संसद की वित्तीय मामलों की स्थाई समिति ने संसद में प्रतिष्ठित आर्थिक और वित्तीय शोध संस्थानों का हवाला देते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत कर यह सूचित किया है कि 1980 से 2010 के बीच भारतीयों ने $490 अरब (₹34 लाख करोड़) काला धन देश के बाहर भेजा है। रिपोर्ट के अनुसार इसके अलावा भारी मात्रा में काला धन रियल एस्टेट, कीमती धातुओं, गुटका, शिक्षा, मनोरंजन, खुदाई जैसे क्षेत्रों में भी ‘इन्वेस्टमेंट’ के रूप में जमा है। रिपोर्ट में तीन संस्थानों NIPFP (राष्ट्रीय सार्वजनिक नीति एवं वित्त संस्थान), NCAER (नेशनल काउन्सिल ऑफ़ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च), NIFM (राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन संस्थान) द्वारा किए गए अध्ययनों के हवाले से यह बातें की गईं हैं।
2011 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने भारतीयों द्वारा देश-विदेश में इकठ्ठा काले धन के अध्ययन के लिए तीनों संस्थानों के अध्ययन को प्रायोजित करने का निर्णय किया था। यह तीनों थिंक टैंक अपने-अपने आँकड़ों को सामने रख रहे हैं। NIPFP के हिसाब से 1997-2009 के कालखंड में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.2% से 7.4% तक काला धन देश के बाहर गया है। NCAER ने 1980-2010 के बीच देश से बाहर गए काले धन का मूल्य $384 अरब (₹27 लाख करोड़) से $490 अरब (₹34 लाख करोड़) के बीच होने का अनुमान लगाया है। NIFM के हिसाब से भारत के बाहर 1990 से 2008 के बीच ~₹9.41 लाख करोड़ ($216 अरब) काला धन भारत से बाहर भेजा गया है।
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक देश के बाहर भेजा गया धन पैदा होने वाले काले धन का महज़ 10% है। “काले धन के उत्पादन या संग्रहण पर कोई विश्वसनीय अनुमान उपलब्ध नहीं है, और न ही ऐसे किसी अनुमान की गणना का कोई सर्वमान्य तरीका है।” समिति ने यह भी कहा कि उपरोक्त अनुमान भी महज़ अनुमान हैं, क्योंकि ऐसी किसी गणना को करने के किसी भी तरीके पर आम सहमति नहीं है। स्थाई समिति की यह रिपोर्ट पिछली लोकसभा में तत्कालीन स्पीकर सुमित्रा महाजन को लोक सभा भंग होने के ठीक पूर्व 28 मार्च को एक पैनल ने सौंपी थी, जिसके अध्यक्ष कॉन्ग्रेस नेता एम वीरप्पा मोईली थे।
पैनल ने यह भी लिखा है कि उसके आँकड़े समयाभाव के चलते अंतिम रूप में नहीं, बल्कि आरम्भिक हैं। पैनल ने इन्हें अंतिम रूप देने के लिए और भी लोगों, खासकर कि विशषज्ञों की राय लेने की भी अनुशंसा की है।