पीएम मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता अभियान की आलोचना करने वाले और उसके परिणामों पर सवाल उठाने वालों के लिए उज्जैन से जवाब आया है। स्वच्छता भारत अभियान के तहत उज्जैन में एक प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, जो उज्जैन में क्षिप्रा नदी के साथ वहाँ की महिलाओं का भी कायाकल्प करने में असरकारी साबित हो सकता है।
दरअसल, पौराणिक नगरियों में से एक महाकाल की नगरी उज्जैन में पवित्र क्षिप्रा नदी को बचाने के लिए और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए यह बड़ा कदम उठाया गया है। इस प्रोजेक्ट को नगर निगम उज्जैन ने स्वच्छता अभियान के तहत शुरू किया गया है।
नगरीय विकास विभाग के अधिकारियों के मुताबिक फ़िलहाल उज्जैन में इसे पॉयलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। इस प्रोजेक्ट में नदी किनारे श्र्द्धालुओं द्वारा जो कपड़े आदि छोड़े जाते हैं उन्हें रिसाइकिल करके फाइलें और अन्य स्टेशनरी उत्पाद बनाने की शुरुआत हो चुकी है।
इन उत्पादों की ख़ास बात यह होगी कि बाज़ारों में मिलने वाले उत्पादों से तीन गुना सस्ते होंगे। साथ ही सबसे अच्छी बात इस प्रोजेक्ट की यह होगी कि इससे स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को भी रोज़गार मिलेगा।
अगर यह कोशिश सफल हुई तो प्रदेश के 378 नगरीय निकायों को फाइलों और स्टेशनरी की आपूर्ति हो जाएगी। फ़िलहाल, तो उज्जैन नगर निगम ने इससे बनने वाली फाइलों का उपयोग शुरू कर दिया है।
दैनिक जागरण में छपी रिपोर्ट के अनुसार नदी में श्रद्धालुओं द्वारा छोड़े गए कपड़े और मंदिर-दफ्तरों की पुरानी स्टेशनरी मिलाकर लगभग 5 टन कचरा हर महीने जमा होता है। इसे रिसाइकिल करके कागज़ और फाइलें बनाई जाएँगी।
इन फाइलों के बनाने में लगभग ढाई रुपए का ख़र्चा आता है। जबकि ये फाइलें बाज़ार में 10 रुपए की मिलती हैं। इस परियोजना के तहत हर महीने क़रीब पाँच टन कचरे से लगभग 10 हज़ार फाइले बनाई जाएँगी। इन फाइलों को उज्जैन के स्थानीय सरकारी दफ्तरों में 8 रुपए प्रति फाइल की दर पर बेचा जाएगा।