Friday, November 15, 2024
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‘वन्दे मातरम’ न कहने वालों को सेना के जवान और डॉक्टर ने Whatsapp ग्रुप में कहा – पाकिस्तान जाओ: सिद्दीकी ने करवा दी थी FIR, हाईकोर्ट ने रद्द किया

शाहबाज़ सिद्दीकी ने कहा कि 'वन्दे मातरम' का अर्थ होता है माँ की पूजा करना, इसीलिए उन्होंने इसे कहने से इनकार कर दिया था। उनका कहना है कि ऐसे करने पर इस्लाम से निकाल दिया जाता।

बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर शाखा ने एक डॉक्टर और सेना के एक जवान के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। इन दोनों पर आरोप था कि इन्होंने ‘वन्दे मातरम बोलो या फिर पाकिस्तान जाओ’ वाला बयान देकर मुस्लिमों की भावनाओं को आहत किया है। जस्टिस विभा कंकणवाडी और वृषाली जोशी ने बुधवार (24 जुलाई, 2024) को इस पर दुःख जताया कि आजकल हर कोई अपने मजहब और अपने खुदा को बाकी सबसे ऊपर दिखाना चाहता है।

दोनों जजों ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और सभी को एक-दूसरे के मजहब का सम्मान करना चाहिए। जजों के अनुसार, वो ये कहने को बाध्य हैं कि आजकल लोग अपने मजहबों को लेकर कुछ ज़्यादा ही संवेदनशील हो गए हैं, पहले से भी बहुत अधिक। उन्होंने कहा कि हम एक लोकतांत्रिक सेक्युलर देश में रहते हैं जहाँ सबको एक दूसरे के मजहब-जाति-नस्ल का सम्मान करना चाहिए। हालाँकि, हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि अगर कोई कहता है कि उसका मजहब और खुदा सर्वोच्च है तो फिर कोई इस पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे सकता, इसके लिए और भी तरीके और साधन हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ 41 वर्षीय सेना के जवाब प्रमोद शेंद्रे और 47 साल के डॉक्टर सुभाष वाघे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। मामला 2017 के एक Whatsapp ग्रुप चैट का है, जिसमें 150-200 सदस्य मौजूद थे। शिकायतकर्ता शबाज़ सिद्दीकी का कहना है कि दोनों ने पहले मुस्लिम समाज को लेकर कुछ सवाल पूछे, जो आपत्तिजनक थे। जब ग्रुप में कुछ मुस्लिमों ने ‘वन्दे मातरम’ कहने से इनकार कर दिया तो शेंद्रे और वाघे ने उन्हें पाकिस्तान चले जाने को कह दिया था।

शाहबाज़ सिद्दीकी ने कहा कि ‘वन्दे मातरम’ का अर्थ होता है माँ की पूजा करना, इसीलिए उन्होंने इसे कहने से इनकार कर दिया था। उनका कहना है कि ऐसे करने पर इस्लाम से निकाल दिया जाता। बकौल शाहबाज़ सिद्दीकी, मुस्लिम सिर्फ ‘हिंदुस्तान ज़िंदाबाद’ कह सकते हैं। नागपुर में सिद्दीकी द्वारा FIR भी दर्ज करवाई गई थी। आरोपितों के वकील समीर सोनवणे का कहना था कि सिद्दीकी को जानबूझकर ग्रुप का सदस्य बनाया गया था ताकि ऐसी स्थिति आ जाए।

उन्होंने कहा कि प्रमोद और सुभाष को ये चिंतनीय लगा था कि भारत के ही कुछ लोग ‘वन्दे मातरम’ का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि दोनों आरोपित सम्मानित व्यक्ति हैं और अपने देश से प्यार करते हैं, ऐसे में उन्हें कोर्ट में घसीटना अन्याय होगा। जबकि मुस्लिम पक्ष के वकील का कहना था कि वो दोनों हिंदू धर्म को श्रेष्ठ दिखाना चाहते थे और उनके मन में मुस्लिमों के प्रति दुर्भावना थी। हाईकोर्ट ने जाँच को त्रुटिपूर्ण बताते हुए FIR रद्द करने का आदेश दिया। चैट वाले दिन सिद्दीकी डॉ सुभाष के क्लिनिक भी पहुँच गया था और वहाँ लड़ाई की थी।

जजों ने नोट किया कि ग्रुप में 150-200 सदस्य होने के बावजूद पुलिस ने सिर्फ 4 मुस्लिमों के ही बयान दर्ज किए। उन्होंने खुद बताया कि वो ग्रुप में ज़्यादा सक्रिय भी नहीं थे। उच्च न्यायालय ने कहा कई ये एक राजनीतिक बहस थी और ऐसी बहस को गर्मागर्मी हो जाती है। पुलिस ने ये तक पता नहीं किया कि उक्त ग्रुप का एडमिन कौन था। ग्रुप में कितने मुस्लिम थे, ये भी पुलिस नहीं बता पाई। साथ ही ये IPC के 295A का भी मामला नहीं था, क्योंकि व्हाट्सएप्प में मैसेज एन्ड टू एन्ड एन्क्रिप्टेड होते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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