Friday, November 15, 2024
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रेप के बाद जन्म दिया मरा हुआ बच्चा, न्याय के लिए पीड़िता ने नहीं की शादी: अजमेर सेक्स स्कैंडल में ऐसे आया 32 साल बाद फैसला, बदबू मारते कंडोम भी बने सबूत

इस मामले में कुल 18 आरोपित थे जिनमें से पहली चार्जशीट में 12 का नाम था। नसीम उर्फ़ टार्जन 1994 में फरार हो गया था। ज़हूर चिश्ती एक लड़के के साथ अप्राकृतिक यौनाचार का दोषी पाया गया था।

राजस्थान के अजमेर में 100 से अधिक लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार करने वालों में से 6 दोषियों को पॉक्सो अदालत ने उम्रकैद और 5-5 लाख रुपए की सज़ा सुनाई है। 32 वर्षों तक मामले की सुनवाई होना पुलिस के लिए ख़ासा मुश्किल था, क्योंकि सबूत और गवाह सहेज कर रखने होते हैं। कई पीड़िताओं ने तो अपना घर और गाँव तक छोड़ दिया था। वहीं सबूत के रूप में रखे गए बिस्तर और कंडोम बदबू मारने लगे थे। नाते-रिश्तेदारों की मदद से पीड़ितों को खोजा गया।

फिर उन्हें गवाही देने के लिए मनाना भी बड़ा कार्य था। कई फिर से इन घटनाओं को याद नहीं करना चाहती थीं और इससे दूर ही रहना चाहती थीं। फ़िलहाल विजय सिंह राठौड़ 2020 से इस मामले के अभियोजक हैं, उनसे पहले 12 अभियोजक बदल चुके हैं। अभियोजन पक्ष सिर्फ 16 पीड़िताओं को ही गवाही के लिए मना सका। इनमें से भी 13 ने रसूखदार आरोपितों के डर से अपने बयान बदल दिए। पुलिस ने कंडोम, कैमरे, डायरी, बिस्तर कैसेट्स, कपड़े और अन्य वस्तुएँ भी सबूत के रूप में सहेज कर रखा था।

इस मामले में 4 बार सुनवाई चली, ऐसे में हर बार सबूतों को अदालत में पेश करना पड़ा। नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ ​​टार्जन, सलीम चिश्ती, इकबाल भाटी, सोहेल गनी और सईद जमीर हुसैन को इस मामले में सज़ा सुनाया गया है। अधिकतर लड़कियों की उम्र 11 से 20 वर्ष के बीच थी जो स्कूल-कॉलेज जाती थीं। एक फार्महाउस में बुला कर उनके साथ दरिंदगी की जाती थी। उनकी तस्वीरें क्लिक कर ली जाती थीं, जो शहर भर में फ़ैल गई थीं। इन्हीं तस्वीरों के सहारे लड़की को सहेलियों को लाने के लिए कहा जाता था।

इस मामले में कुल 18 आरोपित थे जिनमें से पहली चार्जशीट में 12 का नाम था। नसीम उर्फ़ टार्जन 1994 में फरार हो गया था। ज़हूर चिश्ती एक लड़के के साथ अप्राकृतिक यौनाचार का दोषी पाया गया था। उसका मामला दूसरी अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया था। 2007 में उसे आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। एक आरोपित ने आत्महत्या कर ली थी। 8 आरोपितों को 1998 में आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। फारूख चिश्ती को सिजोफ्रेनिया होने की वजह से अलग अदालत में उसका मुकदमा चलाया गया था।

अलमास नाम का आरोपित अब तक फरार है। इन 6 के खिलाफ अलग से मुकदमा चलाया गया, क्योंकि जब 12 के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई थी तब इनके खिलाफ जाँच लंबित रखी गई थी। पीड़िताओं में से एक की उम्र उस समय 17 साल थी। वो डिबेट्स में अच्छी थी, राजनीति में आना चाहती थी। अनवर चिश्ती ने उसे कॉन्ग्रेस में शामिल कराने का लालच दिया और फार्महाउस बुलाया। फिर ब्लैकमेल और गैंगरेप का खेल शुरू हुआ। मात्र 3 पीड़िताएँ ही ऐसी थीं, जो न्याय के लिए लड़ीं।

इनमें से एक पीड़िता को तो उनके पिता साथ लेकर कोर्ट आते-जाते थे। कोरोना महामारी के दौरान पुलिस ने इन पीड़िताओं को ट्रैक कर उनके बयान दर्ज कराने शुरू किए। एक पीड़िता ने न्याय की लड़ाई को अंजाम तक पहुँचाने के लिए अब तक शादी नहीं की, न ही शहर छोड़ा। आरोपितों को लेकर उसके बयान महत्वपूर्ण साबित हुए। पीड़िता ने कोर्ट में आरोपितों की शिनाख्त की, बताया कि कैसे उसकी बहन का रेप करने की धमकी दी गई, एक बार वो गर्भवती भी हो गई। गर्भपात के बावजूद डिलीवरी हुई लेकिन बच्चा मृत निकला।

एक कहानी दरगाह बाजार के पास रह रहने वाले पिता-पुत्र की भी है। पहले तो वो अजमेर छोड़ चुके थे और गवाही देने के लिए तैयार नहीं थे। पुलिस ने नाम उजागर न होने का भरोसा दिलाया तो वो तैयार हुए। उन्हें छिपा कर कोर्ट लाया जाता था। एक पीड़िता की पंजाब में शादी हुई, भाई न गवाही दिलाने से मना कर दिया। कुछ परिजन पुलिसकर्मियों से कह देते थे कि पीड़िता मर चुकी है। पुलिस ने काउंसिलिंग का भी सहारा लिया। पीड़िताओं को टेलीफोन-गैस सिलिंडर देने का लालच देकर भी फँसाया जाता था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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