समाज सुधार की श्रृंखला में एक नया अध्याय जुड़े इसके लिए इस्लामिक बेड़ियों में जकड़ी महिलाओं को उनके मस्जिद जाने जैसे सामान्य अधिकार के लिए शुक्रवार को उच्चतम न्यायलय ने मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश सम्बन्धी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब माँगा है। इस याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस ए नज़ीर की पीठ ने मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश देने के अनुरोध पर केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय तथा अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को नोटिस जारी किया है।
बता दें कि रूढ़िवादी इस्लामिक मान्यता को चुनौती देने वाली इस याचिका को दायर करने वाले यास्मीन जुबैर अहमद पीरजाद खुद भी इस्लाम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। जुबैर ने मौलिक अधिकारों के हनन की बात को आधार बताते हुए अपनी याचिका दायर की है। इसमें जुबैर अहमद ने सरकारी अधिकारियों और वक्फ बोर्ड जैसे मुस्लिम निकायों को मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने का अनुरोध किया है। इस मामले में अगली सुनवाई अब 5 नवम्बर को होनी है।
Supreme Court issues notice to Centre and others on a PIL seeking direction to declare the practices of prohibition entry of Muslim women in mosque as illegal and unconstitutional. A Bench headed by CJI seeks response from Centre and posts the matter on November 5. pic.twitter.com/DU7yDZdLBq
— ANI (@ANI) October 25, 2019
भारत में महिलाओं की स्थिति को लेकर लम्बे समय से गंम्भीर विमर्श होता रहा है। उनकी स्थिति को सुधारने के लिए कभी सरकार, तो कभी समाज ने आगे आकर अपने दायित्व को निभाया है। मगर महिलाओं में भी एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो शरीयत जैसी मान्यताओं के बंधन की वजह से अपने मूल अधिकारों से पूर्णतः वंचित हैं, यह आबादी दरअसल उन मुस्लिम महिलाओं की है जिन्हें इस्लामिक मान्यताओं तले हमेशा शोषित और पीड़ित बनाकर ही रखा गया है। देश में अक्सर यह बहस उठती है कि महिलाओं को मस्जिदों में प्रवेश की अनुमति देकर उन्हें उनका उचित सम्मान क्यों नहीं दिया जाता जिसकी वह हकदार हैं।
बता दें कि इस्लाम में शरीयत के हिसाब से कोई भी महिला दरगाह, कब्र या मस्जिद में प्रवेश नहीं कर सकती। मुंबई के हाजी-अली दरगाह मामले में इस मुद्दे को लेकर देश पहले ही काफी बहस देख चुका है।