सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (जनवरी 8, 2021) को केरल की ईसाई महिलाओं की एक रिट याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, जिसमें मालंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च में अनिवार्य कन्फेशन की परम्परा को चुनौती दी गई है। याचिका में इसे धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया गया है। मुख्य याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में संशोधन कर और नए फैक्ट्स आलोक में लाने की अनुमति भी दे दी है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस रमासुब्रमण्यन की पीठ इस मामले को सुनेगी। हालाँकि, इस दौरान पाँचों ईसाई महिलाओं के वकील मुकुल रोहतगी से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि वो इस मामले में केरल हाईकोर्ट क्यों नहीं जा रहे हैं। इसके जवाब में रोहतगी ने कहा कि सबरीमाला जजमेंट में ऐसे सवाल उठ चुके हैं, जिस पर 9 सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है, इसलिए हाईकोर्ट ऐसे विचाराधीन मामलों में फैसला नहीं सुना सकती। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कन्फेशन के एवज में पादरी यौन फेवर माँगते हैं, सेक्स करने को कहते हैं।
इन महिलाओं का कहना था कि उन्हें अपने चुने हुए पादरी के समक्ष भी कन्फेशन करने दिया जाए। साथ ही ये भी कहा गया कि ईसाई महिलाओं के लिए कन्फेशन अनिवार्य करना असंवैधानिक है, क्योंकि पादरियों द्वारा इसे लेकर ब्लैकमेल करने की घटनाएँ सामने आई हैं। केरल और केंद्र की सरकारों को भी इस मामले में पक्ष बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत के अटॉर्नी जनरल केसी वेणुगोपाल से भी प्रतिक्रिया माँगी है। AG ने बताया कि ये मामला मालंकारा चर्च में जैकोबाइट-ऑर्थोडॉक्स गुटों के संघर्ष से उपज कर आया है।
ये संघर्ष भी सुप्रीम कोर्ट पहुँचा था, लेकिन तीन जजों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला दे दिया था। मुकुल रोहतगी ने ध्यान दिलाया कि ऐसे मामले संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ ये भी देखना होगा कि क्या कन्फेशन एक अनिवार्य धार्मिक प्रक्रिया हुआ करती थी। किसी बिलिवर की ‘राइट टू प्राइवेसी’ का धार्मिक प्राधिकरण के आधार पर पादरी द्वारा उल्लंघन किया जा सकता है या नहीं, उन्होंने इस पर भी विचार करने की सलाह दी।
उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ पादरी महिलाओं द्वारा किए गए कन्फेशन का गलत इस्तेमाल करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, जिस पर रोहतगी ने कहा कि वो याचिका में संशोधन कर ऐसी घटनाओं को जोड़ेंगे। कन्फेशन को लेकर इससे पहले भी याचिकाएँ आ चुकी हैं। कन्फेशन के अंतर्गत लोग पादरी की उपस्थिति में अपने ‘पापों’ को लेकर प्रायश्चित करते हैं।
2018 में केरल हाईकोर्ट ने कन्फेशन को हटाने की याचिका को रद्द करते हुए कहा था कि जब कोई किसी खास धर्म को मानता है तो इसका अर्थ है कि वो इसके अंतर्गत आने वाले नियम-कानूनों को भी स्वीकार करता है। हाईकोर्ट ने कहा था कि ये प्रक्रिया ईसाई महजब का एक अंग रहा है और याचिककाकर्ता किसी धर्म की परम्पराओं से नाराज हैं तो वो उसे छोड़ सकते हैं। NCW भी यौन शोषण के आरोपों के कारण इस प्रक्रिया को बंद करने की सलाह दे चुका है।
The #SupremeCourt on Friday agreed to hear a PIL by a group of Christian women from Kerala questioning the practice of compulsory confessions in the Malankara Orthodox Syrian Church, terming the practice as violative of the constitutional rights to freedom of religion & privacy. pic.twitter.com/PD1bHPobQl
— IANS Tweets (@ians_india) January 8, 2021
केरल के एक नन ने अपनी आत्मकथा में आरोप लगाया था कि एक पादरी अपने कक्ष में ननों को बुला कर ‘सुरक्षित सेक्स’ का प्रैक्टिकल क्लास लगाता था। इस दौरान वह ननों के साथ यौन सम्बन्ध बनाता था। उसके ख़िलाफ़ लाख शिकायतें करने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा। उसके हाथों ननों पर अत्याचार का सिलसिला तभी थमा, जब वह रिटायर हुआ। सिस्टर लूसी ने लिखा था कि उनके कई साथी ननों ने अपने साथ हुई अलग-अलग घटनाओं का जिक्र किया और वो सभी भयावह हैं।