कर्नाटक हिजाब विवाद पर आज (21 फरवरी 2022) हाईकोर्ट में हुई सुनवाई एक बार फिर बिन किसी नतीजे पर पहुँचे कल पर टल गई। इस दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट के सामने इस बात को स्पष्ट किया कि उन्होंने अपने 5 फरवरी वाले सरकारी आदेश में हिजाब पर प्रतिबंध नहीं लगाया। उन्होंने सिर्फ कॉलेज विकास समितियों को यूनिफॉर्म पर निर्णय लेने का अधिकार दिया है।
सीजे ऋतुराज अवस्थी, जस्टिज जेएम खाजी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की बेंच के सामने एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवदगी ने अपनी तमाम दलीलें रखीं। उन्होंने उन चार अवसरों का जिक्र किया जब कुरान को लेकर दी गई दलीलों को नकारा गया था। उन्होंने बताया कि हिजाब या तो इस्लाम में अनिवार्य हो सकता है या फिर वैकल्पिक। उन्होंने गौर करवाया है कि कैसे याचिकाकर्ता ने इस्लाम मानने वाले हर लड़की के लिए हिजाब को ड्रेस फॉरमैट में शामिल करने की माँग की है।
AG: The order dated 5th Feb if read as it is gives complete autonomy to the institution. The question of #Hijab, we have not prescribed. Whether students must be allowed is that element of introducing a religious aspect should not be there #HijabRow
— LawBeat (@LawBeatInd) February 21, 2022
शुक्रवार की सुनवाई में एडवोकेट जनरल ने कोर्ट के सामने दलील दी कि राज्य सरकार का फैसला संस्थानों को यूनिफॉर्म तय करने की स्वतंत्रता देता है। कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की प्रस्तावना धर्मनिरपेक्ष वातावरण को बढ़ावा देना है। उन्होंने राज्य का पक्ष रखते हुए बताया कि स्कूल-कॉलेजों में किसी धार्मिक पहचान वाले कपड़े को नहीं पहना जाना चाहिए।
उन्होंने सबरीमाला का उदाहरण दिया और कहा कि यदि कोई प्रथा वैकल्पिक है तो उसे धर्म में आवश्यक नहीं कहा जा सकता। आवश्यक होने का दावा किया जाने वाला ऐसा अभ्यास होना चाहिए कि उसके न होने से धर्म की प्रकृति ही बदल जाए। एजी ने कोर्ट के आगे तांडव नृत्य और सबरीमाला पर हुए फैसलों का उदाहरण दिया।
AG: Either to believe or not to believe, what you manifest is practice of religion. Ambedkar asked why do you insist on someone to profess a religion? #HijabRow
— LawBeat (@LawBeatInd) February 21, 2022
एजी बोले कि देश को बाँटने वाली धार्मिक प्रथाओं को कुचलना जरूरी है। उन्होंने कहा कि खाने-पीने या कपड़े पहनने के तरीके को धार्मिक प्रथा से नहीं जोड़ा जा सकता। उन्होंने आर्टिकल 25 से जुड़े पाँच फैसले भी कोर्ट में पढ़े और बताया कि परिवर्तनीय भाग या प्रथाएँ धर्म/मजहब का मूल नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को हुई इस बहस के दौरान एक अन्य वकील ने कोर्ट के सामने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि लड़कियों को लोगों के सामने हिजाब उतारने के लिए कहा जा रहा है। उन्हें कम से कम एक अलग निजी जगह दी जानी चाहिए। टीवी चैनल जा रहे हैं और इसकी शूटिंग कर रहे हैं। यह बाल अधिकारों का हनन है। इस पर बेंच ने कहा आप जाएँ और सिर्फ टीवी चैनल के सामने बहस करें। बता दें कि शुक्रवार को कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब विवाद पर लगातार 7वें दिन सुनवाई हुई है।
Counsel: Some women are being asked to remove the Hijab in front of people. A separate place maybe given. It has come in TV channel.
— LawBeat (@LawBeatInd) February 21, 2022
COurt: GO and argue before the TC channel only #HijabRow