राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पुणे में दतोपंत ठेंगड़ी जन्मशताब्दी समारोह में सामाजिक समरसता विषय पर आयोजित व्याख्यान माला में अपनी बात रखते हुए कई सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
अपने एक बयान में उन्होंने आरक्षण को लेकर कहा, “देश में आरक्षण के लिए कानून तो बने हैं लेकिन इसका लाभ सभी को नहीं मिल पा रहा है। जिनका जहाँ प्रभुत्व है वो इसका लाभ ले रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे माना है। वैसे समाज में जब तक जरूरत है आरक्षण लागू रहना चाहिए। इसको मेरा पूरी तरह से समर्थन है।”
आरएसएस संघ चालक ने कहा कि जिन लोगों को देश के टुकड़े करना है वह समाज में एकता लाना बर्दाश्त नहीं करेंगे। क्रांति के रास्ते समाज में समरसता नहीं लाई जा सकती है। डॉ. बाबा साहेब ने भी कहा था कि विधि सम्मत रास्ते से ही समस्या का समाधान संभव है।
मोहन भागवत ने देश की जनता से समाज में फैली विषमता को उखाड़ फेंकने की अपील की। वह बोले कि सामाजिक समरसता के लिए अपने आचरण में बदलाव लाना होगा। हमें करके दिखाना होगा। उन्होंने देश में सामाजिक समरसता के लिए चल रहे अभियान को लेकर कहा कि क्रांति से परिवर्तन नहीं आता, परिवर्तन लाने के लिए संक्रांति चाहिए।
संघ प्रमुख ने कहा, “राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए कुछ लोग समाज के दोषों को आधार बनाकर समाज में दूरियाँ बढ़ाने और झगड़े लगाने का काम कर रहे हैं। ऐसे लोग भ्रम का जाल उत्पन्न करते हैं। इनसे सावधान रहना होगा। सामाजिक समरसता का काम करने वालों की जिम्मेदारी है कि देश का समाज दोष मुक्त हो कर एक बने। संविधान की प्रस्तावना सब लोगों के आचरण में आए। सामाजिक समरसता का काम करने वालों की यह परीक्षा है।”
मोहन भागवत ने कहा, “हमारे यहाँ कम से कम पानी, मंदिर और श्मशान में कोई भेद नहीं होता। इसको लेकर हमको पूछने की जरूरत ही नहीं है। संघ ने इस दिशा में एक बड़ी रेखा खींचने का काम किया है। सामाजिक विषमता नहीं रहेगी, यह राष्ट्रीय लक्ष्य है। सबको इस दिशा में प्रयास करना होगा। विषमता हटनी चाहिए, यह सब चाहते हैं।”
मोहन भागवत ने कहा, “हम सब एक हैं। अपने स्वार्थ के कारण एक दूसरे को ऊँच-नीच कर दूर रखा गया। हमें उस कलंक को हटाना है। हम एक हैं, हमको एक होना है। विषमता बहुत दिनों की बीमारी है, बुद्धि से जाएगी। विषमता धर्म नहीं हो सकती।”
संघ प्रमुख कहते हैं, “समरसता के बिना समता संभव नहीं है। इसके लिए हमें तैयार रहना होगा। झुकना पड़े तो पीछे नहीं हटूँगा। जो ऊपर है उन्हें झुकना पड़ेगा और जो नीचे है उन्हें हाथ बढ़ाना पड़ेगा तभी समाज का उत्थान होगा।”
वह बताते हैं, “सारा समाज अपना है। सारी विविधताओं को साथ लेते हुए एक माता के पुत्र के नाते, एक राष्ट्र के राष्ट्रीय घटक के नाते हमें राष्ट्र के लिए एक साथ खड़े होना है। ऐसा नहीं करेंगे तो फिर से यह स्वतंत्रता चली जाएगी। बाबा साहब की मशाल हाथ में लेकर हमें काम करना चाहिए।”
उन्होंने लोगों से एकजुट होने को लेकर अपील की। वह बोले कि समाज में समरसता लाने के लिए अपने आचरण का उदाहरण लोगों के सामने पेश करना होगा। पहले करके दिखाना होगा, फिर दूसरे को बताना। संघ के स्वयंसेवक कर रहे हैं, सामाजिक समरसता मंच के लोगों को भी करना चाहिए। हमें मिलकर पर्व, त्योहार व उत्सव मनाना चाहिए। अपनी भाषा को ठीक करनी चाहिए। न्याय के पक्ष में उठने वाली आवाज के साथ खड़ा होना चाहिए।
सारा समाज अपना है इस भाव को लेकर काम करना है संविधान की प्रस्तावना सबके आचरण में आए इसके लिए वाणी का दिया जलाकर समरसता को लोगों के हृदय में उतारना है और बाबा साहेब को यह बता देना होगा कि वह दिन नहीं आएगा कि फिर से हमारी स्वतंत्रता चली जाए।