इतिहास के गलत पक्ष में होना एक विकल्प है, लेकिन जब आक्रमणकारियों को अपना मानकर उसे स्थापित करने की कोशिश की जाए तो वह अक्षम्य हो जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ भी कुछ ऐसा ही है। चाहे उनकी घुड़सवार सेना में काल्पनिक सैन्य कमांडरों को स्थापित करने का प्रयास हो या उनके द्वारा बनाए गए किलों के साथ झूठे धार्मिक संबंधों का दावा करना हो, छत्रपति शिवाजी को एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ राजा के रूप में स्थापित करने की कोशिश लंबे समय से चल रही है।
अपने इस्लामी समकालीनों के विपरीत छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी प्रजा के साथ एक समान व्यवहार किया और वे भारतीय सभ्यता के इतिहास में सबसे सम्मानित शासकों में से एक बन गए। वह वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में समान रूप से प्रासंगिक हैं, लेकिन व्यक्तिगत राजनीतिक लाभ या धार्मिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उन्हें इस्तेमाल करने के नापाक इरादों पर पानी फेरा जाना चाहिए।
हाल ही में सोशल मीडिया पर पुणे के पास स्थित लोहागढ़ किले पर स्थित एक कथित सूफी संत के लिए ‘उर्स शरीफ’ आयोजित करने की अपील वायरल हुई थी। ‘सर्वधर्म समभाव’ से शुरू करके इस पोस्टर में किसी ‘उमर शहावली बाबा’ के 17 जनवरी को तय ‘उर्स’ उत्सव में भाग लेने के लिए कहा गया, जिनकी कब्र लोहागढ़ किले पर स्थित है। इस कार्यक्रम के बारे में पुणे निवासी मल्हार पांडे ने बिना किसी सांस्कृतिक प्रासंगिकता या ऐतिहासिक पहचान वाले दिवंगत ‘संत’ के लिए उत्सव आयोजित करने को लेकर ट्वीट किया।
The descendants of Islamic dacoits have embarked on a mission to take control of the forts of Chh.Shivaji Maharaj by celebrating “Urus”of some fictional characters on various forts in Maharashtra. Few days ago it was raigad now it is lohgad near Pune.
— Malhar Pandey (@malhar_pandey) January 10, 2022
(1/4) pic.twitter.com/njotsc160b
इतिहास के जानकार और सामाजिक संगठन झुंज के अध्यक्ष मल्हार पांडे ने मराठा इतिहास और विरासत में आंडबरपूर्ण मुस्लिम पहचान को स्थापित करने के राजनीतिक चाल को लेकर गंभीर सवाल उठाए। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा, “ऐसा कोई समकालीन सबूत नहीं है जो बताता हो कि छत्रपति शिवाजी महाराज या संभाजी महाराज के समय में लोहागढ़ किले पर मस्जिद थी। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिमों ने नेताओं की मदद से पहले भी कई किलों पर कब्जा किया है।”
ऑपइंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उर्स के ऐसे किसी भी उत्सव की कोई ऐतिहासिक या सांस्कृतिक प्रासंगिकता नहीं है। उन्होंने कहा, “सन 1818 तक मराठों के नियंत्रण में रहे लोहागढ़ किले में छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में या किसी भी समय इस तरह के आयोजन के सबूत नहीं हैं। मराठों के बाद लोहागढ़ में ऐसे किसी भी आयोजन की उम्मीद करना असंभव है, क्योंकि 20वीं सदी तक यह किला सख्त ब्रिटिश शासन के अधीन था।”
पांडे ने इसके पीछे राजनीतिक मंशा का संदेह जताया, जो मुस्लिम भावनाओं को भड़काना चाहती है। पोस्टर के अनुसार, शिवसेना के एक दिग्गज नेता हाजी हुसैन बाबा शेख इस कार्यक्रम के अध्यक्ष हैं, जबकि मावल से राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (राकांपा) के विधायक सुनील शेल्के आमंत्रित अतिथि हैं।
‘उमर शहावली बाबा’ का अगर वास्तव में अस्तित्व था तो हम उनकी जड़ों का पता लगाने के लिए थोड़ा आगे बढ़ते हैं। पुणे स्थित इतिहासकार आशुतोष पोटनिस ने सन 1889 के पुणे के बॉम्बे स्टेट गजेटियर में उनका उल्लेख पाया। उन्होंने बताया, “शेख उमर औलिया उन सूफी संतों में शामिल थे, जो 14वीं शताब्दी में अरब से दक्कन पहुँचे थे। स्थानीय सुल्तानों के समर्थन से वह लोहागढ़ में बस गए। शेख उमर शहावली बाबा, जिसे आज संत के रूप में पूजा जाता है, उसके बारे में कहा जाता है कि जब वह यहाँ रहने के लिए आए तो उन्होंने किले पर स्थित एक स्थानीय देवता के मंदिर को ध्वस्त कर दिया।” पोटनिस कहते हैं, “बॉम्बे गजेटियर में उल्लेख है कि एक स्थानीय लोक देवता को उसके द्वारा अपवित्र किया गया था। उमर शहावली का मकबरा वही स्थान है, जहाँ कभी इस लोक देवता अवस्थित थे।”
लोहागढ़ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत एक संरक्षित स्मारक होने के कारण बॉम्बे में पुरातत्व विभाग ने पहले ही वहाँ किसी भी धार्मिक समारोह के आयोजन की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। यदि कुछ लोगों के लिए एक मूर्तिभंजक की पूजा करना नैतिक रूप से सही हो सकता है तो हाल की घटना एएसआई द्वारा निर्धारित विरासत से संबंधित कानून का भी उल्लंघन करती है। शाह का दूर-दराज स्थित मकबरा वर्षों तक अनजान रहा और उनके संदिग्ध अतीत के बारे में किसी को पता नहीं था। फिर अचानक लोगों का एक समूह उन्हें लोहागढ़ से जोड़ते हुए उनकी धार्मिक पहचान को स्थापित करने के लिए उर्स मनाना शुरू कर देता है। ऐसा लगता है कि यह उत्सव आध्यात्मिक से अधिक राजनीतिक चालबाजी है।
लोहागढ़ किले का मामला सबसे अलग है, लेकिन यह अकेला मामला नहीं है। महाराष्ट्र में कई ऐसे किले हैं, जो पुनर्निर्माण की आस लिए अधिकारियों की आँखों से अब तक ओझल हैं, लेकिन इस धार्मिक विस्तारवाद के राडर पर हैं। पिछले हफ्ते कोल्हापुर के युवराज संभाजी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को फोर्ट रायगढ़ पर एक मस्जिद बनाने के प्रयासों के बारे में लिखा था, जो कभी हिंदवी स्वराज्य की राजधानी के रूप में खड़ा था।
रायगढ़ के मदारी मोर्चा में एक ढाँचा खड़ा करने के लिए बदमाशों का पत्थर ले जाने वाला एक वीडियो वायरल होने के बाद यह बात सामने आई। इस दौरान पता चला कि कि परिसर का एक हिस्सा को मुस्लिम पहचान देने के लिए पहले ही उसे पेंट कर दिया गया था और उस पर चादर चढ़ा दी गई थी। संभाजी ने पत्र में लिखा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रायगढ़ किले जैसी प्रतिष्ठित जगह पर अवैध निर्माण गतिविधियों को चलने दिया गया।”
रायगडावर मशीद उभारणी….
— Mahesh Patil-Benadikar (@MaheshPatil_B) January 5, 2022
इतरांना एक दगड हलवायला पुरातत्व खात्याची परवानगी लागते..काय प्रकार चाललाय हा…याची कृपया शहानिशा करावी.
सरकारी जावई जिंदाबाद..#रायगड @YuvrajSambhaji @Chh_Udayanraje #रायगड_विकास_प्राधिकारण pic.twitter.com/5HecnGfd6L
सेनापति बाजीप्रभु देशपांडे की विरासत की लेकर मजबूती खड़ा एक अन्य किला, किल्ले विशालगढ़ भी उपेक्षा का शिकार है। वहीं, देशपांडे की पावनखिंड के पास दूर-दराज स्थित समाधि भी उपेक्षित है। हालाँकि, राज्य सरकार ने अवैध रूप से कब्जा करके कंक्रीट से बनाए गए बाबा रेहान की दरगाह के लिए धन दने की घोषणा की है। सरकार ने दरगाह द्वारा लगातार किए जा रहे अवैध अतिक्रमण पर नकेल कसने के बजाय ढाँचे तक सड़क के साथ फुटपाथ बनाने के लिए धनराशि स्वीकृत की है।
यह सब तब हो रहा है, जब किले पर बने पारंपरिक मंदिर पूरी तरह जर्जर अवस्था में पहुँच चुका है। स्थानीय इतिहासकारों का कहना है कि मलिक रेहान ने एक बार घेराबंदी कर विशालगढ़ पर हमला किया था और उस युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई थी। इस तरह रेहान की दरगाह विशालगढ़ पर खड़ी है, जबकि छत्रपति शिवाजी के दुश्मन को उनकी ही विरासत पर स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।
उपरोक्त मामले आँख खोलने वाले हैं कि कैसे विरासत में साजिश के तहत दावा कर अतिक्रमण किए जा रहे हैं। ऐतिहासिक नैरेटिव से परे कुछ इस्लामवादी बिना किसी तथ्य, संदर्भ और इतिहास में भागीदारी के जमीनी विरासत स्थलों पर कब्जा करने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले साल फरवरी में सतारा में वंदनगढ़ के किले का नाम बदलने का प्रयास राज्य के वन विभाग द्वारा ‘पीर वंदनगढ़’ (मुस्लिम संत) के रूप में करने का प्रयास किया गया था। यह किला प्रतिबंधित वन क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद, यहाँ भी अब्दल सहाब दरगाह ट्रस्ट द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है।
हिंदू जनजागृति समिति ने इस कदम की आलोचना की थी। वहीं, किले का नाम बदलने का मुद्दा अब सुलझा लिया गया है। हाल ही में डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे (निदेशक, आईसीसीआर), सुनील देवधर (राष्ट्रीय सचिव, भाजपा) और वैभव डांगे वाले एक इतिहास प्रेमी पैनल ने संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल को कई ऐतिहासिक किलों पर अवैध निर्माण गतिविधियों को रोकने के लिए एक ज्ञापन सौंपा गया।
‘किल्ले वंदनगड’चे ‘पीर किल्ले वंदनगड’ करण्याचा धर्मांधांचा डाव फसला; वन विभागाकडून खुलासा
— HinduJagrutiOrg (@HinduJagrutiOrg) December 7, 2021
छत्रपती शिवरायांचा इतिहास पुसणार्यांपासून सावध राहून धर्मांधांचे षड्यंत्र रोखा – हिंदु जनजागृती समितीचे @SG_HJS यांचे आवाहन@TV9Marathi @abpmajhatv @mataonline @SaamanaOnline @saamTVnews pic.twitter.com/VfvNRQYgqz
एक तरफ हमारी निर्मित विरासत का संरक्षण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, वहीं दूसरी तरफ इन पर अवैध अतिक्रमण के जरिए कानून-व्यवस्था का सीधा उल्लंघन हो रहा है। छत्रपति शिवाजी की विरासत पर अतिक्रमण के प्रयासों से इस्लामवादियों द्वारा अपनाई जाने वाली बेशर्म रणनीति का पता चलता है और हमारी विरासत की सुरक्षा के लिए चुनौतियों को रेखांकित करता है। घटिया नैरेटिव के माध्यम से इतिहास का मिथ्याकरण का जब पर्याप्त नहीं हुआ तो 21वीं सदी के आक्रमणकारियों ने अब हिंदुओं की बेशकीमती विरासत में सीधे तौर पर हिस्सेदारी का दावा कर दिया है। यह हिंदुओं के लिए एक संदेश है कि आक्रमण और विजय जारी रहेगी, क्योंकि इस्लामवादी छत्रपति शिवाजी के किलों को हड़पना चाहते हैं, जिसे मुगल नहीं कर सके थे।