दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है कि पॉक्सो एक्ट के तहत मामला सिर्फ पुरुष पर ही नहीं, बल्कि पर भी चल सकता है, क्योंकि यौन अपराधी पुरुष ही नहीं, महिला भी हो सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि बच्चों पर यौन हमले में सिर्फ जननांग ही नहीं, बल्कि कोई भी वस्तु प्रवेश कराई जाए, तो वो यौन उत्पीड़न यानी रेप की ही श्रेणी में आता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार (9 अगस्त 2024) को दिल्ली हाई कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) मामले में बड़ा फैसला दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम के तहत पेनिट्रेटिव (जबरन किसी चीज को अंदर डालना) के जरिए यौन हमले के लिए किसी महिला के खिलाफ भी केस चलाया जा सकता है।
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की बेंच ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 3, जो पेनिट्रेटिव यौन हमले से संबंधित है, उसके दायरे में किसी वस्तु या शरीर के किसी अंग को प्रवेश कराना, या प्रवेश कराने के लिए बच्चे के शरीर के किसी अंग से छेड़छाड़ करना, या मुँह का प्रयोग करना शामिल है, इसलिए यह कहना पूरी तरह से अतार्किक होगा कि इन प्रावधानों के तहत अपराध के लिए केवल पेनिस के जरिए पेनेट्रेशन की बात कही गई है।
15 पन्ने के आदेश में जस्टिस ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने के लिए बनाया गया था। बेशक बच्चे पर अपराध किसी पुरुष या महिला द्वारा किया गया हो। पीठ ने कहा, ‘धारा 3(ए), 3(बी), 3(सी) और 3(डी) में प्रयुक्त सर्वनाम ‘वह’ की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जानी चाहिए कि उन धाराओं में शामिल अपराध केवल पुरुष तक ही सीमित हो जाए। यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि उक्त प्रावधानों में पेनेट्रेटिव यौन हमले के दायरे में कोई वस्तु या शरीर का अंग डालना, या पेनेट्रेशन के लिए बच्चे के शरीर के किसी अंग से छेड़छाड़ करना या मुंह का इस्तेमाल करना शामिल है।’
कोर्ट ने यह टिप्पणी एक महिला द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान कहीं। कोर्ट ने याचिका पर विचार करते हुए अधिनियम के दायरे का विस्तार किया, जिसमें शहर की एक अदालत के मार्च 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने महिला के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप तय किए थे। यह मामला 2018 का है। एडवोकेट पीयूष सचदेव के जरिए दायर याचिका में महिला ने तर्क दिया था कि किसी महिला के खिलाफ पेनिट्रेटिव यौन हमला और गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमला का अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता, क्योंकि परिभाषा को सीधे पढ़ने से पता चलता है कि इसमें केवल और बार-बार सर्वनाम ‘वह’ का प्रयोग किया गया है।
हाई कोर्ट की विशेष टिप्पणी
पॉक्सो के प्रावधानों से पता चलता है कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 3 में प्रयुक्त शब्द ‘वह’ को ये अर्थ नहीं दिया जा सकता कि यह केवल पुरुष के लिए है। इसके दायरे में लिंग भेद के बिना कोई भी अपराधी (महिला और पुरुष दोनों) शामिल होना चाहिए।
यह सही है कि सर्वनाम ‘वह’ को पॉक्सो अधिनियम में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है। पॉक्सो अधिनियम की धारा 2(2) के प्रावधान को देखते हुए, किसी को ‘वह’ सर्वनाम की परिभाषा पर वापस लौटना चाहिए, जैसा कि आईपीसी की धारा 8 में है।
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पॉक्सो एक्ट बच्चों को यौन अपराधों से बचान के लिए बनाया गया है। चाहे वो अपराध किसी पुरुष या महिला ने किया हो। अदालत को कानून के किसी भी प्रावधान की ऐसी व्याख्या नहीं करनी चाहिए जो विधायी इरादे और उद्देश्य से अलग हो।
पॉक्सो एक्ट में किसी भी वस्तु का प्रवेश बच्चों के निजी अंगों में बात है, न कि केवल शरीर का कोई अंग। इसलिए यह कहना सही नहीं है कि यौन अपराध केवल लिंग के प्रवेश तक ही सीमित है।
पॉक्सो एक्ट की धारा 3(ए), 3(बी), 3(सी) और 3(डी) में उपयोग सर्वनाम ‘वह’ की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जानी चाहिए कि उन धाराओं में शामिल अपराध को केवल ‘पुरुष’ तक सीमित कर दिया जाए।
आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार), दूसरी ओर पॉक्सो एक्ट की धारा 3 और 5 में बताए गए क्राइम की तुलना करने से सामने आता है कि दोनों अपराध अलग-अलग हैं।