संगठन ‘India 4 Kashmir’ (I4K) ने जम्मू कश्मीर में हमारी खोई हुई जमीन को पुनः हासिल करने के लिए और प्रदेश में कश्मीरी हिन्दुओं को पूरे गरिमा एवं सम्मान के साथ पुनर्वासित करने के लिए ’33वाँ निष्कासन दिवस’ मनाया। 19 जनवरी, 1990 को कश्मीरी हिन्दू ‘काला दिन’ के रूप में मनाते हैं, क्योंकि इसी दिन वहाँ की मस्जिदों से साजिश के तहत घोषणा कर के भगाया गया था और उनका नरसंहार किया गया था।
इस प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं ने आम नागरिकों के साथ मिल कर 19 जनवरी, 1990 की भयावह रात को घाटी में इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा अंजाम दिए गए नरसंहार में में बलिदान हुए कश्मीरी हिन्दुओं की याद में जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया गया और साथ ही श्रद्धांजलि सभा भी आयोजित की गई। काली पट्टी बाँधे, हाथों में तख्तियाँ-बैनर लिए प्रदर्शनकारियों ने अपने धर्म का पालन करने के लिए मारे गए निर्दोष हिन्दू समाज के सदस्यों के सम्मान में ये प्रदर्शन किया गया।
उस तारीख़ को इस्लामी कट्टरपंथियों ने ‘रलिव, गालिव, चलिव’ (इस्लामी धर्मांतरण करो या फिर प्रदेश छोड़ कर भागो) के नारे के साथ हिन्दुओं पर हमला किया था। साथ ही वो हिन्दुओं को अपनी महिलाओं को छोड़ कर जाने के लिए कह रहे थे। ताज़ा प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं ने माँग की है कि भारत सरकार आधिकारिक तौर पर इसे ‘समुदाय के नरसंहार’ के रूप में मान्यता दे और इतिहास की किताबों में इस घटना का उल्लेख भी किया जाए।
2 दशक बाद भी कश्मीरी पंडितों के दर्द की इंसाफी की गुहार करते हुए जंतर मंतर पर प्रदर्शन#KashmiriHinduGenocide #KashmiriPandits #KashmiriPandit #KashmirGenocide1990 #KashmiriPanditGenocide pic.twitter.com/Lz74ri89Un
— Vishal_Journalist🇮🇳🚩 (@vishal_stan) January 19, 2023
I4K ने अपने बयान में कहा, “जबरन निर्वासन में रह रहे कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाया जाए। नरसंहार से इनकार करने का तात्पर्य है कि आप इसके भागीदार बन रहे हैं। हम मृतकों और उन लोगों के लिए न्याय की माँग करते हैं, जिन्हें 33 वर्षों से अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में रहने के लिए मजबूर कर दिया गया है। 1990 में 7 लाख कश्मीरी पंडितों को बेघर कर दिया गया था। आज तक घाटी में उनकी वापसी के लिए अनुकूल समाधान नहीं मिल पाया है।”