साल 2012 के दिसंबर महीने में मशहूर अभिनेता सलमान खान को 2002 हिट एंड रन मामले में समन भेजा गया था क्योंकि वह 30 नवंबर के बाद शहर के बाहर थे। नए खुलासे में यह बात सामने आई है कि वह मुंबई में ही मौजूद थे और किसी अन्य व्यक्ति के साथ नहीं बल्कि मुंबई के स्पेशल आईजी परमबीर सिंह के साथ पार्टी कर रहे थे।
दिसंबर 2012 में मिड डे द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बांद्रा पुलिस सलमान खान को अदालत द्वारा समन नहीं भेज पाई थी क्योंकि स्थानीय इंस्पेक्टर के मुताबिक़ वह शहर के बाहर थे। जबकि इस मामले की सच्चाई यह थी कि जब पुलिस ने दावा किया कि सलमान खान शहर से बाहर हैं, उस दौरान वह मुंबई स्थित महबूब स्टूडियो में पार्टी और शूटिंग करने में व्यस्त थे।
दिसंबर 2012 के दौरान मिड डे में प्रकाशित ख़बर के अनुसार सलमान खान और परमबीर सिंह सनी दीवान और उनकी पत्नी अनू दीवान की क्रिसमस पार्टी में शामिल होने के लिए गए थे। यह ठीक वही समय था जब बांद्रा पुलिस ने दावा किया था कि सलमान खान शहर से बाहर हैं।
मिड डे की ख़बर के अनुसार पार्टी अगले दिन सुबह 7 बजे तक चली। ख़बर के मुताबिक़, “स्पेशल आईजी पुलिस परमबीर सिंह अपनी पत्नी सविता के साथ सुबह 3:15 बजे यूनियन पार्क एवेन्यू से बाहर निकलते हुए नज़र आए थे। इसके बाद वह टाटा इंडिगो मांज़ा में बैठ कर वहाँ से चले गए। इतना होने के दौरान यह भी देखा गया था कि परमबीर सिंह पत्रकारों को तस्वीरें लेने से मना कर रहे थे।”
इस पार्टी में महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री और कॉन्ग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रीती और परिणिति भी शामिल हुई थी जो कि खुद विधायक थीं। मिड डे की रिपोर्ट के अनुसार बांद्रा पुलिस थाने के एक अधिकारी ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर मिड डे को यह जानकारी दी थी। उसका कहना था कि पार्टी में प्रदेश के गृह मंत्री की बेटी समेत कई दिग्गज लोग मौजूद थे इसलिए वह इस मामले में कोई कदम उठाने के पहले असहाय महसूस कर रहे थे।
सलमान हिट एंड रन मामला
28 सितंबर 2002 को सलमान खान ने फुटपाथ पर सो रहे कई लोगों पर गाड़ी चढ़ा दी थी। इस घटना में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई थी और कुल 4 लोग घायल हुए थे। 24 जुलाई साल 2013 को सलमान खान पर गैर इतादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ था, जिसके बदले में उन्होंने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए याचिका दायर की थी। 6 मई साल 2015 को सलमान खान पर आरोप सिद्ध हुए थे लेकिन दिसंबर 2015 में सबूतों की कमी के चलते उन्हें इन सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था। 2016 में देश की सबसे बड़ी अदालत ने स्वीकार किया था कि महाराष्ट्र सरकार की याचिका ने रिहाई को चुनौती दी थी।