मोदी सरकार अपनी बहुप्रचारित और आज (2 अक्टूबर, गाँधी जयंती) से प्रस्तावित एकल-प्रयोग (single-use) प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबंदी से पीछे हट गई है। फ़िलहाल सरकार का ध्यान केवल जनजागरूकता तक सीमित है। स्वच्छ भारत मिशन के आधिकारिक हैंडल ने इस आशय से ट्वीट भी किया है।
The Swachhata Hi Seva campaign launched by the Hon’ble PM on 11th September 2019 is not about banning single use plastic but creating awareness and a people’s movement to curb its use @PMOindia @moefcc https://t.co/ZTb4jtJ3t8
— Swachh Bharat (@swachhbharat) October 1, 2019
@swachhbharat हैंडल का ट्वीट रॉयटर्स की उस खबर के जवाब में है, जिसमें दावा किया गया है कि जब आर्थिक मंदी और नौकरियों के खत्म होने का माहौल वैसे भी बना हुआ है, ऐसे में सरकार का यह कदम उद्योग जगत को कतई रास नहीं आ रहा। उसी के जवाब में सरकारी हैंडल ने स्पष्टीकरण दिया कि 11 सितंबर को प्रधानमन्त्री मोदी द्वारा शुरू किया गया ‘स्वच्छता ही सेवा’ अभियान सिंगल-यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल रोकने के लिए नहीं, बल्कि उसके बारे में जागरूकता बढ़ाने का और एक जनांदोलन के ज़रिए उसका इस्तेमाल बंद करने का है। ट्वीट में प्रधानमन्त्री कार्यालय और पर्यावरण मंत्रालय के ट्विटर हैंडलों (@PMOIndia और @moefcc) को टैग किया गया है।
एक ओर सरकार ने कोई नया प्रतिबंध न लगाने का आश्वासन दिया है, जिसके पीछे कारण विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में आर्थिक मंदी के और गहराने की आशंका बताया जा रही है। वहीं दूसरी ओर केंद्र की मोदी सरकार राज्यों को अपने यहाँ मौजूद कानूनों को ही लागू करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इन कानूनों में पॉलीथिन बैगों, स्टाइरोफ़ोम के बर्तनों आदि के प्रयोग, उत्पादन और भंडारण पर विभिन्न पाबंदियाँ हैं। ओडिशा जैसे कुछ राज्यों ने तो 2 अक्टूबर से पूर्ण प्रतिबंध की बात कह भी दी है।
‘दवाओं की बोतलों का विकल्प है क्या?’
इस बीच, उद्योग चैंबर CII ने इस प्रस्तावित प्रतिबंध के अनुपालन पर सवाल उठाते हुए चिंता जताई कि कई उद्योगों के लिए कुछ प्लास्टिक उत्पाद इतने ज़रूरी हैं कि उनके बिना अचानक से हो जाने पर यह उद्योग अस्तित्व के संकट में आ जाएँगे। कई चीजों में प्लास्टिक का कोई विकल्प फ़िलहाल नहीं है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर दवाइयों की प्लास्टिक की बोतलों और स्वास्थ्य-संबंधी उत्पादों को छूट दिए जाने की माँग की है।