ऑल इंडिया इमाम एसोसियेशन के मौलाना साजिद रशिदी ने राम मंदिर पर ज़हर उगला है। मौलाना ने कहा “एक मस्जिद हमेशा एक मस्जिद ही रहती है। यह कुछ और बनाने के लिए तोड़ी नहीं जा सकती है। हम ऐसा मानते हैं और भरोसा करते हैं कि वहाँ मस्जिद थी और मस्जिद ही रहेगी। वह मस्जिद एक मंदिर को तोड़ कर नहीं बनाई गई थी लेकिन अब ऐसा हो सकता है कि कभी मंदिर तोड़ कर उस जगह पर मस्जिद बनाई जाए।”
इसके बाद मौलाना ने कहा “प्रधानमंत्री ने अयोध्या के मंदिर निर्माण कार्यक्रम में शामिल होकर संविधान की अवहेलना की है। उस ज़मीन पर बाबरी मस्जिद थी जिसे हिटलर की फ़ौज से मिलते जुलते लोगों ने तोड़ा था। जो लोग इंसाफ में भरोसा रखते हैं वह किसी न किसी दिन उस मंदिर को मस्जिद में तब्दील कर देंगे।”
Islam says a mosque will always be a mosque. It can’t be broken to build something else. We believe it was, and always will be a mosque. Mosque wasn’t built after demolishing temple but now maybe temple will be demolished to build mosque: Sajid Rashidi, Pres, All India Imam Assn pic.twitter.com/DzlbYQ3qdm
— ANI (@ANI) August 6, 2020
गौरतलब है कि 5 अगस्त 2020 भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन, अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर की नींव पड़ी। लेकिन मंदिर की नींव पड़ते ही देश के चुनिंदा लोग और समुदाय विशेष के लोग विरोध में उतर आए। विरोध कर रहे लोगों में न तो देश के संविधान की फ़िक्र नज़र आई। और न ही देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले के प्रति सम्मान और भरोसा। इस कड़ी में देश की राजनीति के तमाम नेता भी शामिल हैं।
लोकसभा सांसद और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लीमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मामले पर अपने हिस्से का जहर उगला। तमाम विवादित नेताओं से कहीं आगे बढ़ कर ओवैसी ने यहाँ तक कह दिया कि बाबरी मस्जिद थी और वही रहेगी। बुधवार की सुबह अपने ट्विटर एकाउंट से ट्वीट करते हुए ओवैसी ने कहा “बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी इंशाअल्लाह #BabriZindaHai।
इसके बाद ओवैसी ने यह भी कहा प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान की शपथ का उल्लंघन किया है। हिंदुत्व की कामयाबी धर्म निरपेक्षता की हार है। यह सिर्फ और सिर्फ हिंदू राष्ट्र की नींव रखी गई है। जहाँ लोगों ने नमाज़ पढ़ी उसे सर्वोच्च न्यायालय में झूठ बोल कर तबाह किया गया। ओवैसी के मुताबिक़ प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भूमि पूजन को सिम्बल ऑफ़ इंडिया था। जबकि देश का सिम्बल कोई भी धार्मिक जगह नहीं हो सकती है।
#BabriMasjid thi, hai aur rahegi inshallah #BabriZindaHai pic.twitter.com/RIhWyUjcYT
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) August 5, 2020
मामला राम मंदिर का हो और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपनी तरफ से बयान जारी करने में पीछे रह जाता। ऐसा कैसे संभव होता, नतीजतन उनकी तरफ से भी 4 अगस्त के दिन राम मंदिर मुद्दे पर बयान जारी किया गया था। बोर्ड द्वारा जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया, “बाबरी हमेशा एक मस्जिद ही रहेगी। हागिया सोफ़िया इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। अन्यायपूर्ण, दमनकारी और शर्मनाक तरीके से ज़मीन पर कब्ज़ा किया गया। बहुसंख्यक समाज के तुष्टिकरण वाले इस निर्णय से मस्जिद का दर्जा नहीं बदल सकता। दिल तोड़ने की ज़रूरत नहीं है, हालात हमेशा एक जैसे नहीं रहते हैं।”
जबकि हगिया सोफ़िया से तुलना करने के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने बोर्ड की जम कर आलोचना की थी। इसके अलावा नेटिजन्स ने भी इस बयान को जम कर ट्रोल किया था। यहाँ तक कि तमाम समुदाय के लोगों ने इस बयान को शर्मिंदगी भरा बताया था।
#BabriMasjid was and will always be a Masjid. #HagiaSophia is a great example for us. Usurpation of the land by an unjust, oppressive, shameful and majority appeasing judgment can’t change it’s status. No need to be heartbroken. Situations don’t last forever.#ItsPolitics pic.twitter.com/nTOig7Mjx6
— All India Muslim Personal Law Board (@AIMPLB_Official) August 4, 2020
कुल मिला कर इस्लाम को मानने वाले नेताओं और मौलानाओं के लिए न तो संविधान का महत्व है और न ही न्याय प्रणाली में विश्वास। देश की सबसे बड़ी अदालत इस मामले पर अपना निर्णय सुना चुकी है। ऐसे में इस इंसाफ़ और मंदिर को मस्जिद में बदलने की बात का क्या मतलब। आखिर एक तरफ़ यह समुदाय हमेशा संविधान में भरोसे की दुहाई देता है लेकिन राम मंदिर के फैसले पर धमकी दे रहा है।
कुछ नेताओं ने तो यहाँ तक कह दिया कि वहाँ बाबरी मस्जिद थी और हमेशा वही रहेगी। जब वह सत्ता में आएँगे तब इसका हिसाब बराबर होगा। यानी यह खुद को देश के लोगों की आस्था और देश की क़ानून व्यवस्था से बढ़ कर मान रहे हैं। वाकई इस देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी का इस्तेमाल किस हद तक किया जाता है वह 5 अगस्त के बाद स्पष्ट तौर पर नज़र आया। इतना ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ़ वोर्ड को अयोध्या में ही मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ की जमीन दी थी।
अस्पताल बनवाने के मुद्दे पर संत समाज ने कहा था कि जो मंदिर की ज़मीन पर अस्पताल बनवाना चाहते थे वह अब मस्जिद की ज़मीन पर बनवा सकते हैं। इस पुण्य कार्य में संत समाज आर्थिक मदद तक करने को तैयार है। देश का संवैधानिक ढाँचा ही ऐसा है कि अक्सर लोगों की सच्चाई सामने आ ही जाती है।
इस निर्णय के बाद ही यह पूरी तरह साफ़ हो गया कि संविधान में भरोसे की बात करने वाले लोग खुद में कितना बड़ा अपवाद हैं। यही नेता हैं जो सर्वोच्च न्यायालय की निर्णय की दुहाई देते थे लेकिन फैसला आने के बाद इस्लाम का हवाला दे रहे हैं। यानी इस्लामी कानून शरिया देश के संविधान और सर्वोच्च अदालत से भी बड़ा है।
दुनिया का कोई भी इतिहासकार इस बात से असहमति नहीं जता सकता कि भारत में कितने मंदिर तोड़े और लूटे गए इसका कोई हिसाब नहीं। लेकिन भारत का हिंदू केवल एक मंदिर के लिए लड़ा, सिर्फ एक “श्रीराम” मंदिर के लिए लड़ा। अभी अगर बाकी मंदिरों के लड़े तो सोचिए क्या होगा?