Sunday, December 22, 2024
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मुजफ्फरनगर की पुरानी मस्जिद ‘शत्रु संपत्ति’ घोषित, पाकिस्तान के पहले PM लियाकत अली खान की जमीन पर बनी दुकानें भी अब सरकार की: मुस्लिम बता रहे थे वक्फ प्रॉपर्टी

साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि ‘शत्रु की मृत्यु के बाद शत्रु संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को विरासत में मिलनी चाहिए। साल 2017 के संशोधन में शत्रु आश्रित और शत्रु फर्म का विस्तार करते हुए इसमें शत्रु के उत्तराधिकारियों को भी शामिल किया गया है, चाहे वह भारत का हो या ऐसे देश का नागरिक होना चाहिए, जो भारत का शत्रु नहीं है।

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित कर दी गई है। रेलवे स्टेशन के सामने स्थित आठ बिसवा जमीन पर अवैध कब्जा करके मस्जिद और चार दुकानें बना दी गई थी। इसको जब्त कर लिया गया है। मुस्लिम पक्ष ने दावा किया था यह वक्फ संपत्ति है और लियाकत ने पाकिस्तान जाने से पहले दान कर दी थी। हालाँकि, यह दावा निकला।

बता दें कि पाकिस्तान बनने से पहले लियाकत अली खान का परिवार मुजफ्फरनगर में रहता था। यहाँ पर उनकी काफी अधिक जायदाद थी। इन्हीं संपत्तियों में ये संपत्ति भी शामिल है। 15 अगस्त 1947 को बँटवारा होने के बाद लियाकत अली खान अपने परिवार के साथ पाकिस्तान के साथ चले गए। उनकी इस जमीन पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मस्जिद और चार दुकानें बना दी थीं।

करीब डेढ़ साल पहले मुजफ्फरनगर की ‘हिंदू सनातन संगठन’ के संयोजक संजय अरोड़ा ने प्रशासन को प्रार्थना देकर इस जमीन को शत्रु संपत्ति घोषित करने की माँग की थी। उन्होंने दावा किया था कि यह जमीन पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की है। इसके बाद इस जमीन की जाँच हुई। वहीं, इस जमीन पर मस्जिद के पास बने एक दुकान के मालिक ने इसे शत्रु संपत्ति होने से नकार दिया।

मस्जिद के पास स्थित दुकान के मालिक मोहम्मद अतहर ने कहा कि यह जमीन और इस पर बनी मस्जिद एवं दुकानें की वक्फ की संपत्ति हैं। दुकान के मालिक अतहर ने दलील कि 1940 के दशक में लियाकत ने इसे वक़्फ़ को दान कर दिया था। उसने इससे जुड़े वक्त के कागजात भी जमा किए। हालाँकि, जाँच में पाया यह गया कि यह वक्फ संपत्ति नहीं, बल्कि लियाकत अली की ही संपत्ति है।

शत्रु संपत्ति न्यायाधिकरण ने जाँच की तो पता चला कि सन 1918 में यह जमीन लियाकत अली खान के पिता रुस्तम अली खान के नाम पर थी। रुस्तम अली खान की बीवी और लियाकत अली खान की अम्मी महमूदा बेगम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के नवाब काहिर अली खान की बेटी थी। तब यह मुजफ्फरनगर सहारनपुर जिले में ही था। सन 1947 तक यह जमीन लियाकत अली खान के पास ही थी।

मुजफ्फरनगर के सिटी मजिस्ट्रेट विकास कश्यप ने यूपीतक को बताया कि मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन के सामने खसरा नंबर 930 खसरा की आठ बिसवा जमीन थी। इसे शत्रु संपत्ति घोषित करने का प्रार्थना पत्र आने के बाद जाँच कराई गई और रिपोर्ट को दिल्ली स्थित शत्रु संपत्ति न्यायाधिकरण को भेज दी गई। इसके बाद न्यायाधीकरण की टीम जाँच जाकर जाँच की और दोनों पक्षों को सुना।

जाँच में यह भी पाया गया कि इस जमीन पर हाल ही में एक होटल बनाया गया था। बाद में उस होटल को मस्जिद और दुकानों में तब्दील कर दिया गया। तमाम सबूतों की जाँच एवं सभी पक्षों की गवाही के आधार पर न्यायाधिकरण पाया कि यह जमीन 1947 से शत्रु संपत्ति है। इसके बाद इसे शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया है।

क्या है शत्रु संपत्ति कानून

ऐसे लोग जो देश के विभाजन के समय या फिर 1962, 1965 और 1971 के युद्धों के बाद चीन या पाकिस्तान जाकर बस गए और वहाँ की नागरिकता ले ली। ऐसे लोगों की संपत्ति को भारत सरकार भारत के रक्षा अधिनियम 1962 के तहत उनकी संपत्ति को ज़ब्त कर सकती है। ऐसी संपत्ति के लिए अभिरक्षक या संरक्षक (कस्टोडियन) नियुक्त कर सकती है।

देश छोड़कर जाने वाले ऐसे लोगों की भारत में मौजूद संपत्ति ‘शत्रु संपत्ति’ कहलाती है। 10 जनवरी 1966 के ताशकंद घोषणा में एक खंड को शामिल किया गया, जिसमें कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों ओर से कब्ज़े में ली गई संपत्ति और उसकी वापसी पर चर्चा की जाएगी। पाकिस्तान सरकार द्वारा साल 1971 में ही अपने देश में मौजूद सभी संपत्तियों का निपटारा किया जा चुका है।

ताशकंद घोषणा के बाद भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 बनाया। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो भारत में शत्रु संपत्ति के कस्टोडियन के रूप में नियुक्त है, केंद्र सरकार उस कस्टोडियन/संरक्षक के माध्यम से देश के राज्यों में फैली दुश्मन की संपत्तियों को अपने कब्ज़े में ले लेगी। यह ‘शत्रु संपत्ति संरक्षक’ (Custodian of Enemy Property for India: CEPI) के पास रहेगा।

CEPI गृह मंत्रालय के अधीन एक विभाग है, जिसका गठन वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध और 1962 व 1967 में हुए दो भारत-चीन युद्धों के बाद हुआ था। CEPI के माध्यम से केंद्र सरकार देश के राज्यों में फैली शत्रु संपत्तियों पर निगरानी एवं कब्ज़ा रखती है। इनमें अधिकांश संपत्तियाँ पाकिस्तान जाने वाले नवाबों की एवं अन्य लोगों की हैं।

साल 2017 में मोदी सरकार ने शत्रु संपत्ति कानून को और कठोर करने के उद्देश्य से शत्रु संपत्ति (संशोधन और सत्यापन) विधेयक 2016 पारित किया। इसमें शत्रु संपत्ति अधिनियम 1968 और सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत व्यवसायियों का निष्कासन) अधिनियम 1971 में संशोधन किया गया। यह कानून सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ लाया गया था।

साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि ‘शत्रु संपत्ति का संरक्षक’ ट्रस्टी के रूप में संपत्ति का प्रबंधन कर रहा है और शत्रु उसका कानूनी मालिक बना हुआ है। इसलिए, शत्रु की मृत्यु के बाद शत्रु संपत्ति उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को विरासत में मिलनी चाहिए। साल 2017 के संशोधन में शत्रु आश्रित और शत्रु फर्म का विस्तार करते हुए इसमें शत्रु के उत्तराधिकारियों को भी शामिल किया गया है, चाहे वह भारत का हो या ऐसे देश का नागरिक होना चाहिए, जो भारत का शत्रु नहीं है।

नए संशोधन विधेयक में कस्टोडियन (भारत सरकार की CEPI) को शत्रु संपत्ति का मालिक बना दिया गया। इसे 1968 से ही प्रभावी भी माना गया। इसके अलावा, शत्रु संपत्ति की अब तक हुई बिक्री ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दी गई। भारतीय नागरिक विरासत में शत्रु संपत्ति दूसरे को नहीं दे सकते। इसके साथ ही दीवानी अदालतों को कई मामलों में शत्रु संपत्ति से जुड़े मुक़दमे पर सुनवाई से रोक दिया।

CEPI के मुताबिक, देश भर में कुल 13,252 शत्रु संपत्तियाँ हैं। इसमें 12,485 संपत्तियाँ पाकिस्तान के नागरिकों की हैं, जबकि 126 चीनी नागरिकों की हैं। अगर राज्यवार आँकड़ों पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा 6255 एनिमी प्रॉपर्टी उत्तर प्रदेश में हैं। वहीं, बंगाल में ऐसी 4088 प्रॉपर्टी हैं। इनकी क़ीमत 1,04,339 करोड़ रुपए से अधिक है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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