हैदराबाद में नवंबर 2019 में महिला डॉक्टर दिशा (बदला हुआ नाम) को गैंगरेप के बाद जला दिया गया था। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। 6 दिसंबर 2019 को पुलिस ने इस मामले के चार आरोपितों मोहम्मद पाशा, नवीन, चिंताकुंता केशावुलु और शिवा का उसी जगह पर एनकाउंटर कर दिया, जहाँ पर दिशा को दरिंदगी के बाद जला दिया गया था। दरअसल पुलिस क्राइम सीन को रिक्रिएट करने के लिए चारों आरोपितों को एनएच-44 पर लेकर गई थी। लेकिन, वहाँ पर चारों ने भागने की कोशिश की। पुलिस की चेतावनी के बावजूद वे नहीं रूके और आखिर में पुलिस ने उन्हें ढेर कर दिया।
इस घटना के 6 दिन बाद 12 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने जाँच के लिए 3 सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। समिति ने 21 अगस्त 2021 को गवाहों से पूछताछ का पहला शेड्यूल रखा। पहले शेड्यूल में 6 गवाहों से पूछताछ की जानी थी, लेकिन 26, 27 और 28 को तीन गवाहों से ही पूछताछ की जा सकी। इस दौरान कई चौंकाने वाले खुलासे हुए, जिसमें जाँच अधिकारी की तरफ से हुई चूक भी शामिल है।
आयोग ने मामले के जाँच अधिकारी जे सुरेंद्र रेड्डी से पूछताछ की। वह अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) भी हैं। पूछताछ के दौरान कई पहलुओं की अनदेखी और विसंगतियाँ सामने आई। उनसे दो दिन से अधिक पूछताछ की गई। सुरेंद्र रेड्डी से आरोपितों को रखने वाले गेस्ट हाउस और शादनगर में लगी सीसीटीवी फुटेज के बारे में पूछताछ की गई। जाँच अधिकारी के बयान और पुलिस हलफनामे में विरोधाभास पाया गया।
इसके अलावा उनसे बंदूकों की सेफ्टी लैच (Safety latch), पुलिस ने जहाँ से फायरिंग की वहाँ से दूरी और आरोपितों को जेल में डालने के समय को लेकर पूछताछ की। जाँच अधिकारी ने इस सवाल को यह कहते हुए टाल दिया कि यह जेल विभाग से जुड़ा मामला है।
दूसरी गवाह दिशा की बहन ने आयोग को बताया कि दिशा के लापता होने और मुठभेड़ में हत्याओं के बाद शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस ने उससे कभी संपर्क नहीं किया। हालाँकि, जाँच अधिकारी ने कहा कि पुलिस ने बहन से संपर्क किया था और उसने दिशा के बरामद सेल फोन और अन्य सामानों की पहचान की थी।
मामले में पहले गवाह तेलंगाना के गृह सचिव रवि गुप्ता थे। उनसे आयोग के वकीलों और पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने कई प्रश्न पूछे। अपने हलफनामे में, गृह सचिव ने विश्वास के साथ कहा था कि पुलिस अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई आत्मरक्षा में थी और कानूनी रूप से इसे हत्या नहीं कहा जाएगा। आयोग ने इस बिंदु पर जाँच की और विचार-विमर्श किया। आयोग ने शीर्ष नौकरशाह द्वारा दायर हलफनामे के आधार पर कई सवाल भी उठाए। आयोग ने यह भी पाया कि तेलंगाना सरकार ने इस घटना की न्यायिक जाँच नहीं की।