पटना हाई कोर्ट ने ‘पीएफआई-फुलवारी शरीफ आतंकी मॉड्यूल’ मामले से जुड़े छह आतंकवादियों को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है। मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई 2022 की बिहार यात्रा में खलल डालने की कथित साजिश से जुड़ा है। इसके तहत बिहार में 12 सेंटर खोले गए थे और 15 हजार से अधिक मुस्लिम युवकों को आत्मरक्षा के नाम पर आक्रामक कार्रवाईयों के लिए ट्रेनिंग दी गई थी। इस मामले में 2 एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसकी जाँच एनआईए कर रही है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पटना हाईकोर्ट में जस्टिस विपुल एम पंचोली और जस्टिस रमेश चंद मालवीय की बेंच ने इस मामले में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) द्वारा जुटाए गए सबूतों पर विचार करते हुए पाया कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, ऐसे में आरोपितों को जमानत नहीं दी जा सकती। पीएफआई के फुलवारी शरीफ टेरर मॉड्यूल से जुड़े आतंकियों मंज़र परवेज़, अब्दुर रहमान, महबूब आलम, शमीम अख्तर, मोहम्मद खलीकुज्जमान और मोहम्मद अमीन ने पटना हाई कोर्ट से जमानत माँगी थी। इस मामले की जाँच एनआईए कर रही है। ये सभी प्रतिबंधित संगठन पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य हैं।
मोहम्मद जलालुद्दीन और अताहर परवेज़ के बयानों से ये पता चला है कि सभी आतंकी पीएम मोदी की रैलियों में बाधा डालकर सांप्रदायिक सद्भाव और सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने के लिए “नापाक मंसूबों” को अंजाम देने की कोशिश कर रहे थे। पटना हाईकोर्ट ने माना है कि एनआईए ने इस साजिश की जांच में अब तक पर्याप्त सबूत जुटा लिए हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि साजिश के तहत पीएफआई और सिमी के बैनर तले लोगों को संगठित कर पूरे देश में धार्मिक उन्माद चार चरणों में फैलाना था ताकि इस्लामी राज्य को स्थापित किया जा सके।
कोर्ट ने कहा है कि इस्लामिक साजिश के तहत जिन चार चरणों के तहत जो प्लानिंग की गई थी उसके अनुसार, सबसे पहले भारत के मुस्लिमों को संगठित कर हथियारों का प्रशिक्षण देना था दूसरा चुने गए जगह पर दूसरे धर्म के लोगों को निशाना बनाकर हमला कर दहशत फैलाना था। तीसरे चरण में एससी-एसटी के साथ मिलकर हिंदुओं में विभाजन करना था। आखिरी चरण में देश की पुलिस, फौज और न्यायपालिका में घुसना था। इन सबका जिक्र पीएफआई के ‘मिशन 2047’ नाम के विजन डॉक्यूमेंट में भी है।
बता दें कि दोनों संदिग्ध आतंकियों ने खुलासा किया था कि PFI द्वारा बिहार के जिलों में शारीरिक शिक्षा के नाम पर मुस्लिम युवाओं को आतंक की ट्रेनिंग दी जा रही थी। बिहार में इन ठिकानों पर PFI अब तक 15000 से अधिक मुस्लिम युवाओं को अस्त्र-शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग दे चुकी है। युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए राज्य में करीब 12 जिलों में ऑफिस खोला गया था। जबकि, पूर्णिया को PFI का हेड क्वार्टर बनाया गया था। देश विरोधी गतिविधियों की इस बड़ी साजिश की जाँच अब एनआइए कर रही है।
इन सबूतों के आधार पर केंद्र सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने जमानत का कड़ा विरोध किया। पटना हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह पाया कि इन सारी साजिशों को पूरा करने के लिए आरोपियों ने जिन डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल किया उनकी बरामदगी के बाद एजेंसी ने सरकारी तकनीकी लैब में उसका परीक्षण करवाया।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पटना के कार्यक्रम में गड़बड़ी फैलाने की साजिश की सूचना पर पुलिस ने 11 जुलाई 2022 को फुलवारी में मोहम्मद जलालुद्दीन के घर छापा मार कर उसके किराएदार जाहिद परवेज के पास से जब्त दस्तावेज और उपकरण बरामद किया था। देश में सांप्रदायिक तनाव और देश के अखंडता के खिलाफ साजिश रचने का मामला फुलवारी थाने में रजिस्टर्ड किया गया था। इस मामले में कुल 2 एफआईआर दर्ज की गई थी, पहली एफआईआर में 26 और दूसरी एफआईआर में 1 आतंकी का नाम है। NIA ने पटना, दरभंगा, पूर्वी चम्पारण, नालंदा और मधुबनी जिलों में कुल 10 ठिकानों पर छापेमारी की थी। इस मामले में बिहार पुलिस द्वारा 12 जुलाई 2022 को FIR दर्ज की गई थी लेकिन NIA ने 22 जुलाई 2022 को एक बार फिर से FIR दर्ज करवाई, जिसमें IPC की धारा 120, 120- बी, 121, 121-A, 153-A, 153-बी और 34 लगाई गई।