Sunday, November 17, 2024
Homeदेश-समाजपौधों को सींचने कमर और सिर पर पानी लेकर 4 किमी तक जाती थीं...

पौधों को सींचने कमर और सिर पर पानी लेकर 4 किमी तक जाती थीं राष्ट्रपति को ‘आशीर्वाद’ देने वाली ‘वृक्ष माता’

सरकार ने कहा कि कक्षा 1 से 10 तक की हिंदी की किताब में थिमक्का की कहानी के जरिए इनकी उपलब्धियों से बच्चों को परिचित कराया जाएगा। बच्चे इनकी कहानी से प्रेरित होंगे। वहीं कक्षा बारहवीं के राजनीति विज्ञान विषय की पुस्तक में भी एक पाठ इनके ऊपर होगा।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को विभिन्न क्षेत्र के लोगों को पद्म पुरस्कार से सम्मानित किया। इस दौरान जब
‘वृक्ष माता’ कहलाने वाली सालूमरदा थिमक्का पद्म श्री सम्मान लेने पहुँची तो उन्होंने राष्ट्रपति कोविंद के सर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। वह बेहद भावुक क्षण था जब थिमक्का जी ने राष्ट्रपति महोदय को एक प्रकार से आशीर्वाद दे दिया।

इस वर्ष पद्म सम्मान प्राप्त करने वालों में सबसे वरिष्ठ 107 वर्षीय थिमक्का ने जिस सहजता से राष्ट्रपति कोविंद के माथे पर हाथ रखा, उससे प्रधानमंत्री और अन्य मेहमानों के चेहरे पर मुस्कान आ गई। राष्ट्रपति भी खुद को रोक नहीं पाए और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

सालूमरदा थिमक्का कर्नाटक की रहने वाली हैं। वह पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। हालाँकि ज्यादातर पर्यावरणविद बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ लिए होते हैं लेकिन उच्च शिक्षा का अभाव कभी थिमक्का के दृढ संकल्प के आड़े नहीं आया। थिमक्का ने हल्दीलाल और कुदुर के बीच चार किलोमीटर के राजमार्ग के किनारे बरगद के 385 पेड़ों समेत 8000 से ज्यादा पेड़ लगाए हैं जिसके कारण उन्हें ‘वृक्ष माता’ की उपाधि मिली है।

भूमिहीन मजदूरों को जो ज़मीन दी गई थी वहाँ ढेर सारे पीपल के पेड़ थे। थिमक्का और उनके पति ने इन पेड़ों की टहनियों को काट कर उन्हें धरती में रोपकर पौधे उगाने शुरू किया। उन्होंने पहले वर्ष में पड़ोस के गाँव कुदूर के पास चार किलोमीटर की दूरी पर केवल 10 पौधे लगाए। दूसरे वर्ष में, उन्होंने 15 पौधे लगाए, और तीसरे वर्ष में 20, इसके बाद यह क्रम चलता रहा। पौधारोपण करने से दंपत्ति को काफी भावनात्मक सहारा मिला क्योंकि वे उन्हें अपने बच्चों की तरह पालते थे।

थिमक्का के पति चिक्कन्ना एक बांस के दोनों छोरों पर पानी के दो विशाल कंटेनर अपने कंधों पर लेकर चार किलोमीटर तक जाते थे। थिमक्का भी एक बाल्टी अपनी कमर पर और दूसरी सिर पर लाद कर ले जाती थीं। उन्होंने पौधारोपण के लिए किसी खाद का इस्तेमाल नहीं किया। बस जीवटता ही थी जिसने पौधों को पेड़ बना दिया। इन्होंने ये पौधे मानसून के दौरान ही पौधे लगाए गए थे, और बाद के मानसून के दौरान दंपत्ति गर्मियों के अंत तक सप्ताह में एक या दो बार पौधों को पानी दिया करते थे। थिमक्का कहते हैं कि पौधे अगले मानसून तक मूल रूप ले लेते थे।

थिमक्का का जन्म कर्नाटक के तुमकुरु जिले के गुब्बी तालुक में हुआ था। गरीबी की वजह से वो स्कूल नहीं जा सकीं और पारिवारिक मजबूरी की वजह से उन्हें छोटी सी उम्र से ही मजदूरी करनी पड़ी। बड़ी होने पर उनका विवाह कर्नाटक के रामनगर जिले के मगदी तालुक के हुलिकल गाँव के निवासी चिककैया से हुआ, जो कि एक मजदूर थे। शादी के बाद भी गरीबी ने थिमक्का का पीछा नहीं छोड़ा। शादी के काफी साल बाद भी जब बच्चा नहीं हुई तो वो टूट गई। वो आत्महत्या करने की सोच रही थीं। तब उनके पति ने उन्हें वृक्षारोपण की सलाह दी। जिसके बाद उन्होंने वृक्षारोपण शुरू किया। फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। वो सिर्फ वृक्षारोपण ही नहीं करती बल्कि इनकी देखभाल अपने बच्चे की तरह करती है।

थिमक्का के पति की 1991 में मृत्यु हो गई थी। आज थिमक्का को भारत में वृक्षारोपण से जुड़े कई कार्यक्रमों के लिए आमंत्रित किया जाता है। वह अपने गांव में आयोजित होने वाले वार्षिक मेले के लिए बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए एक टैंक का निर्माण करने जैसी अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल रही हैं। उनका अपने पति की याद में अपने गाँव में एक अस्पताल बनाने का भी सपना है और इस उद्देश्य के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना की गई है। साल 2016 में सालूमरदा थिमक्का को ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (BBC) द्वारा दुनिया की सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक महिलाओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।

फिलहाल थिमक्का अपने मुँहबोले बेटे उमेश बी.एन. के साथ रह रही हैं। उमेश को भी पर्यावरण से काफी लगाव है। वो भी ‘पृथ्वी बचाओ’ अभियान के साथ ही कई नर्सरी भी चला रहे हैं और उन किसानों को पौधे भी प्रदान करते हैं, जो वृक्षारोपण के लिए इच्छुक होते हैं।

‘वृक्ष माता’ थिमक्का को अभी तक कई सारे अवॉर्ड मिल चुके हैं, लेकिन वहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है कि थिमक्का के ऊपर इसका कोई प्रभाव नहीं दिख रहा है। वो आज भी उसी तरह से सादा जीवन जी रही हैं और लोगों के साथ उनका व्यवहार पहले की तरह ही है। इससे ये जाहिर होता है कि सच्ची उपलब्धियाँ वही हैं जो मनुष्य को और भी विनम्र बना दें। वृक्ष माता ने इसका उदाहरण राष्ट्रपति भवन में भी दे दिया।

कर्नाटक सरकार ने थिमक्का के काम को सम्मान देते हुए इसे आगे बढ़ाने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। सरकार ने कहा कि कक्षा 1 से 10 तक की हिंदी की किताब में थिमक्का की कहानी के जरिए इनकी उपलब्धियों से बच्चों को परिचित कराया जाएगा। बच्चे इनकी कहानी से प्रेरित होंगे। वहीं कक्षा बारहवीं के राजनीति विज्ञान विषय की पुस्तक में भी एक पाठ इनके ऊपर होगा। सरकार का ये कदम बेहद सराहनीय है। इससे बच्चों के भीतर पर्यावरण के प्रति जागरूकता तो बढ़ेगी ही, साथ ही वो इस दिशा में काम करने में सक्रिय भागीदार भी बनेंगे।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

मुस्लिम घुसपैठियों और ईसाई मिशनरियों के दोहरे कुचक्र में उलझा है झारखंड, सरना कोड से नहीं बचेगी जनजातीय समाज की ‘रोटी-बेटी-माटी’

झारखंड का चुनाव 'रोटी-बेटी-माटी' केंद्रित है। क्या इससे जनजातीय समाज को घुसपैठियों और ईसाई मिशनरियों के दोहरे कुचक्र से निकलने में मिलेगी मदद?

दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत का AAP से इस्तीफा: कहा- ‘शीशमहल’ से पार्टी की छवि हुई खराब, जनता का काम करने की जगह...

दिल्ली सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत ने अरविंद केजरीवाल एवं AAP पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकार पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -