कश्मीर घाटी में एक बार फिर जानबूझकर हिंदुओं का खून बहाया गया है। पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने स्कूल में टीचरों की आईडी देख सिर्फ दो को गोली मारी। इनमें एक सिख टीचर थी और दूसरे कश्मीरी पंडित थे। घटना ने सभी को झकझोरा और अब इस पर तमाम सवाल हो रहे हैं। मृतकों के घरों में जहाँ मातम है। वहीं देश की लिबरल और कट्टर जमात ने इस मौके पर सरकार की आलोचना का अवसर खोजा है और आतंकियों की बर्बरता को छिपाने का प्रयास किया है।
फारूख अब्दुल्लाह की जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस की प्रवक्ता इफरा जन ने इस मामले में आतंकियों की बर्बरता पर बोलने की बजाय दक्षिणपंथियों को कोसना उचित समझा और बताने लगीं कि जब आर्टिकल 370 हटा था तो कैसे कम बुद्धि और तेज आवाज वाले दक्षिणपंथी नतीजों को महसूस किए बिना जबरन जनसांख्यिकीय परिवर्तन के लिए बहस करने के लिए उठ गए थे। इफरा के अनुसार, खून दक्षिणपंथियों के हाथ में भी लगा है।
तारिक अनवर ने तो बातें घुमाते हुए घटना के लिए अमित शाह को जिम्मेदार कहा। वह लिखते हैं, “मोदी सरकार ने कहा था कि आर्टिकल 370 के हटने से स्थिति सामान्य होगी। अब कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है जो अमित शाह के अंतर्गत आता है। श्रीनगर में नागरिकों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है।”
नेशनल हेराल्ड की एडिटर अश्लीन मैथ्यू ने कहा, “मोदी सरकार ने वादा किया था आर्टिकल 370 के बाद हर आतंकी गतिविधि को खत्म होगी और घाटी में शांति आएगी। हिंदू-मुस्लिम करने की जगह सरकार से असहज सवाल पूछना चाहिए।”
हिंदूफोबिक वामपंथन कविता कृष्णन कहती हैं, “घाटी में कश्मीरी पंडितों की हत्या भयावह है। आतंकियों को जिम्मेदार ठहराने के साथ मोदी सरकार को याद दिलाना मत भूलिए- क्या उन्होंने कहा नहीं था कि आर्टिकल 370 हटा तो ऐसी हत्याएँ खत्म होंगी।” अन्य लिबरल की तरह कविता कृष्णन ने आगे इन हत्याओं का ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ा।
कॉन्ग्रेस नेता सलमान निजामी भी अपने ट्वीट आर्टिकल 370 का मुद्दा उठाकर लिखते हैं, “कश्मीर में पिछले 2 दिनों में 5 नागरिकों की मौत। यह शुद्ध पागलपन है। भाजपा ने कश्मीर को 1990 के दशक में वापस धकेल दिया है और धारा 370 को एकतरफा रद्द कर दिया है। इसका खामियाजा निर्दोषों को भुगतना पड़ रहा है…।”
कश्मीरनामा के लेखक अशोक कुमार पांडे इन हत्याओं के बाद सेना और सुरक्षाबलों पर सवाल खड़ा करते हैं। वह पूछते हैं कि इतनी सेना, पुलिस, राज्यपाल शासन, केंद्र में शासन और 370 हटाने के बाद वह क्यों हो रहा जो 17 साल से नहीं हुआ था।
अब यहाँ ये बात मालूम हो कि आर्टिकल 370 के रद्द होने के ख़िलाफ़ वामपंथी हमेशा से थे। लेकिन आज जब घाटी में हिंदू और सिख को भीड़ से निकाल कर मारने की बात सामने आई तो ये लोग उस कट्टरपंथ और आतंकवाद के ख़िलाफ़ बोलने की जगह अपना एजेंडा चलाने में लगे हैं। शायद इन्हें लगा कि हिंदू और सिखों की मौत पर ये एक बार दोबारा अपनी रोटियाँ सेंक सकते हैं। लेकिन इनसे पूछने वाली बात ये है कि क्या अगर आर्टिकल 370 को दोबारा घाटी में लागू कर दिया जाए तो ऐसी घटना खत्म हो जाएगी? क्या अगर आर्टिकल 370 रिस्टोर हो तो आतंकी दोबारा घाटी में नहीं आएँगे? जवाब है नहीं।
1990 में जो कश्मीर में हुआ वो सबूत है इस बात का कि आर्टिकल 370 ने घाटी में कट्टरपंथ को खुलेआम बढ़ने का हक दिया हुआ था। मगर कट्टरपंथियों के साथ वामपंथियों चाहते हैं कि लोग अब इनकी बात पर गौर करें और सोचें कि यही तो हालात पहले भी थे, मोदी सरकार ने बदल क्या दिया। इस घटना में आतंकियों को पकड़ने की माँग से ज्यादा सरकार, सेना को कोसना स्पष्ट तौर पर सिर्फ मौकापरस्ती है जो आतंकियों का मजहब देख उनके किए अपराध का सारा ठीकरा भारत सरकार पर फोड़ देती है।