दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शाहीन बाग़ में भड़काऊ भाषण देने वाले शरजील इमाम को जमानत दे दी। इस दौरान उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि शरजील इमाम ने किसी को भी हथियार उठाने या हिंसा करने के लिए नहीं कहा। हाईकोर्ट ने कहा कि शरजील इमाम के बयान से कोई हिंसा नहीं हुई। हाईकोर्ट ने कहा कि पुष्ट आरोप और बयान से होने वाले दुष्प्रभाव को लेकर जाँच की जा सकती है। हाईकोर्ट का कहना है कि इन आरोपों के लिए 3 साल की सज़ा हो सकती है, जिसमें से 1 साल दो महीने से वो जेल में बंद है।
बता दें कि ये मामला ‘अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU)’ में 16 जनवरी, 2020 को शरजील इमाम द्वारा ‘नागरिकता संशोधन कानून (CAA)’ के विरोध में आयोजित एक कार्यक्रम में दिए गए भड़काऊ बयान का है। इस मामले में उनके खिलाफ ‘भारतीय दंड संहिता (IPC)’ की धारा-124A (देशद्रोह), 153A (दो समूहों के बीच वैमनस्य पैदा करना), 153B (राष्ट्रीय अखंडता के खिलाफ दिया गया बयान), 505(2) (विभिन्न समुदायों दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
बता दें कि शरजील इमाम सितंबर 2020 से ही जेल में बंद है। शरजील इमाम के वकील ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि उनके मुवक्किल ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया था, जिससे हिंसा हो और राष्ट्रीय अखंडता को खतरा हो। साथ ही उसने दावा किया कि केस डायरी में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा है कि शरजील इमाम के भाषण का उसे सुनने वालों पर कोई असर हुआ हो। शरजील इमाम के पक्ष में दलील दी गई कि 16 जनवरी, 2020 को उसने ये बयान दिया था, जबकि FIR 9 दिन बाद दर्ज की गई।
Sharjeel Imam's Speech Didn't Incite Violence, No Call To Bear Arms: Allahabad HC Grants Bail In Aligarh Sedition Case @ISparshUpadhyay https://t.co/A1sHW1qni9
— Live Law (@LiveLawIndia) November 29, 2021
शरजील इमाम ने वकील ने कहा कि नियम के तहत FIR नहीं दर्ज की गई और एक साथ कई मामले दर्ज कर दिए गए। जबकि सरकार की तरफ से पेश काउंसल ने कहा कि शरजील इमाम के बयान के सम्बन्ध में उन सभी चीजों के बारे में बताया गया है, जिसमें देश की अखंडता को खतरा और हिंसा की बात है। इसके लिए उन्होंने शरजील इमाम के आपराधिक इतिहास की बात करते हुए, जिसमें एक हत्या का मामला भी दर्ज है। उन्होंने कहा कि वो पहले से ही अवैध गतिविधियों में लिप्त था है।
दोनों तरफ की दलीलें सुनने के बाद इलाहाबाद उच्च-न्यायालय ने कहा कि आरोपित 1 साल और 2 महीने जेल में रह चुका है, जबकि उस पर लगे आरोपों के मामले में अधिकतम 3 वर्ष की सज़ा हो सकती है। इसके बाद उसे 50,000 रुपए के मचलने पर जमानत दे दी गई। शर्त रखी गई कि आरोपित सबूत के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा। जाँच में सहयोग करने का निर्देश भी दिया गया। आरोपित किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होगा और किसी भी शर्त के उल्लंघन के मामले में उसकी जमानत को रद्द किया जा सकता है।