जम्मू-कश्मीर में देश विरोधी गतिविधियों में शामिल सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए सरकार ने 6 सदस्यीय एक समिति का गठन किया है। इस समिति का गठन गुरुवार (जुलाई 30, 2020) को संविधान के अनुच्छेद 311 (2) (c) के तहत मामलों की जाँच और सिफारिश करने के लिए किया गया।
ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार इस समिति का गठन देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त कर्मचारियों का पता लगाने और उन्हें नौकरी से बर्खास्त करने के लिए किया गया है।
इस पैनल की अध्यक्षता मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम द्वारा किया जाएगा। इस पैनल में गृह सचिव और पुलिस प्रमुख के अलावा अन्य सदस्य भी शामिल होंगे। समिति उन सभी मामलों की जाँच करेगी, जिनका उल्लेख गृह विभाग और पुलिस द्वारा किया गया है। बताया जा रहा है कि ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ भारतीय संविधान की धारा 311 के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।
खबर है कि पैनल की सिफारिश के आधार पर, देश विरोधी गतिविधियों में शामिल कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसके अलावा उन सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जा सकती है, जो इस वक्त हिरासत में हैं।
बता दें, सोशल मीडिया पर फर्जी एकाउंट बनाकर देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले कर्मचारी भी इस प्रावधान के दायरे में आएँगे। इसके अलावा हिरासत में बंद कर्मचारियों के ऊपर भी ये प्रावधान लागू होगा।
नए प्रावधान के तहत जाँच की जरूरत नहीं
जानकारी के मुताबिक अगर जम्मू-कश्मीर पुलिस, केंद्र शासित प्रदेश की सुरक्षा को खतरे में डालने में शामिल कर्मचारियों के खिलाफ आरोपों को दबाती है, तो ही इन मामलों की जाँच के लिए सामान्य प्रशासन विभाग से सिफारिश की जाएगी।
कथित तौर पर, पुलिस जाँच रिपोर्ट और कोलैटरल सबूत के आधार पर अपने मामले को वापस ले सकते है। इस प्रकार इसमें किसी भी जाँच की आवश्यकता नहीं होगी। विभाग इसके बाद ही निलंबन या बर्खास्तगी का आदेश जारी करेगा।
बता दें कि सरकार को पहले पुलिस की निष्क्रियता और प्रशासनिक लापरवाही के बारे में कई शिकायतें मिली थीं। मगर राजनीतिक दबाव के कारण, सुरक्षा को खतरे में डालने या सशस्त्र बलों के खिलाफ लोगों को उकसाने के लिए कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 1990 में 5 सरकारी कर्मचारियों को देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप और अन्य कर्मचारियों के 73 दिन की हड़ताल के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया। इसके अलावा 1993 में एक पुलिस विद्रोह के बाद लगभग 130 पुलिसकर्मियों को निकाल दिया गया था, लेकिन फिर उन्हें फायर विभाग और अन्य सेवाओं में रखा गया था।