क्या कहा गया।
हमारे लिए शर्म की बात यह है कि ऐसा करने वालों में सिर्फ़ पश्चिमी नारीवादियों का हाथ नहीं था, भारतीय महिलाओं ने भी इस बीच महिलाओं के लिए खूब अजीब शब्दों के इस्तेमाल किए।
मीटू के वेरिफिएड ट्विटर हैंडल को चलाने वाली ऋतुपर्णा चटर्जी इन भारतीयों में से एक हैं जिन्होंने एक-दो बार नहीं, बल्कि बार बार महिलाओं के मुद्दों पर बात करते हुए औरतों को ‘मेस्ट्रूरेटर कहा।
अब वैसे तो इस पूरे मुद्दे से जुड़ी कई गंभीर घटनाएँ आए दिन सामने आती रहती हैं। लेकिन सबसे खतरनाक साल 2019 में देखने को मिली थी। जेसिका यानिव नामक केस में एक पुरुष अपने आपको महिला बताता था और अपने गुप्तांग की वैक्स महिला से करवाना चाहता था। जब महिला ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उसने महिला पर केस दायर किया। वह चाहता था कि महिलाओं को इस तरह पुरुषों के गुप्तांग को हैंडल करने से सिर्फ़ इसलिए मना नहीं करना चाहिए, क्योंकि वो उसे नहीं करना चाहती, उसके हिसाब से ये सही नहीं था।
ऐसे तमाम किस्सों के अलावा हम यदि देखें तो बहुत पहले से सामान्य महिलाओं के बारे में सोचे बिना ये ‘क्रांतिकारी’ इस माँग को उठाते आए हैं कि महिला बनने की इच्छा रखने वाले पुरुषों को महिलाओं के खेलों में भाग लेने के लिए सहमति दी जाए, जिसका कई बार विरोध भी हुआ है। लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है कि उत्तर आधुनिक लोग अब भी बाज नहीं आ रहे और बायोलॉजिकल वुमेन के ख़िलाफ़ सोशली ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं।