Sunday, November 24, 2024
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जो पत्रकार ग्रेनेड के साथ धराया… वो कॉलेज में ही बन गया था आतंकी, तब गिरफ़्तारी पर भड़के थे नेता-पत्रकार

वो LeT के ही एक सरगना मोहम्मद अयूब लोन की पूरी मदद कर रहा था और उसके सहायक के रूप में काम कर रहा था। उसने आतंकियों तक गोला-बारूद और खतरनाक हथियार पहुँचाए थे।

जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लाल चौक के पास स्थित हरि सिंह हाई स्ट्रीट पर मंगलवार (10 अगस्त, 2021) को एक बम विस्फोट हुआ, जिसमें 11 लोग घायल हो गए। उसी दिन, उसी इलाके में, कुछ ही देर बाद आदिल फारूक नाम का पत्रकार ग्रेनेड के साथ धराया। जम्मू कश्मीर पुलिस ने बताया कि आदिल फ़ारूक़ भट स्थानीय ‘CNS न्यूज़ एजेंसी’ के लिए काम करता है। उसके पास से दो ग्रेनेड बरामद हुए हैं।

उसे जिस मक्का मार्केट से गिरफ्तार किया गया, वो क्षेत्र लाल चौक से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर है। एक और बात जानने लायक है कि आदिल फारूक भट को फरवरी 2019 में भी गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उसके बाद उसे छोड़ दिया गया था। आतंकियों के साथ उसके संपर्कों को लेकर पुलिस को पहले से ही शक था और उस पर नजर रखी गई थी। 2 साल पहले उसकी गिरफ़्तारी पर खूब हंगामा मचाया गया था।

तब ‘ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ के अध्यक्ष और अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुख ने ‘सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA)’ के तहत आदिल फारूक की गिरफ़्तारी की निंदा करते हुए कहा था कि झूठे मामलों में फँसा कर सरकार छात्रों और युवाओं का करियर बर्बाद कर रही है। तब आदिल फारूक ‘सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर’ में पत्रकारिता का छात्र हुआ करता था। उसे जम्मू के कोट भलवाल जेल में डाला गया था।

मीरवाइज ने उसे तुरंत छोड़े जाने की माँग की थी। अब साफ़ हो गया है कि तब के ‘छात्र और युवा’ ने किस तरह का ‘करियर’ चुन लिया था। इस ‘ग्रेनेड वाली पत्रकारिता’ के बचाव के लिए जम्मू कश्मीर के नेताओं ने आवाज़ उठाई थी। गनीमत ये है कि नए जम्मू कश्मीर में मीरवाइज उमर फारूक पिछले 2 सालों से जेल में बंद है और अब वो ट्वीट कर के आतंकियों की पैरवी नहीं कर सकता। उसके कई साथी भी जेल में सड़ रहे हैं।

एक और बात जानने लायक है कि हरि सिंह हाई स्ट्रीट में ही ‘सीमा सुरक्षा बल (SSB)’ का एक बंकर है, जो आतंकियों का निशाना बना। SSB की 14वीं बटालियन के उसी बंकर को निशाना बना कर बम फेंका गया था। लेकिन, ये ग्रेनेड सड़क पर ब्लास्ट हो गया और कई नागरिक घायल हो गए। घायलों को अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराना पड़ा। इसके बाद चलाए गए तलाशी अभियान में आदिल फारूक भट दबोचा गया।

उसकी गतिविधियाँ पुलिस को संदिग्ध लगी थीं और जब उसके बैग की तलाशी ली गई तो उसमें से 2 ज़िंदा ग्रेनेड मिले। बम ब्लास्ट और ग्रेनेड बरामद होने के मामले में दो अलग-अलग FIR दर्ज की गई है। अभी और गिरफ्तारियाँ हो सकती हैं। पुलिस का कहना है कि दोनों मामले आपस में जुड़े हुए हैं। जाँच के बाद अब साफ़ हो जाएगा। आदिल फारूक दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा स्थित पैम्पोर के ख्रेव इलाके का रहने वाला है।

आदिल फारूक भट आज अचानक आतंकी नहीं बना है, बल्कि छात्र जीवन से ही ऐसा ही करता रहा है। ये अलग बात है कि तब घाटी में अब्दुल्ला व मुफ़्ती परिवार सबसे ताकतवर हुआ करता था और ऐसे तत्वों को भरपूर संरक्षण मिलता था। फरवरी 2019 में इसी भट को आतंकियों को चीजें मुहैया कराने के आरोप में दबोचा गया था। वो ‘लश्कर-ए-तैय्यबा (LeT)’ के ओवरग्राउंड आतंकी के रूप में काम कर रहा था।

साथ ही वो LeT के ही एक सरगना मोहम्मद अयूब लोन की पूरी मदद कर रहा था और उसके सहायक के रूप में काम कर रहा था। उसने सुरक्षा बलों को धोखे में रख कर आतंकियों तक गोला-बारूद और खतरनाक हथियार पहुँचाए थे। अप्रैल 2020 में उसे छोड़ दिया गया था। सोचिए, इस दौरान उसके पहुँचाए हथियारों से कितने निर्दोषों का खून बहा होगा। लेकिन नहीं, वो तो ‘छात्र’ था, ‘युवा’ था, अब ‘पत्रकार’ है।

तब आरिफ शाह नाम के पत्रकार ने भी आदिल की गिरफ़्तारी को आधार बना कर दावा किया था कि जम्मू कश्मीर में पत्रकारों के साथ ‘सबसे बुरा व्यवहार’ हो रहा है। उसने उसे तुरंत रिहा करने और उसके करियर के साथ न खेलने की अपील की थी। अब पता चला है कि आतंकियों का नेटवर्क, सिर्फ राजनीति ही नहीं बल्कि मीडिया में भी फैला हुआ है। रंगे हाथों धराए आदिल फारूक तो इसका जीता-जागता गवाह है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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