मद्रास हाई कोर्ट ने एक हिन्दू महिला को उसके पति के अंतिम संस्कार में हिन्दू रीति रिवाज पूरे करने की अनुमति दे दी है। हालाँकि, उसके पति का अंतिम संस्कार इस्लामिक कानूनों के हिसाब से होगा। महिला का पति पहले हिन्दू ही था लेकिन बाद में एक मुस्लिम महिला से निकाह करने के लिए उसने इस्लाम अपना लिया था। इस मामले को सुनते हुए कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं।
क्या है पूरा विवाद?
शिवगंगा के रहने वाले बालासुब्रमन्यम उर्फ़ अनवर हुसैन की 17 फरवरी, 2024 को मौत हो गई। वह पूर्व में बस चलाते थे। बालासुब्रमन्यम जन्म से हिन्दू थे और उनका वर्ष 1988 में एक हिन्दू महिला शान्ति से विवाह हुआ था। दोनों पति-पत्नी के इस विवाह से एक पुत्री भवानी पैदा हुई थी।
इसके बाद बालासुब्रमन्यम का अपनी पत्नी से मोहभंग हो गया। बालासुब्रमन्यम का इसके बाद एक मुस्लिम महिला सैयद अली फातिमा से विवाहेत्तर सम्बन्ध बन गया। फातिमा से निकाह करने के लिए उन्होंने इस्लाम अपना लिया। इसके बाद 1999 में निकाह भी कर लिया। इस्लाम कबूलने के बाद उसने अपना नाम बदल कर अनवर हुसैन रख लिया।
निकाह के पश्चात बालसुब्रमन्यम उर्फ़ अनवर हुसैन का एक बेटा उनकी मुस्लिम पत्नी फातिमा से हुआ, जिसका नाम अब्दुल मलिक है। अनवर ने शान्ति से हुए हिन्दू विवाह को समाप्त करने के लिए कोर्ट में अपील भी की थी और उन्हें अपनी पत्नी से तलाक भी दे दिया गया था।
उनकी पत्नी शान्ति ने इस तलाक के खिलाफ ऊँची अदालत में मामला दायर किया था, जिसने अपने फैसले में निचली कोर्ट का निर्णय रद्द कर दिया था। अब इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि चूँकि मामला कोर्ट में चल रहा था, ऐसे में शान्ति को ही बालासुब्रमन्यम उर्फ़ अनवर की वैध पत्नी और भवानी को ही वैध वारिस माना जा सकता है। कोर्ट ने बालासुब्रमन्यम उर्फ़ अनवर हुसैन की मुस्लिम पत्नी फातिमा और बच्चे अब्दुल मलिक को वैध मानने से इनकार कर दिया।
हाई कोर्ट में क्यों पहुँचा अंतिम संस्कार का मामला?
जब 17 फरवरी, 2024 को बालासुब्रमन्यम उर्फ़ अनवर हुसैन की मौत हुई तो उनकी हिन्दू पत्नी के साथ बेटी और मुस्लिम पुत्र के बीच में अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हो गया। ऐसे में अस्पताल ने उनके शव को किसी को भी सौंपने से इनकार कर दिया। इसको लेकर उनके अवैध (कोर्ट के अनुसार कानूनन अवैध) मुस्लिम पुत्र अब्दुल मलिक ने मद्रास हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और माँग की कि उसे अपने अब्बा का अंतिम संस्कार इस्लामी तरीके से करने दिया जाए।
कोर्ट ने क्या कहा?
मद्रास हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि सुब्रमन्यम उर्फ़ अनवर हुसैन कोई कबीर तो थे नहीं कि उनकी देह पर हुआ विवाद फूलों के बँटवारे से निपट जाता, ऐसे में इस मामले को देखना जरूरी है। मद्रास हाई कोर्ट ने हिन्दू पत्नी और पुत्री के अधिकार को जरूरी मानते हुए कहा कि उन्हें अपने पिता/पति के अंतिम संस्कार में अपनी हिन्दू धार्मिक मान्यताओं को पूरा करने का अधिकार है।
कोर्ट ने हालाँकि आदेश में कहा कि हिन्दू पत्नी और पुत्री को किसी खुले मैदान में 30 मिनट के भीतर ही अंतिम संस्कार के रीति-रिवाज को निपटाना होगा। इसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि मरने वाले की मजहबी स्वतंत्रता का सम्मान भी करना होगा, ऐसे में बालासुब्रमन्यम उर्फ़ अनवर हुसैन का अंतिम संस्कार इस्लामी तरीके से ही किया जाए और उसे दफनाया जाए। हाई कोर्ट ने फातिमा और अब्दुल को भी इस अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने की अनुमति दी है।