पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए मंगलवार (7 जून, 2022) को सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर की गई। शीर्ष न्यायालय में दायर याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। यह विदेशी आक्रमणकारियों की बनाई ‘गैरकानूनी इमारतों’ को वैधता देता है और हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को अपने धार्मिक स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि पर्सनल लॉ का अपमान कर बनाई गई इमारत को पूजा की जगह नहीं कहा जा सकता है।
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी अनिल काबोत्रा ने दायर याचिका में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 की धारा 2, 3 और 4 की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसमें कहा गया है कि यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जो प्रस्तावना और संविधान की मूल संरचना का एक अभिन्न अंग है।
भाजपा और दक्षिणपंथी संगठनों के लिए यह कानून शुरू से ही विवाद का विषय रहा है। भाजपा ने कानून के पहले दिन से ही इसका विरोध किया है। भाजपा नेता और सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने इस कानून को निरस्त करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सबसे पहले याचिका दायर की थी। इसके अलावा, इस कानून के खिलाफ लखनऊ के विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, वाराणसी निवासी, स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, देवकीनंदन ठाकुर जी, मथुरा निवासी और एक धार्मिक गुरु शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर चुके हैं।
क्या है पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991
पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा लाए गए पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 तक अगर किसी धर्म का कोई पूजास्थल है तो उसे दूसरे धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता। कानून में इसके लिए एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना का प्रावधान किया गया है। इस कानून में अयोध्या को अलग रखा गया है, क्योंकि उस समय यह मामला कोर्ट में था।
इस कानून की धारा-2 में कहा गया है कि अगर 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव को लेकर अगर किसी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकरण में कोई याचिका लंबित है तो उसे रद्द किया जाएगा। कानून की धारा-3 में कहा गया है कि किसी पूजास्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से दूसरे धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता है।
वहीं, इस कानून के धारा-4(1) में कहा गया है कि किसी भी पूजास्थल का चरित्र देश की स्वतंत्रता के दिन का वाला ही रखना होगा। इस कानून का धारा-4(2) उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाहियों पर रोक लगाता है, जो पूजास्थल कानून के लागू होने की तिथि पर लंबित थे।