विकट परिस्थितियों में भी स्वयं को पहचानकर मानवता के लिए कार्य करने वाले प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता एस. रामकृष्णन को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति भवन में सोमवार (8 अक्टूबर) को आयोजित एक समारोह में रामकृष्णन को यह सम्मान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रदान किया। दिव्यांग रामकृष्णन व्हीलचेयर से इस सम्मान को लेने पहुँचे। उनके योगदान को देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
तमिलनाडु के तिरुनेलवेली के रहने वाले रामकृष्णन का समाज में किया गया कुछ ऐसा योगदान है, जिसके कारण सरकार ने इस सम्मान के लिए उन्हें चुना। रामकृष्णन स्वयं लकवाग्रस्त हैं और चलने में असमर्थ हैं, इसके बावजूद वह दिव्यांग लोगों के पुनर्वास में मदद करने का सराहनीय काम पिछले 40 वर्षों से करते आ रहे हैं।
रामकृष्णन जब 20 साल के थे, तब वह एक हादसे का शिकार हो गए थे। इस हादसे के बाद वह लकवाग्रस्त हो गए। लकवाग्रस्त होने के बाद उन्होंने दिव्यांग लोगों के दर्द को महसूस किया और जाना कि ऐसे लोगों को समाज के मुख्यधारा में बनाए रखने के लिए उनके पुनर्वास की सख्त आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने दिव्यांग लोगों की मदद करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने एक संस्था भी बनाया और इसे लोगों की मदद का माध्यम बनाया। इसके बाद वे पीछे मुड़कर नहीं देखे।
रामकृष्णन पिछले 44 साल से व्हीलचेयर पर हैं, लेकिन जरूरतमंदों के सेवा में वे हमेशा आगे रहते हैं। रामकृष्णन ने 1981 में अमर सेवा संगम नाम की संस्था की शुरुआत की थी। इस संस्था के माध्यम से वे आसपास के इलाके लोगों की मदद करते हैं। आज यह संगठन अपने सेवा कार्यों के लिए लोगों के बीच बेहद सम्मानित नाम बन चुका है। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र के दिव्यांगों पर विशेष ध्यान दिया। ग्रामीण क्षेत्र के दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए अभी भी बड़े पैमाने पर काम किए जाने की जरूरत है।
रामकृष्णन का संगठन अमर सेवा संगम गाँवों में पोलियो शिविर का समय-समय पर आयोजन के साथ-साथ एकीकृत स्कूल भी संचालित करता है। इस स्कूल में सामान्य बच्चों के साथ-साथ दिव्यांग बच्चे भी पढ़ाई करते हैं। उनके किये कार्यों को देखते हुए रामकृष्णन को दिव्यांगों का मसीहा कहा जाने लगा।
साल 1975 में इंजीनियरिंग के छात्र रामकृष्णन 20 साल थे, तब उन्होंने नौसेना में भर्ती होने की सोची। वह तमाम परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद शारीरिक टेस्ट के लिए गए। ऐसे ही एक टेस्ट के दौरान उन्हें 15 फीट ऊँचे पेड़ से छलाँग लगाने को कहा गया। छलाँग के दौरान उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और गर्दन से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। इसके बाद उन्होंने अपने माता-पिता के जमीन पर एक स्कूल खोला। पाँच बच्चों के साथ शुरू हुए इस स्कूल में आज तकरीबन 300 बच्चे पढ़ते हैं।
गौरतलब है कि पद्मश्री भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। इस श्रेणी में भारत रत्न सर्वोच्च स्थान पर आता है। ये पुरस्कार उन लोगों को दिए जाते हैं, जो अपने क्षेत्र में विशिष्ट सेवा और समाज में अतुलनीय योगदान देते हैं। उनके सेवा और योगदान को देखते हुए सरकार उन लोगों को सम्मानित करती है। हर वर्ष गणतंत्र दिवस के मौके पर घोषित होने वाले इन पुरस्कारों का वितरण साल 2020 में कोरोना संक्रमण के चलते नहीं हो सका था।