नेशनल मेडिकल कमिशन ने कॉम्पिटेंसी बेस्ड मेडिकल एजुकेशन पाठ्यक्रम (CBME) 2024 की गाइडलाइन्स को वापस ले लिया है। हाल ही में जारी नए पाठ्यक्रम गाइडलाइन्स पर काफी विवाद हुआ था, जिसके बाद इसे वापस ले लिया गया।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, संशोधित फॉरेंसिक मेडिसिन पाठ्यक्रम में समलैंगिकता को अप्राकृतिक यौन अपराध बताने के अलावा हाइमन का महत्व, वर्जीनिटी की परिभाषा और इसके मेडिकल-कानूनी पहलुओं को शामिल किया गया था। एक आधिकारिक सूचना में कहा गया है कि नई गाइडलाइन्स पर पुनर्विचार किया जाएगा और उसके बाद इसे दोबारा अपलोड किया जाएगा। नेशनल मेडिकल कमिशन ने समलैंगिकता को अपराध बताने को, पाठ्यक्रम से साल 2022 में हटा लिया था, लेकिन इसी साल इसे दोबारा पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।
बता दें कि नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने हाल ही में MBBS पाठ्यक्रम में किए गए संशोधन को वापस ले लिया है, जिसमें लेस्बियन या गे-सेक्स जैसे यौन कृत्यों को ‘अप्राकृतिक अपराध‘ की श्रेणी में रखा गया था। LGBTQ+ समुदाय के संगठनों और चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इस पाठ्यक्रम को ‘पुराने जमाने का और पूर्वाग्रह से भरा’ करार दिया था।
LGBTQ+ समुदाय और मेडिकल क्षेत्र से जुड़ी कई संस्थाओं ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि यह कदम समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखता है, जो कि सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के बाद से असंवैधानिक है। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द कर दिया था, जिससे समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया।
कड़ी आलोचना के बाद, NMC ने पाठ्यक्रम से संबंधित संशोधन को वापस लेने की घोषणा की। आयोग ने कहा कि यह पाठ्यक्रम को फिर से तैयार करेगा ताकि यह समाज में हो रहे सकारात्मक बदलावों को प्रतिबिंबित कर सके और लैंगिक समानता को बढ़ावा दे सके। NMC के इस फैसले का स्वागत करते हुए, LGBTQ+ संगठनों ने इसे एक सकारात्मक कदम बताया, लेकिन साथ ही इस बात पर जोर दिया कि आगे भी मेडिकल एजुकेशन में समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए और कदम उठाए जाने चाहिए।