आप तैयारी देखिए… हिंदुओं के खिलाफ उन कट्टरपंथियों की। उन्होंने खुद को पीड़ित साबित करने के लिए सड़क पर संतरे भी फैलाए, दुकानों को ही नहीं बल्कि अपनी ठेलों को आग के हवाले कर दिया। जहाँ भी उन्हें लगा कि बीमा और सरकारी मुआवजे का लाभ मिल सकता है, वहाँ दुकान से दो फर्नीचर बाहर निकाले और खुद ही लगा दी आग। इतना ही नहीं, अपनी ही हिंसा की चपेट में आए युवक की मौत के बाद उसके शव को 24 घंटे घर में रखने से भी गुरेज नहीं किया, क्योंकि केजरीवाल सरकार मृतकों को मुआवजा देने की घोषणा जो करने वाली थी।
जिहादी मानसिकता का आलम देखिए। उन्होंने उन मासूम बच्चों को भी अपनी साजिश का शिकार बनाया, जिसे यह भी ठीक से पता नहीं कि हिंदू विरोधी दंगा या हिंदू-मुस्लिम क्या होता है और आग कैसे लगाई जाती है। लेकिन, कट्टपंंथी मासूम बच्चों को भी अपना हथियार बनाने से नहीं चूके। दिल्ली हिंसा के बाद आई खबरों से एक बात तो साफ़ हो गई कि दंगाई महीनों से हिंदुओं को अपना शिकार बनाने की साजिश रच रहे थे। बस उनको तलाश थी तो अच्छे मौके की, जो कि उन्हें सीएए विरोध के नाम पर मजहबी महिलाओं द्वारा शुरू किए गए धरने के साथ ही मिल गया।
मौक़ा मिलते ही शुरू होता है हिंदुओं के खिलाफ़ हिंसा फैलाने का एक सफ़र। अपनी योजना को सफल बनाने के लिए मजहबी दंगाइयों की भीड़ करावल नगर स्थित ताहिर हुसैन के मकान को और शिव विहार में राजधानी पब्लिक स्कूल को अपना केन्द्र बनाती है। यहाँ दंगाइयों को सुविधा देने के लिए पहले से ही बेहतर इंतजाम किए जाते हैं। छतों पर पैट्रोल बम बनाकर बड़ी संख्या में रख दिए जाते है, ईंट-पत्थरों को ऊपर पहुँचा दिया जाता है, देसी हथियार से ज्यादा मारक क्षमता वाली गुलेल को तैनात कर दिया जाता है।
इसके बाद अपने आकाओं का आदेश मिलते ही दोनों ही स्थानों पर दंगाइयों की भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है। योजना आखिरी पड़ाव पर थी। वह ये कि राजधानी स्कूल में पढ़ने वाले समुदाय विशेष के बच्चों को पहले ही सुरक्षित घर भेज दिया जाए और हिंदुओं के बच्चों को स्कूल में ही बंधक बना लिया जाए। आगे कुछ ऐसा ही होता है। जानिए चश्मदीद की जुबानी…
शिव विहार में रहने वाले दंगा पीड़ित अंकित बताते हैं,
“इलाके में सबसे ऊँची इमारत राजधानी स्कूल ही थी, जिसे दंगाइयों ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए बेहतर समझा। सोमवार को इलाके में हिंदुओं के खिलाफ कट्टरपंथियों का आतंक जारी था। इसी बीच राजधानी स्कूल से दूसरे मजहब के सभी बच्चों को सुरक्षित निकालकर घर भेज दिया जाता है। वहीं स्कूल में मौजूद हिदुओं के बच्चों को बंधक बना लिया जाता है। दूसरी ओर पास के ही हिंदू मालिक के स्कूल डीआरपी में समुदाय विशेष के अभिवावक जाते हैं और इलाके में हिंसा शुरू होने से पहले ही अपने बच्चों को बिना कारण बताए स्कूल से ले आते हैं। इनकी योजना पूरी थी और इसी के बाद राजधानी स्कूल की जमीन को अपनी साजिश कामयाब बनाने के लिए बखूबी इस्तेमाल किया जाता है।”
दंगाइयों द्वारा की गई योजना का परिणाम देखिए कि राजधानी स्कूल के पास स्थित डीआरपी स्कूल को पूरी तरह से ख़ाक में मिला दिया जाता है और वहीं मौजूद राजधानी स्कूल में मामूली सी तोड़फोड़ करके दंगाई खुद को पीड़ित दिखाने का ढ़ोंग करने लगते हैं। साजिश को अंजाम तक जाने में और दंगाइयों की भीड़ को अपना समर्थन देने में राजधानी पब्लिक स्कूल की भूमिका का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि स्कूल के गेट पर लिखा हुआ था, नो सीएए, नो एनपीआर।
अब आप खुद ही विचार करें कि जो स्कूल अपने ही मासूम बच्चों को कट्टरपंथियों की साजिश का शिकार बना सकता है, आखिर वह भला बच्चों को क्या शिक्षा देता होगा? अब कैसेे मान लिया जाए कि वह स्कूल अपने और अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने में मददगार हो सकता है।