एक रिपोर्ट ने बताया है कि शिक्षा के मामले में मुस्लिम छात्राएँ, मुस्लिम छात्रों से पिछड़ रही हैं। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वह उच्च शिक्षा तक भी कम संख्या में पहुँच रही हैं। यह सारी जानकारी सरकारी वेबसाइट UDISEPLUS के आँकड़ों का विश्लेषण कर के निकाली गई है।
मुस्लिम एजुकेशन इन इंडिया नाम की एक वेबसाईट ने इन सारे आँकड़ों का विश्लेषण किया है। उनके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, शिक्षा पाने वाले मुस्लिम बच्चों में सर्वाधिक संख्या ऐसे बच्चों की है जो कि प्राथमिक शिक्षा (कक्षा एक से पाँच) प्राप्त कर रहे हैं। कुल मुस्लिम छात्र/छात्राओं का 52% प्राथमिक स्तर पर ही है।
इसके विपरीत उच्च प्राथमिक (कक्षा छः से आठ), सेकेंडरी (कक्षा नौ और दस) तथा हायर सेकेंडरी (कक्षा ग्यारह और बारह) में जाते-जाते इन मुस्लिम छात्रों की संख्या कम होती रहती है। रिपोट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जितने मुस्लिम बच्चे प्राथमिक शिक्षा पाते हैं, उनमे से बड़ी संख्या में आगे नहीं बढ़ पाते और किन्हीं कारणों से पढ़ाई छोड़ देते है।
रिपोर्ट में सामने आई जानकारी के अनुसार, कुल मुस्लिम छात्र/छात्राओं में से 52% प्राथमिक स्तर पर, 26.3% उच्च प्राथमिक, 13.2% सेकेंडरी और 8.4% हायर सेकेंडरी स्तर पर शिक्षा पा रहे हैं।
इन सबमें मुस्लिम छात्राओं की स्थिति और भी खराब है। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि मुस्लिम छात्रों के मुकाबले मुस्लिम छात्राएँ प्राथमिक स्तर पर कम भेजी जा रही हैं। रिपोर्ट का एक विश्लेषण दिखाता है कि 1000 मुस्लिम छात्रों के मुकाबले केवल 950 मुस्लिम छात्राएँ ही प्राथमिक शिक्षा पा रही हैं।
हालाँकि, उच्च शिक्षा के मामले में मामला उलट है जहाँ पर छात्रों के मुकाबले छात्राएँ अधिक हैं। प्राथमिक स्तर पर आई इस कमी का एक बड़ा कारण रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश में बीते वर्षों में लिंगानुपात भी कम रहा है। देश में अभी अभी 1,000 लड़कों के मुकाबले 907 बालिकाएँ ही हैं। ऐसे में इसका फर्क पढ़ाई में दिखता है।
इस रिपोर्ट से एक अच्छी बात यह भी सामने आई है कि मोदी सरकार के आने के बाद मुस्लिम छात्र और छात्राएँ अब लगभग दोगुने संख्या में उच्च शिक्षा तक पहुँच रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि जहाँ 2012-13 में पढ़ने लिखने वाले मुस्लिमों का केवल 4.5% ही उच्च शिक्षा (कक्षा 10-12) प्राप्त कर रहे थे, अब यह संख्या बढ़ कर 8.4% हो गई है।