उड़ीसा उच्च न्यायालय ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक कॉन्स्टेबल द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया है। अपनी याचिका में कॉन्स्टेबल ने कहा था कि उसने विभागीय लिखित परीक्षा पास कर ली है, लेकिन एक अंडकोष होने की वजह से उसे उप-निरीक्षक (दारोगा) के पद पर नियुक्ति नहीं दी जा रही है।
मेडिकल रिव्यू बोर्ड ने एक अंडकोष होने के कारण कॉन्स्टेबल को ‘चिकित्सकीय रूप से अयोग्य’ बताया था। उड़ीसा हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉक्टर संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने मेडिकल रिव्यू बोर्ड के फैसले को सही ठहराया और कहा कि पात्रता मानदंडों को पूरा करना जरूरी है। जो पूरा करेगा, वही चुना जाएगा।
न्यायामूर्ति पाणिग्रही ने कहा, “सब-इंस्पेक्टर/Exe (LDCE) का पद कॉन्स्टेबल/जीडी से ऊँचा पद है। सब-इंस्पेक्टर/Exe के पद पर उच्च कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ होती हैं। इसलिए जो उम्मीदवार सभी पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं और भर्ती प्रक्रिया के सभी मामलों में अर्हता प्राप्त करते हैं, उन्हें चुना जाएगा और पद पर नियुक्त किया जाएगा।”
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही ने अपना फैसला सुनाते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के प्रियंका बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया। इस फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने सशस्त्र बलों में आवश्यक उच्च मानकों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया था।
दरअसल, याचिकाकर्ता को साल 2008 में CISF में कॉन्स्टेबल के पद पर नियुक्त किया गया था। साल 2014 में उसने सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (एलडीसीई) में उपस्थित होने के लिए आवेदन किया। यह परीक्षा विभागीय उम्मीदवारों को उप-निरीक्षक (SI) के पद पर पदोन्नति की सुविधा देने के लिए आयोजित की गई थी।
याचिकाकर्ता ने लिखित परीक्षा पास ली। उसके बाद उसे शारीरिक दक्षता परीक्षण के लिए बुलाया गया। मेडिकल परीक्षण से पता चला कि उसे उसका सिर्फ एक अंडकोष है। इसके बाद उसे सब-इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती के लिए चिकित्सकीय रूप से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
इससे दुखी होकर कॉन्स्टेबल ने बोर्ड के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की। कोर्ट ने कहा, “इसमें विभाग का याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई व्यक्तिगत द्वेष या कुछ भी नहीं है। उसने सिर्फ चयन नियमों के तहत निर्धारित चिकित्सा परीक्षण कराने की कोशिश की है।” इसके बाद याचिका खारिज कर दी।