आज हम आपको राजस्थान के अजमेर के रहने वाले बुजुर्ग विजेंद्र सिंह राठौड़ और उनकी धर्मपत्नी लीला की प्रेम कहानी बता रहे हैं, जो अनोखी सी है। एक ट्रेवल एजेंसी में कार्यरत रहे विजेंद्र सिंह राठौड़ की पत्नी ने 2013 में उनसे चारधाम यात्रा के लिए आग्रह किया था। ट्रेवेल एजेंसी के ही एक टूर का केदारनाथ यात्रा पर जाना प्रस्तावित था। इसके बाद ये दोनों भी वहाँ के लिए चल निकले। केदारनाथ वो पहुँच भी गए, जहाँ उन्होंने एक लॉज में ठहरने का इंतजाम किया।
जहाँ उनकी पत्नी लीला लॉज में रुकी हुई थी, विजेंद्र कुछ काम से बाहर गए हुए थे। यही वो समय था, भारत ने पिछले कुछ दशकों के सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा को झेला। उत्तराखंड में बाढ़ और बारिश का कहर मच गया। बाढ़ का पानी केदारनाथ भी आ पहुँचा। जहाँ ये दोनों रुके हुए थे, वहाँ भी स्थिति अलग नहीं थी। सब सब कुछ थोड़ा शांत हुआ तो विजेंद्र जल्दी से उस लॉज की तरफ भागे, जहाँ उनकी पत्नी रुकी हुई थीं। लेकिन, वहाँ लगभग सब कुछ पानी के साथ बह चुका था।
किसी अनहोनी की आशंका से विजेंद्र सिंह राठौड़ भी डर गए। तरह-तरह के ख्याल उनके मन में आने लगे। लेकिन, उन्होंने अपने मन में ठान लिया कि लीला जीवित हैं और वो उन्हें खोज कर ही दम लेंगे। उनके पास पर्स में पत्नी की एक तस्वीर थी, जिसे वो हमेशा पास में रखते थे। ऐसे समय में जब चारों तरफ कई लोगों ने अपनों को खो दिया था और लाशें बिखरी पड़ी थीं, विजेंद्र सिंह राठौड़ का मन ये मैंने के लिए तैयार नहीं था कि उनकी पत्नी नहीं रहीं।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियाँ राहत कार्यों में जुटी हुई थी और विजेंद्र सिंह राठौड़ अपनी पत्नी की खोज में। वो लोगों से तस्वीर दिखा-दिखा कर पूछ रहे थे कि क्या उन्होंने इस महिला को देखा है। कहीं से सकारात्मक जवाब नहीं मिल रहा था। घर में उनके बच्चे भी किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत थे, जिन्हें फोन से उन्होंने ये जानकारियाँ दी थीं। सेना के अधिकारियों तक से संपर्क किया, लेकिन पानी में बहने की बात ही सामने आ रही थी। बेटी ने भी लगभग मान लिया था की माँ नहीं रहीं, लेकिन विजेंद्र ने उसे डाँटा और कहा कि वो जीवित हैं।
(9/17)विभाग से एक फोन आया। एक कर्मचारी ने कहा कि लीला मृत घोषित कर दी गई है और हादसे में जान गवां चुके लोगों को सरकार मुआवजा दे रही है। मृत लीला के परिजन भी सरकारी ऑफिस में आकर मुआवजा ले सकते हैं।
— द बेटर इंडिया (The Better India – Hindi) (@TbiHindi) December 28, 2021
विजेंद्र ने मुआवज़ा लेने से भी इंकार कर दिया।
परिजनों ने कहा कि अब तो
सरकार की तरफ से उनके घर फोन भी आया कि लीला मर चुकी हैं और उन्हें मुआवजा दिया जा रहा है, लेकिन उन्होंने इस मुआवजे को लेने से भी इनकार कर दिया। सरकारी दस्तावेजों में वो भले ही मृत थीं, लेकिन विजेंद्र सिंह राठौड़ के मन में नहीं। उन्होंने उत्तराखंड के कई इलाके छान मारे उनकी तलाश में। 19 महीनों में उन्होंने 1000 से अधिक गाँव छान मारे। वो 27 जनवरी, 2015 का दिन था जब एक गाँव में अचानक एक राहगीर ने तस्वीर देख कर कहा कि उसने इस महिला को देख रखा है।
उसने बताया कि ये महिला गाँव में ही घूमती रहती हैं और उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं लगती है। उस गाँव में एक चौराने के कोने में उन्हें उनकी पत्नी बैठी हुई मिलीं। काफी देर तक वो उनका हाथ पकड़ कर रोते रहे। लीला उन्हें पहचान तक नहीं पा रही थीं। 12 जून, 2013 को वो उन्हें अपने घर ले गए। 19 महीने बाद परिवार के साथ उनका पुनर्मिलन हुआ। बॉलीवुड की ‘राम-लीला’ की कहानी के दौर में ये ‘विजेंद्र-लीला’ की कहानी एक अलग सी है, अनोखी है।
‘द बेटर इंडिया’ ने सिद्धार्थ सिंह द्वारा शब्दों में पिरोई गई इस सच्ची घटना की कहानी को ट्विटर पर साझा किया है, जिसे खूब पसंद किया जा रहा है। 2017 में ही खबर आई थी कि बॉलीवुड के निर्माता सिद्धार्थ रॉय कपूर इस प्रेम कहानी पर फिल्म भी बनाने जा रहे हैं। विजेंद्र की दृढ इच्छाशक्ति और पत्नी से प्रेम के वो कायल हो गए। उस समय आमिर खान के इसमें मुख्य किरदार अदा करने की बात सामने आई थी, लेकिन ये प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ सका। 19 महीने और 1000 गाँवों में की गई इस खोज को सचमुच परदे पर दिखाना एक कठिन टास्क होगा।