Monday, December 23, 2024
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कम उम्र में वासना और प्रेम में डूबे थे दोनों, लड़के को बना दिया ‘बलि का बकरा’: हाई कोर्ट ने सजा घटाई, कहा- POCSO के तहत माफी का प्रावधान नहीं

मेघालय हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लड़की भले ही 13 साल से अधिक थी, लेकिन इस मामले में अपहरण या जबरदस्ती का कोई सबूत नहीं मिला। चूँकि दोनों ने शादी की थी, इसलिए पॉक्सो एक्ट में दी गई सजा को उम्रकैद से घटाकर 10 साल की जाती है।

मेघालय हाई कोर्ट ने अहम फैसले में पॉक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति की सजा उम्रकैद से घटाकर 10 साल कर दी है और 10 हजार का जुर्माना न भरने की एवज में 1 माह की अतिरिक्ट सजा काटने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इस मामले में सहमति पाने के बाद फैसला दिया है। मेघालय हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि लड़की भले ही 13 साल से अधिक थी, लेकिन इस मामले में अपहरण या जबरदस्ती का कोई सबूत नहीं मिला। चूँकि दोनों ने शादी की थी, इसलिए पॉक्सो एक्ट में दी गई सजा को उम्रकैद से घटाकर 10 साल की जाती है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मेघालय हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस. वैद्यनाथन और जस्टिस डब्ल्यू. डिएंगदोह की बेंच ने अपने फैसले में शिलॉन्ग कोर्ट के फैसले में बदलाव किया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘दुर्भाग्य से लड़के को दोनों (लड़के और लड़की) की गलतियों/उकसावे के लिए सजा सुनाई गई है, ये बलि का बकरा बनाने जैसा हुआ, क्योंकि लड़की एक खुशहाल जीवन जी रही है, जबकि लड़का उम्रकैद की सजा काट रहा है। चूँकि पॉक्सो एक्ट में सजा को माफ करने का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए सजा को कम किया जाता है।’ कोर्ट ने पाया कि ‘लड़की अपने पुरुष मित्र के साथ अपनी सहमति से उसके साथ भागी थी, जोकि उसके खुद के बयान (161 के बयान) से साफ है।’

बचाव पक्ष ने ये भी कहा कि लड़की की उम्र 17 साल थी। हालाँकि हड्डियों की जाँच में ये साबित हुआ कि लड़की की उम्र 13 साल से अधिक थी। इस मामले में विसंगति पाए जाने पर कोर्ट ने दोषी को संदेह का लाभ दिया। कोर्ट ने वकील के उस दलील को स्वीकार किया, जिसमें वकील ने कहा, ‘लड़का और लड़की एक रोमांटिक रिश्ते में थे। उन्होंने अपनी मर्जी से अपने घर छोड़े और शादी कर ली। इसके बाद दोनों ने यौन संबंध बनाए।’ इस मामले में पॉक्सो एख्ट की धारा 42ए का संदर्भ दिया गया, जिसमें कानूनी तौर पर किसी भी तरह की गड़बड़ी मिलने पर 42ए लागू होता है।

इस मामले में 42ए का जिक्र इसलिए किया गया, क्योंकि आईपीसी की धारा 375 के उपबंध 2 (जिसमें शादी की सूरत में बिना अनुमति के अपनी नाबालिग पत्नी के साथ संबंध बनाने पर सजा से छूट) के तहत दोषी व्यक्ति छूट जाता। इस मामले में विवाह भी हुआ था, लेकिन 42ए के लागू होने की सूरत में आईपीसी की धारा 375-2 के अपवाद लागू नहीं होते। पॉक्सो एक्स बनाया ही इसलिए गया था, ताकि नाबालिगों के यौन उत्पीड़न में किसी तरह की छूट न मिले।

कोर्ट ने पाया कि लड़की के बयान बदलते भी रहे हैं। वहीं, परिस्थितियों पर नजर डालते हुए हाई कोर्ट ने पाया कि दोनों ने शादी की थी, इसलिए इसमें जबरदस्ती जैसी बात नहीं। अगर दोनों ने संबंध बनाए तो एक तरफ लड़की अपनी सामान्य जिंदगी जी रही है, तो दूसरी तरफ लड़का उम्रकैद की सजा काट रहा है। कोर्ट ने भावनात्मक मुद्दे को भी ध्यान में रखा और कहा कि दोनों की सामूहिक गलतियों की सजा सिर्फ एक व्यक्ति को मिल रही है, जोकि गलत है। हालाँकि पॉक्सो एक्ट के तहत नाबालिग से संबंध बनाने का दोष सिद्ध होता है। चूँकि इसमें बलात्कार यानी जबरदस्ती की पुष्टि नहीं हुई है। दोनों प्रेम में थे और खुद को शादीशुदा ही मानकर चल रहे थे, क्योंकि दोनों ने शादी भी की थी। खुद लड़की ने बताया कि उसके साथ कोई जबरदस्ती या हिंसा नहीं हुई, ऐसे में सजा को कम किया जाता है।

ये मामला 5 अप्रैल, 2013 का है, जब 14 साल की लड़की के पिता ने उसके लापता होने की सूचना पुलिस को दी। बाद में लड़की दोषी पाए गए लड़के के साथ त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में बरामद की गई थी। चूँकि लड़की की उम्र 14 साल ही थी, ऐसे में पॉक्सो एक्ट के तहत लड़के को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। शिलॉन्ग की विशेष कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट 2012 की धारा 4 के तहत उम्रकैद और 10 हजार का जुर्माना और आईपीसी की धारा 366ए के तहत 10 साल की सजा और 10 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई थी।

हालाँकि अब हाई कोर्ट ने उम्र कैद की सजा को घटाकर 10 साल के कठोर कारावास और 10 हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। 10 हजार का जुर्माना न भरने पर एक महीने साधारण कारावास की सजा सुनाई गई है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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