बिहार की राजधानी पटना के जेडी वीमेंस कॉलेज ने विवाद के बाद अपना नोटिस बदल दिया है। यह नोटिस ड्रेस कोड को लेकर था। पहले जो नोटिस निकाला गया था उसमें निर्धारित पोशाक में ही कॉलेज आने को कहा गया था। साथ ही बताया गया था कि परिसर और क्लासरूम बुर्के का प्रयोग करना वर्जित है। इसका पालन नहीं करने पर 250 रुपए फाइन लगाने का प्रावधान किया गया था।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस नोटिस से विवाद खड़ा हो गया। कुछ छात्राओं ने भी इस पर आपत्ति जताई थी। इसे देखते हुए कॉलेज ने नया नोटिस जारी किया है। इसमें बुर्के शब्द का कहीं उपयोग नहीं किया गया है। इसमें कहा गया है कि निर्धारित पोशाक में कॉलेज नहीं आने पर 250 रुपए फाइन देना पड़ेगा।
कॉलेज की प्राचार्य डॉ. श्यामा राय ने एएनआई को बताया कि बुर्का से संबंधित नोटिस वापस ले लिया गया है। नए निर्देशों में छात्राओं से ड्रेस कोड फॉलो करने को कहा गया है।
Dr. Shyama Rai, Principal, JD Women’s College, Patna: The college has withdrawn its statement regarding ‘burqa’ in its recent direction on dress code for students in the college. #Bihar https://t.co/UCJlrmk3Jp
— ANI (@ANI) January 25, 2020
इससे से पहले डॉ. राय ने कहा था, “हमने ये नियम छात्राओं में एकरूपता लाने के लिए किया है। शनिवार के दिन वो अन्य ड्रेस पहन सकती हैं, शुक्रवार तक उन्हें ड्रेस कोड में आना होगा।” उन्होंने कहा कि इस बारे में पहले ही घोषणा की गई थी। छात्राओं ने कॉलेज प्रशासन के इस फैसले पर आपत्ति जताई थी। उनका कहना था कि बुर्के से कॉलेज को क्या दिक्कत है। साथ ही कॉलेज के इस निर्देश का मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी विरोध किया था।
हालाँकि वर्ल्ड इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज़ फॉर डायलॉग की डीजी डॉक्टर जीनत शौकत अली के हवाले से दैनिक भास्कर ने बताया है बुर्का की जिक्र कहीं पर भी कुरान में नहीं आया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में कहीं नहीं कहा गया है कि बुर्का पहनकर ही पढ़ने जाएं। महिलाओं को सम्मानजनक तरीकों से कपड़े पहनने को कहा गया है। छोटी-छोटी बातों को तूल देने की जगह पढ़ाई पर जोर देना चाहिए।
इस मामले में पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रभाकर टेकरीवाल ने कहा था कि कॉलेज में ड्रेस कोड तय है, तो पालन करना चाहिए। कोर्ट के लिए तय ड्रेस कोड का पालन वकील करते हैं। कोर्ट में कोई बुर्का पहन कर नहीं आता। लिहाजा, कॉलेज के मामले में भी आपत्ति का औचित्य नहीं है। कानूनन भी इसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता। वहीं कार्यवाहक नाजिम, इमारत-ए-शरिया, मौलाना शिबली अलकासमी ने इसे समाज को तोड़ने वाला कदम बताया था।
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