शनिवार को मुस्लिम पक्ष ने अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में ‘मोल्डिंग ऑफ़ रिलीफ़’ दस्तावेज़ सीलबंद कवर नोट में जमा किए। स्रोतों का कहना है कि मुस्लिम पार्टियों ने सुझाव दिया कि अगर विवादित भूमि का मालिकाना अधिकार/टाइटल उन्हें न दी जाए तो उस सूरत में क्या किया जा सकता है। हिन्दू पार्टियों में से अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ने भी अपना नोट जमा किया है। अपने नोट में हिन्दू महासभा ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट चाहे तो एक ट्रस्ट का निर्माण कर सकता है जो राम मंदिर के निर्माण की देखभाल करेगा। वह यह सुझाव भी दे सकता है कि राम मंदिर का निर्माण कौन करे।
इस बीच राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति ने अपने नोट में कहा है कि ज़मीन का मालिकाना अधिकार रामलला को मिलना चाहिए। उसने सुप्रीम कोर्ट से मध्यस्थता पैनल के सोच-विचार में भी गौर करने की गुज़ारिश की है। समिति का यह भी मानना है कि मंदिर प्रबंधन की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट का निर्माण होना चाहिए। एक अन्य पक्षकार रामलला विराजमान की तरफ से भी एक नोट दाखिल किया गया है। रामलला की ओर से दायर नोट में कहा गया है पूरे मंदिर के निर्माण का अधिकार उन्हें ही सौंपा जाना चाहिए। निर्मोही अखाड़ा या मुस्लिम पार्टियों को कोई मालिकाना हक नहीं दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मामले विवाद मामले में 16 अक्टूबर 2019 को सुनवाई समाप्त की है। राष्ट्र को मुख्य फैसले का इंतज़ार है, जो अगले महीने (नवंबर) आने की उम्मीद है। भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के आसन्न अगले महीने की 17 तारीख को रिटायरमेंट के चलते फैसला उसके पहले ही आने की उम्मीद की जा रही है। इसके पहले सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने विवादित भूमि पर से अपना दावा किसी और डील के बदले छोड़ देने की पेशकश भी की थी।
7 अगस्त को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद केस की सुनवाई दैनिक रूप से शुरू हुई थी। निर्मोही अखाड़े ने दावा किया था कि 1934 से विवादित स्थल पर नमाज़ नहीं हुई है। गोगोई के अलावा चार अन्य जजों की संवैधानिक बेंच ने मामले की सुनवाई की है। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने ज़मीन तीनों पक्षकारों में बाँट दी थी।
इस बीच योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आता है, उसे पूरी तरह लागू करने की बात कही है। एक साक्षात्कार में उन्होंने मामले की सुनवाई खत्म करने के लिए अदालत की तारीफ़ भी की।