तमिलनाडु के मदुरै में एक लड़के के रूप में पैदा हुईं ट्रांसवुमन माया ज़फर आज भले ही हॉलीवुड फिल्मों तक में काम कर चुकी हों, लेकिन बचपन से उन्हें काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा है। माया ज़फर बताती हैं कि उनका रंग तब गोरा-चिट्टा था, लेकिन चाल-चलन लड़कियों जैसी थी। उनका कहना है कि उन्हें लड़का होने से नफरत थी और जब वो खुद को आईने में नंगी देखती थी, तो उन्हें महसूस होता था कि वो गलत शरीर में हैं। बचपन में वो अपनी माँ की चुन्नियों से खेला करती थीं और मेकअप करती थीं।
ट्रांसवुमन माया ज़फर ने ‘दैनिक भास्कर’ के लिए लिखे गए लेख में अपने जीवन की कहानी साझा की है। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ी, वो खुद को लड़की समझती गईं। लेकिन, इस बात से उनके अब्बू को नफरत थी। वकौल माया ज़फर, उनके अब्बू हमेशा उन्हें बोलते थे, “तू छक्का है। तू लड़के जैसा क्यों पैदा हुआ? तेरा कुछ नहीं हो सकता।” माया ज़फर ने बताया है कि किस तरह उनके अब्बू अपनी बड़ी-बड़ी उँगलियों से उन्हें चुभो कर दर्द देते थे और चुटियाँ काट-काट कर शरीर पर निशान बना दिया करते थे।
यहाँ तक कि जब घर में कोई कार्यक्रम आयोजित होता था या रिश्तेदार वगैरह जमा होते थे, तो उनके सामने ही माया ज़फर की उनके अब्बू द्वारा जम कर पिटाई की जाती थी। वो कहती हैं कि कैंसर से मरने के बावजूद उनके अब्बू की उन्हें कभी याद नहीं आई, वो इतना प्रताड़ित करते थे। एक बार वो स्टूल पर बैठी हुई थीं तो उनके अब्बू ने उन्हें इसीलिए खूब पीटा क्योंकि उनका फिगर लड़कियों जैसा दिख रहा था। उन्हें फिर से वो पैंट न पहनने की हिदायत दी गई।
उनकी अम्मी उन्हें प्यार तो करती थीं, लेकिन लड़कियों वाले शौक रखने के कारण गुस्सा भी होती थीं। पिम्पल्स होने पर जब वो चेहरे पर हल्दी लगाती थीं, तब भी उन्हें गुस्से का सामना करना पड़ता था। तीन भाई-बहनों में उनका बड़ा भाई उनसे काफी हट्टा-कट्टा था, लेकिन उसके दोस्त उसे बोलते थे कि तू भी अपने भाई की तरह ‘छक्का’ है। इस पर भाई वापस आकर माया ज़फर पर ही गुस्सा निकालता था और उन्हें पीटता था। दोस्तों से भी उन्हें पिटवाता था।
Sunday जज्बात: अब्बू मुझे छक्का कहते थे, खूब पीटते थे; डॉक्टर बनने के बाद मैं ट्रांस वीमेन बनी, हॉलीवुड फिल्मों में काम मिलाhttps://t.co/WOhlr6aT34 #TransWomen #hollywood #positivestory
— Dainik Bhaskar (@DainikBhaskar) November 21, 2021
उनका कोई दोस्त नहीं बना। वो अकेले स्कूल जाती-आती थीं। उनके अब्बू उन्हें ताना देते थे कि उनके बड़े भाई के कितने दोस्त हैं और वो कितना फेमस हैं, लेकिन तू नहीं है। माया ज़फर को उनके दोस्त भी मारते थे और लड़कियों वाली हरकतें छोड़ने को कहते थे। लेकिन, उन्होंने पढ़ने-लिखने की ठानी और डॉक्टर बनीं। फिर अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में उनका एडमिशन हुआ। उनका कहना है कि अमेरिका में ‘गे’ होना फैशनेबल था, इसीलिए उन्होंने खुद को ‘गे’ घोषित किया और एकाध डेट पर भी गईं, लेकिन बात नहीं बनी।
दोहरी ज़िंदगी से परेशान माया पूरी तरह महिला बनना चाहती थीं, इसीलिए उन्होंने साइको थेरेपी, हार्मोन थेरेपी और सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी शुरू की। सेक्स चेंज करवाने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि अब वो पूरी तरह महिला बन चुकी हैं। इस डेढ़ साल के दौरान उन्हें कई दवाओं का सेवन करना पड़ा और उनका शोषण भी हुआ। अमेरिका की सरकार ही उस अस्पताल में ऐसे मरीजों के खर्च उठाती थी। ‘मोहम्मद टू माया’ नाम की डॉक्यूमेंट्री भी बनी। कट्टर मुस्लिम परिवार में रहीं माया को हिन्दू धर्म पसंद है और वो मीनाक्षी मंदिर कई बार गई हैं। माया नाम भी उन्होंने इसीलिए चुना।