बीते 3-4 सालों में दर्जनों साधुओं की निर्मम हत्याओं की कई खबरें मीडिया में आई। इनमें पालघर वाली मॉब लिंचिंग को याद किया जाए तो आज भी रूह कांप जाती है। पूरी भीड़ ने बेरहमी से उन साधुओं को पीट-पीटकर मारा था। कोई एक भी ऐसा शख्स नहीं था जो उन्हें बचाने आगे आया हो। जाँच हुई तो पता चला कि ईसाई मिशनरियाँ और माओवादी इसमें शामिल थे।
ऐसा पहली बार नहीं था कि साधुओं की हत्या में ये नाम पहली दफा आए हों। आज से 14 साल पहले आज की ही तारीख में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की भी निर्ममता से हत्या हुई थी। वह दिन जन्माष्टमी का था जब स्वामी लक्ष्मणानंद पर हमला हुआ। माओवादियों ने उनके आश्रम में घुसकर उनके चार शिष्यों को मारा, फिर उनको गोलियों से भून दिया।
हिंदुत्व का प्रचार करने वाले स्वामी लक्ष्मणानंद के प्रति माओवादियों में इतनी घृणा थी कि गोलियों से भूनने के बाद उन लोगों ने उनके शव पर कुल्हाड़ियाँ चलाईं। उनके शरीर को काटा।
ये घृणा क्यों थी?
दरअसल, आदिवासी इलाकों में घुसपैठ कर लोगों को धर्मांतरण का लालच देना ईसाई मिशनरियों का पुराना खेल रहा है। देश के कोने-कोने में ये मिशनरियाँ गरीब-लाचारों को निशाना बनाती हैं और फिर अपने काम को अंजाम देती हैं। ओडिशा में भी दशकों पहले इन लोगों ने इसी तरह का हाल किया हुआ था। लेकिन, 1970 के करीब स्वामी लक्ष्मणानंद वहाँ बसे और इनका सारा खेल बिगड़ गया।
स्वामी लक्ष्मणानंद ओडिशा के वनवासी बहुल फुलबनी (कंधमाल) जिले के गाँव गुरुजंग के रहने वाले थे। छोटी उम्र में ही उन्होंने अपना जीवन दुखी-पीड़ितों की सेवा में समर्पित कर देने का संकल्प किया था। वह साधना के लिए हिमालय पर गए थे और वहाँ से लौटने के बाद गोरक्षा आंदोलन का हिस्सा बने थे।
उन्होंने ओडिशा के वनवासी बहुल फुलबनी के चकापाद गाँव को अपनी कर्मस्थली बनाया। उसके बाद धर्मांतरण कर ईसाई बनाए गए लोगों की हिंदू धर्म में घरवापसी के लिए अभियान चलाया। धीरे-धीरे लोग उनसे प्रभावित होने लगे और यही बात ईसाई मिशनरियों को अखरने लगी।
बताया जाता है कि 1970 से 2007 के बीच स्वामी स्वामी लक्ष्मणानंद पर 8 बार जानलेवा हमले हुए थे। मिशनरियाँ लगातार उनकी हत्या की साजिश रच रही थीं।, जिसे अंत में अंजाम तक 23 अगस्त 2008 को पहुँचाया गया। वो दिन जन्माष्टमी का था। स्वामी लक्ष्मणानंद पर गोली उस समय चलाई गई जब वो श्रीकृष्ण की आराधना में लीन थे। माओवादियों ने पहले उन्हें गोलियों से भूना। फिर उनके शव को कुल्हाड़ी से काटा।
माओवादी नेता निकला हत्या का ओरोपित
उनकी हत्या की बात जैसे ही ओडिशा में फैली, कई जगह प्रदर्शन शुरू हो गए। पड़ताल में सामने आया कि हत्या का मुख्य आरोपित माओवादी नेता सब्यसाची पांडा था। क्राइम ब्रांच ने इस मामले में माओवादी नेता पांडा सहित उसके 14 साथियों के खिलाफ़ विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल किया था। लेकिन, गिरफ्तार केवल 9 ही हुए। इनमें एक माओवादी नेता उदय था और बाकी के नाम थे- दुर्योधन सुना मांझी, मुंडा बडमांझी, सनातन बडमांझी, गणनाथ चालानसेठ, बिजय कुमार सनसेठ, भास्कर सनमाझी, बुद्धदेव नायक।
हत्या के बाद स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती पर बलात्कार जैसे झूठे आरोप लगाए गए। एक फादर के घर की नौकरानी को नन बताकर बलात्कार का झूठा प्रचार किया गया। वहीं माओवादी नेताओं ने हत्या को दबाने की खूब कोशिश की। मगर उस वक्त के भाजपा महासचिव पृथ्विराज हरिचंदन ने इसे प्रायोजित बताया और सरकार पर मामला दबाने का आरोप मढ़ा। विश्व हिंदू परिषद ने भी इस घटना के आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए आवाज उठाई। साथ ही ओडिशा सरकार से परिषद् के नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की जाँच के लिए बने दो न्यायिक जाँच आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने को भी कहा गया।