जम्मू-कश्मीर में बीते हफ्ते तक करीब 3.7 लाख लोगों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट दिया गया था। 22 जून से इसकी प्रक्रिया शुरू हुई थी। डोमिसाइल सर्टिफिकेट पाने वालों में से करीब 78 फीसदी जम्मू से हैं।
इनमें ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो केंद्र शासित प्रदेश में लंबे समय से रह रहे थे। ज़्यादातर लोग सरकारी सेवाओं से जुड़े हुए हैं या वाल्मीकि समाज से आते हैं। पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद इन्हें डोमिसाइल देने का रास्ता खुला था। आगामी 5 अगस्त को इसके एक साल पूरे हो जाएँगे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया है कि 22 जून को ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया शुरू होने के बाद से जम्मू में लगभग 2.9 लाख लोगों को निवास प्रमाण-पत्र दिया गया। वहीं कश्मीर घाटी में लगभग 79, 300 लोगों को प्रमाण-पत्र मिला है।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि डोमिसाइल पाने वालों में 20 हजार पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी हैं। वाल्मीकि समुदाय के करीब 2000 सफाई कर्मचारियों और 700 गोरखा को भी डोमिसाइल सर्टिफिकेट दिया गया है।
वाल्मीकि समाज में सबसे पहला निवास प्रमाण-पत्र 71 साल की दीपू देवी को मिला। उन्होंने कहा, “मैं चाहती थी कि मरने के पहले मेरी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता की ख़्वाहिश पूरी हो जाए। अब यह सपना पूरा हो गया है। अब मैं मेरे बच्चे यहाँ मान-सम्मान के साथ रह पाएँगे।”
नए नियमों के अमल में आने के बाद जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से कार्यरत आईएएस अधिकारी नवीन चौधरी पहले स्थायी निवासी बने थे। चौधरी मूल रूप से बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं।
नए नियमों के मुताबिक जो लोग 15 साल से जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं या 7 साल तक यहॉं पढ़ाई की है, वे स्थायी निवासी बन सकते हैं। केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारी, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मचारी और बैंक कर्मचारी जिन्होंने 10 साल तक जम्मू-कश्मीर में काम किया है वो भी स्थायी निवासी बन सकते हैं।
हालॉंकि केंद्र शासित प्रदेश की पार्टियॉं इसका विरोध कर रही हैं। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और अलगाववादी अमलगाम हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसी पार्टियों ने इसे जनसांख्यिकी में बदलाव की साजिश करार दिया है। साथ ही उनका कहना है कि आरएसएस के इशारे पर सरकार ऐसा कर रही है।