मद्रास हाई कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि मजहबी अधिकार भी असीमित नहीं हैं। इसके साथ ही अदालत ने गुरुवार (29 अप्रैल 2021) को वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें कन्याकुमारी के जिला कलेक्टर के आदेश को चुनौती दी गई थी।
जिला कलेक्टर ने घर में ईसाई प्रार्थना सभा के आयोजन पर रोक लगा दी थी। इसे टी विल्सन ने चुनौती दी थी। हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने कहा कि विल्सन अपने घर में निजी प्रार्थना नहीं कर रहे थे। बकायदा लोगों को जुटाकर प्रार्थना सभा कर रहे थे, जिसके लिए जिला प्रशासन की अनुमति आवश्यक है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि सांप्रदायिक सद्भावना को ठेस पहुँचाते हुए उनकी निजी प्रार्थना को लेकर झूठी शिकायत की गई थी। डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ने अदालत के सामने फोटोग्राफ्स और अन्य सबूत पेश किए जिससे पता चल रहा था कि विल्सन के घर में नियमित तौर पर सुबह के 9 बजे से दोपहर के 12 बजे तक क्रिश्चियन रिलीजियस ट्रस्ट की ओर से प्रार्थना सभा का आयोजन होता था। इस दौरान स्पीकर और माइक्रोफोन का भी इस्तेमाल होता था। इससे होने वाली परेशानियों को लेकर विल्सन के पड़ोसियों ने जिला प्रशासन से शिकायत की थी।
विल्सन ने इसे निजी प्रार्थना सभा बताते हुए 2016 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि मजहबी अधिकारों के भी असीमित होने का दावा नहीं किया जा सकता। यदि यह दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करता है तो इसके लिए आवश्यक अनुमति लेनी जरूरी है। उन्होंने सुनवाई के दौरान पूर्व के अदालती निर्णयों और प्रार्थनाओं को लेकर बाइबिल के संदर्भों का भी हवाला दिया।
अदालत ने कहा, “प्रार्थना की आड़ में याचिकाकर्ता वास्तव में मजहबी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रार्थना हॉल का निर्माण कर रहे थे। किसी भी धार्मिक आस्था का आधार सच्चाई है और कोई भी धर्म किसी भी ऐसे कार्य को बर्दाश्त नहीं करता है, जो किसी व्यक्ति को सच्चाई से दूर ले जाए। वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता जो खुद को धर्मनिष्ठ ईसाई होने का दावा करता है, वह सच्चाई से कोसों दूर है।” कोर्ट ने कहा कि इस तरह की सार्वजनिक प्रार्थना के लिए याचिकाकर्ता को तमिलनाडु पंचायत भवन नियमावली, 1997 के नियम 4 (3) के तहत जिला कलेक्टर से अनुमति लेनी चाहिए थी।