कर्नाटक में चल रहे बुर्का विवाद (Hijab Controversy) पर हाईकोर्ट में याचिकाएँ दायर की गई है। इन याचिकाओं में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई है। मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की 3 जजों की फुल बेंच आज मंगलवार, (15 फरवरी, 2022) को सुनवाई की।
कर्नाटक हिजाब मामले में मंगलवार को भी हाईकोर्ट से कोई फैसला नहीं हो पाया। बेंच ने सुनवाई 16 फरवरी तक बढ़ा दी है। हालाँकि, इससे पहले देवदत्त कामत ने कहा था कि सुनवाई मार्च के बाद करें, क्योंकि इस हिजाब विवाद का चुनाव में फायदा लेने की कोशिश हो रही है। इस पर बेंच ने कहा कि ये चुनाव आयोग से जुड़ा मामला है हमसे जुड़ा नहीं।
याचिकाकर्ता के वकील देवदत्त कामत ने भारत के संविधान का कन्नड़ में आधिकारिक अनुवाद बेंच के सामने रखा। दक्षिण अफ्रीका के नोज पिन केस का हवाला देते हुए कहा, ” दक्षिण अफ्रीका में 2004 के सुनाली पिल्ले बनाम डरबन गर्ल्स हाई स्कूल केस का जिक्र किया। जहाँ स्कूल ने लड़कियों को नाक में नथ पहनने की अनुमति नहीं दी थी। स्कूल का तर्क था कि यह स्कूल के कोड ऑफ कंडक्ट के खिलाफ है।”
Sr advocate Kamat, for petitioner, refers to a judgment of a South Africa court. Issue was whether a Hindu girl with roots in South India could wear nose ring in school
— ANI (@ANI) February 15, 2022
He refers to the judgement which says that this case is not about uniforms,but exemptions to existing uniforms
हाई कोर्ट में सीनियर वकील देवदत्त कामत (Devdutt Kamat) ने कुंडापुरा कॉलेज के दो स्टूडेंटस की अर्जी पर पैरवी करते हुए कहा कि सिर पर स्कार्फ लगाने से शांति व्यवस्था को कोई नुकसान नहीं हो सकता। वहीं हाई कोर्ट के आदेश के बाद सोमवार से ही राज्य में स्कूल-कॉलेज खोल दिए गए हैं। हाई कोर्ट ने अगले आदेश तक राज्य के स्कूल-कॉलेजों में हर तरह के धार्मिक पोशाक पर रोक लगाई है। लेकिन अभी भी मुस्लिम छात्राओं के हिजाब में कॉलेज आने से कुछ छिटपुट विवाद भी जारी है। वहीं कोर्ट कल भी इस मामले पर सुनवाई करेगा।
Senior advocate Devadatt Kamat says – our Constitution follows positive secularism, not like Turkish secularism, that is negative secularism. He says – our secularism ensures that everyone's religious rights are preserved.
— ANI (@ANI) February 15, 2022
आज की सुनवाई की कुछ मुख्य बातें:
अधिवक्ता का उल्लेख है कि न्यायालय का अंतरिम आदेश केवल उन महाविद्यालयों के लिए है जिनके पास यूनिफॉर्म है। लेकिन इसके बावजूद मुस्लिम लड़कियों को उन कॉलेजों में भी हिजाब हटाने के लिए मजबूर किया जा रहा है जिनके पास यूनिफॉर्म नहीं है।
Senior advocate Devadatt Kamat says – our Constitution follows positive secularism, not like Turkish secularism, that is negative secularism. He says – our secularism ensures that everyone's religious rights are preserved.
— ANI (@ANI) February 15, 2022
सीजे अवस्थी: स्पष्टीकरण के लिए एक आवेदन दायर करें।
एडवोकेट मोहम्मद ताहिर: अदालत के आदेश का दुरुपयोग हो रहा है। मुस्लिम छात्राओं से जबरन हिजाब उतरवाया जा रहा है। गुलबर्गा के एक उर्दू स्कूल में अधिकारियों ने शिक्षकों और मुस्लिम छात्राओं पर जोर-जबरदस्ती डालते हुए हिजाब उतारने को कहा। अधिकारियों की ओर से हाई कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल हो रहा है। मैंने सारी मीडिया रिपोर्ट को कोर्ट में पेश कर दिया है।
चीफ जस्टिस: हम इस पर सभी की राय जानने के बाद निर्देश जारी करेंगे।
एडवोकेट जनरल- हलफनामा स्पष्ट नहीं है। वे उचित अप्लीकेशन लेकर आएँ फिर हम जवाब देंगे। हलफनामा किसी याचिकाकर्ता की ओर से नहीं फाइल किया गया है।
देवदत्त कामत- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार यदि कोई धार्मिक प्रथा घृणित है तो राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता के आधार पर उसे रोक सकता है। लेकिन यह मामला अलग है। सिर पर स्कार्फ पहनने से कोई नुकसान नहीं हो सकता। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम में संविधान की धारा 25 के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर अंकुश लगाने का कोई इरादा नहीं था। ड्रेस कोड पर 5 फरवरी का सार्वजनिक आदेश औचित्यहीन है, जो हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है।
देवदत्त कामत- राज्य का कहना है कि सरकारी आदेश में शब्द सार्वजनिक सुव्यवस्ते का अर्थ सार्वजनिक व्यवस्था नहीं है। संविधान का आधिकारिक कन्नड़ अनुवाद सार्वजनिक व्यवस्था के लिए सार्वजनिक सुव्यवस्थ शब्द का उपयोग करता है। मुझे आश्चर्य है कि राज्य ने यह तर्क दिया।
जस्टिस कृष्ण दीक्षित- एक सरकारी आदेश में इस्तेमाल किए गए शब्दों को एक कानून के शब्दों की तरह नहीं पढ़ा जा सकता है।
देवदत्त कामत- मैं आदरपूर्वक मानता हूँ कि सरकारी आदेश में लिखे गए सार्वजनिक सुव्यवस्थ का दो अर्थ नहीं बनता है और इसका मतलब सार्वजनिक व्यवस्था ही है।
कामत ने अपनी दलीलों में कहा, “शिक्षा अधिनियम में किसी छात्र को ड्रेस का पालन नहीं करने पर निष्कासित करने का कोई प्रावधान नहीं है। यदि आपको एक अतिरिक्त पोशाक के लिए निष्कासित कर दिया जाता है, तो आनुपातिकता का सिद्धांत आ जाएगा। यह सिर पर दुपट्टा डालने और ड्रेस न बदलने की एक अहानिकर प्रथा है। यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक पहलू है। यदि सिर पर स्कार्फ पहनने के लिए छोटी छूट दी जाती है, तो यह वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अनुरूप होगा।”
कामत ने कहा: राज्य का कहना है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हैं, हम तुर्की के सैनिक नहीं हैं। हमारा संविधान सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता प्रदान करता है और सभी धर्मों को मान्यता दी जानी चाहिए। अगर राज्य कहता है कि अगर कोई सिर पर दुपट्टा पहनता है और इससे गलता होगा, तो हम इसकी अनुमति नहीं दे सकते, यह एक अनुचित तर्क है।
कामत ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखित उच्चतम न्यायालय के फैसले का उदाहरण दिया जिसमें बढ़ती असहिष्णुता के बारे में उल्लेख किया गया है। कामत ने कहा, “राज्य एक सरल तर्क नहीं दे सकता है कि सार्वजनिक व्यवस्था बाधित है और उसे अधिकारों का आनंद लेने के लिए एक सकारात्मक वातावरण बनाना है।” जैसे ही कामत ने कहा कि वह कनाडा के फैसले का हवाला देना चाहते हैं।
चीफ जस्टिस: ये निर्णय इस मामले के मुद्दों के लिए कैसे प्रासंगिक हैं? हम अपने संविधान का पालन करते हैं।
कामत ने अब बताया कि कैसे साउथ अफ्रीका के कोर्ट ने स्कूल के इस तर्क को खारिज कर दिया कि नाक-स्टड की अनुमति देने से शरीर-छेदने और अन्य भयानक परेड के दावों की अनुमति मिल जाएगी। कोर्ट ने कहा कि स्कूल अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को समझने में विफल रहा है और उनका अनादर है।
गौरतलब है कि सुनवाई से पहले अदालत ने मीडिया से अपील करते हुए कहा कि मीडिया को ऐसे संवेदनशील विषय पर और जिम्मेदार बनने की जरूरत है। कल सोमवार को भी हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर दिया गया सरकारी आदेश दिमाग का गैर-उपयोग है। उनका कहना था कि यह सरकारी आदेश अनुच्छेद-25 के तहत है और यह कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है। हिजाब की अनुमति है या नहीं, यह तय करने के लिए कॉलेज कमेटी का प्रतिनिधिमंडल पूरी तरह से अवैध है।
वहीं, सुनवाई के दौरान एक वकील ने अपने आवेदन में इस मुद्दे पर मीडिया और सोशल मीडिया टिप्पणियों को प्रतिबंधित करने के लिए कहा क्योंकि अन्य राज्यों में चुनाव चल रहे हैं। इस पर कर्नाटक हाइकोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग इस पर कंसीडर करता है तो हम इस मुद्दे पर विचार कर सकते हैं।
बता दें कि सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने मीडिया से हिजाब मामले में बढ़ते विरोध को देखते हुए जिम्मेदार होने का अनुरोध किया है। वकील सुभाष झा का कहना है कि उनका अनुरोध है कि सभी पक्षों को अपने सबमिशन को नियम पुस्तिका में सीमित करना चाहिए और सांप्रदायिक रंग नहीं देना चाहिए। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने याचिकाकर्ता की दलीलों की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा कि सरकार का आदेश कानून की जरूरतों को पूरा किए बिना प्रयोग किया गया है। ये अनुच्छेद 25 के मूल में हैं और ये कानूनी रूप से टिकने वाला नहीं है।