Sunday, November 17, 2024
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घायल सूबेदार को बचाने के लिए खुद हुए बलिदान, गोली लगने के बावजूद मार गिराया आतंकी: जानें कौन थे मेजर अनुराग नौरियाल, 34 साल बाद परिवार किस हाल में

मेजर अनुराग को 23 अक्टूबर 1990 को ऑपरेशन 'रक्षक' में अदम्य साहस दिखते हुए वीरगति मिली थी। ऑपइंडिया ने बलिदानी मेजर के परिवार वालों से मिल कर वर्तमान हालातों की जानकारी ली। मेजर अनुराग नौरियाल मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे। उनका जन्म 5 जुलाई 1954 को हुआ था।

15 अगस्त 2024 को देशवासियों ने भारत के स्वाधीनता की 78वीं वर्षगांठ मनाई। इस अवसर पर राष्ट्र ने उन तमाम ज्ञात और अज्ञात बलिदानियों को नमन किया जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उन्हीं तमाम शूरवीरों में से एक थे मरणोपरांत शौर्य चक्र विजेता मेजर अनुराग नौरियाल। मेजर अनुराग को 23 अक्टूबर 1990 को ऑपरेशन रक्षक में अदम्य साहस दिखते हुए वीरगति मिली थी। ऑपइंडिया ने बलिदानी मेजर के परिवार वालों से मिल कर वर्तमान हालातों की जानकारी ली।

मेजर अनुराग नौरियाल मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे। उनका जन्म 5 जुलाई 1954 को हुआ था। बचपन से ही राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत अनुराग ने NDA (नेशनल डिफेन्स एकेडमी) की परीक्षा पास की। वो 23 दिसंबर 1973 को भारतीय सेना में अधिकारी बने। इनकी पोस्टिंग 10 पैरा कमांडों में हुई थी लेकिन बाद में वो गोरखा रेजिमेंट में आ गए थे। तमाम भाषाओं के जानकारी मेजर अनुराग योद्धा एक कुशल गोताखोर भी थे। व्यक्तिगत तौर पर वो खुशमिजाज, अच्छे शायर व गायक भी थे।

मेजर अनुराग की शादी उत्तराखंड की ही उमा नौरियाल से हुई थी। दोनों काफी दिनों तक अफेयर में रहे बाद में परिवार की सहमति से उनका विवाह हो गया। मेजर नौरियाल नोएडा में बस गए थे। परिवार में उनका 1 बेटा और एक बेटी हैं। बेटा इंजीनियर है जबकि बेटी अमेरिका में डॉक्टर हैं। बेटी ने भी कोरोना काल में कई अमेरिकियों की जान बचाई थी। वहीं मेजर नौरियाल की पत्नी उमा नोएडा सेक्टर 59 मेट्रो स्टेशन के पास मौजूद अपने पेट्रोल पम्प का कामकाज संभालती हैं। उन्होंने अपने पेट्रोल पम्प पर अधिकतर नौकरियाँ महिलाओं को दे रखीं हैं।

ऑपेरशन रक्षक में मिली थी वीरगति

साल 1990 में पंजाब में आतंकवाद अपने चरम पर था। इसी आतंकवाद को कुचलने के लिए सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन ‘रक्षक’ चला रखा था। मेजर अनुराग भी अपनी टुकड़ी के साथ इसी अभियान का हिस्सा थे। तब उनकी तैनाती फ़िरोज़पुर में थी। 23 अक्टूबर 1990 को इन्फैंट्री ब्रिगेड के मेजर अनुराग बिहार रेजिमेंट के अधिकारी के साथ आतंकवाद प्रभावित इलाके में गश्त कर रहे थे। रास्ते में वायरलेस पर सूचना मिली कि गाँव भूरा करीमपुर के पास जवानों की आतंकियों से मुठभेड़ चल रही है।

आतंकियों से लड़ रहे जवानों को बैकअप देने के लिए मेजर अनुराग अपने साथी जवानों सहित मुठभेड़ स्थल की तरफ रवाना हो गए। आतंकी एक फार्म हॉउस में छिपे हुए थे। मेजर नौरियाल ने अपने साथियों सहित आतंकियों को घेर लिया। इसी दौरान आतंकियों की गोली से उमा चरण प्रसाद नाम के सूबेदार घायल हो गए। उनको जाँघ में गोली लग गई थी। मेजर अनुराग ने यह महसूस कर लिया कि अगर आतंकी को फ़ौरन मार नहीं गिराया गया तो घायल सूबेदार का बचना मुश्किल है। आतंकी लगातार फायरिंग कर रहा था जिससे घायल सूबेदार की मदद नहीं हो पा रही थी।

रणनीति बनाते हुए मेजर अनुराग ने मनोज कुमार नाम के हवलदार के साथ आतंकी पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इसी दौरान मेजर अनुराग की बाईं बाँह पर गोली लग गई। घायल होने के बावजूद मेजर अनुराग आतंकी पर गोली बरसाते रहे। आतंकी ने मेजर पर भी गोली चलानी चाही लेकिन उस पहले ही वो उन्होंने उसका काम तमाम कर दिया। आतंकी के मारे जाने तक गोली लगने के बावजूद मेजर मोर्चे पर डटे रहे। आख़िरकार उन्हें अस्पताल ले जाया गया। तब तक अधिक खून बह जाने की वजह से मेजर नौरियाल वीरगति को प्राप्त हो चुके थे।

लगा कि दुनिया ही खत्म, लेकिन आखिरकार फौजी की पत्नी थी

ऑपइंडिया ने मेजर अनुराग नौरियाल की वीरांगना पत्नी उमा से बात की। उमा ने हमें बताया कि जब उन्होंने अपने पति की वीरगति का पता चला तो एक बार लगा कि दुनिया यहीं खत्म हो गई। हालाँकि अपने पति द्वारा देश के लिए बलिदान होने की प्रेरणा ने उमा को ताकत दी और उन्होंने खुद को संभाला। उन्होंने अपनी बेटी और बेटे को माँ के साथ पिता का रोल भी निभाते हुए पढ़ाया और अच्छे संस्कार दिए। इसी दौरान उन्होंने खुद भी नौकरी की और आर्थिक संकटों का असर बच्चों पर नहीं पड़ने दिया।

कई चक्कर लगाने के बाद मिला पेट्रोल पम्प

बलिदानी मेजर की पत्नी ने बताया कि उनके पति की वीरगति के बाद सरकार से उन्हें पेट्रोल पम्प देने का आश्वासन मिला था। बीच में कई सरकारें आईं और गईं जिसमें वो लगभग 12 साल तक अलग-अलग लोगों के पास भटकती रहीं। साल 2003 में आखिरकार तमाम कशिशों के बाद वो सफल रहीं। इस दौरान वीरांगना ने कई बड़े लोगों की बदजुबानी भी सुनी। हालाँकि हमारे कई बार पूछने पर उन्होंने किसी का नाम नहीं बताया। उमा ने कहा, “वो सब इतिहास हो चुका है। अब उसे जाने दीजिए।”

सेना ने भी दिया पूरा साथ

उमा नौरियाल ने हमें आगे बताया कि उनके संघर्ष के दिनों में कई स्वजनों और शुभचिंतक साथ खड़े थे। इसी दौरान उन्होंने भारतीय सेना का भी तब से ले कर अब तक मिल रहे सहयोग के लिए आभार जताया। मेजर अनुराग द्वारा दिखाए गए अदम्य साहस की वजह से साल 1991 में मरणोपरांत उन्हें कीर्ति चक्र दिया गया था। यह सम्मान उनकी पत्नी उमा नौरियाल ने राष्ट्रपति भवन में लिया था। उमा नौरियाल ने हमें बताया कि पति के जाने का घाव तो जीवन भर रहेगा लेकिन सेना और लोगों से मिला साथ और प्रेम कहीं न कहीं उन जख्मों पर मरहम की तरह काम करता है।

पहले से बहुत बेहतर हैं अब के हालात

उमा नौरियाल के मुताबिक लगभग 20 साल पहले जब उन्होंने पेट्रोल पम्प चलाना शुरू किया था तब अनुभव न होने की वजह से बहुत दिक्क्तें आईं थीं। इसी दौरान उस इलाके में गुंडागर्दी भी अपने चरम पर हुआ करती थी। गुंडागर्दी के तौर पर हमें तेल भरा कर पैसे न देना और स्टाफ से मारपीट आदि करना शामिल हैं। बलिदानी की पत्नी ने हमें आगे बताया कि अब के हालत काफी बेहतर हैं और गुंडागर्दी भी न के बराबर हो गई है।

आतंकियों के गुणगान पर होती है तकलीफ

देश में एक खास गिरोह द्वारा आतंकियों और अपराधियों के महिमामंडन के चलन पर भी बलिदानी मेजर अनुराग की पत्नी ने दुःख जताया। उन्होंने कहा कि महज राजनीति आदि के नाम पर जब कोई भी किसी आतंकी, अपराधी या देशद्रोही का गुणगान करता है तो कहीं न कहीं उनके साथ ऐसे तमाम परिवारों को तकलीफ होते है जिनके स्वजनों ने देश की रक्षा में अपने प्राण गँवाएँ हैं। उमा नौरियाल ने उम्मीद जताई है कि कि बलिदानियों के परिजनों की पीड़िता को महसूस करते हुए आतंकियों के महिमांडन वाली सोच में जल्द ही बदलाव आएगा।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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