मोतिहारी के ‘महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय (MGCUB)’ के कुलपति की रेस में जो 5 लोग शामिल हैं और जिनका केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने साक्षात्कार लिया है, उसमें एक नाम प्रोफेसर शील सिंधु पांडे का भी है। उन्हें लेकर यहाँ के छात्र विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन पर पहले भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं और मोतिहारी का MGCUB काफी पहले से ही भ्रष्टाचार से पीड़ित रहा है। इसी कारण पिछले कुलपति को इस्तीफा देना पड़ा था।
सामाजिक कार्यकर्ता आलोक राज ने इस बाबत केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र भी लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिखा है कि विश्वविद्यालय के नए कुलपति की नियुक्ति हेतु दिनांक 24 और 25 जून को शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा गठित कुलपति चयन समिति के द्वारा विभिन्न उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया। पत्र के अनुसार, इसमें प्रोफेसर शील सिंधु पांडे का नाम कुलपति चयन समिति के द्वारा अंतिम 5 सफल अभ्यर्थियों में शामिल किया गया है।
पत्र में लिखा है, “विदित हो कि प्रोफेसर शील सिंधु पांडे विक्रम विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश में कुलपति रह चुके हैं जहाँ पर वे किताब खरीदने तथा अवैध नियुक्ति करने के मामले में हुए घोटाले के मुख्य आरोपित हैं। मध्य प्रदेश उच्च-न्यायालय में उन पर मुकदमा भी हुआ था। इस बाबत हाईकोर्ट ने उनसे जवाब भी माँगा था, लेकिन तब वो पकड़े जाने के कारण पहले ही इस्तीफा देकर निकल गए थे। वो अक्खड़, शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले और घोटालेबाज किस्म के व्यक्ति हैं।’
समाजसेवी ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से निवेदन किया है कि प्रोफेसर शील सिंधु के नाम पर विचार न किया जाए और शीर्ष-5 में शामिल करने के फैसले को निरस्त किया जाए। साथ ही उनकी जगह किसी स्वच्छ छवि वाले प्रोफेसर को कुलपति बनाने की माँग की गई है। कहा गया है कि पहले से ही विवादों में रहे विश्वविद्यालय को बचाने के लिए ये ज़रूरी है कि पठन-पाठन का कार्य सुचारु रूप से करवाने वाले बेदाग़ छवि के व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जाए।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस शिकायत का संज्ञान लिया है और इसे आगे भेजा है। अब छात्रों को इस मामले में आगे कार्रवाई का इंतज़ार है। इस सम्बन्ध में निखिल कुमार नामक छात्र ने RTI भी दायर की है और पूछा है कि अब तक इस शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई। MGCUB के मौजूदा कुलपति का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अगले कुलपति का छात्रों व शिक्षकों को इंतजार है। MGCUB अभी भी मोतिहारी के अस्थायी कैंपस में ही चल रहा है। जमीन अधिग्रहण के बावजूद निर्माण कार्य रुका हुआ है।
इससे पहले भी दो अन्य प्रोफेसरों को लेकर विवाद हुआ था। कहा जा रहा था कि उनमें से एक जहाँ वामपंथी विचारधारा के हैं, वहीं दूसरे ने नक्सलियों के प्रति सहानुभूति जताई है। दोनों ही प्रोफेसरों ने इन आरोपों को नकार दिया था। ऑपइंडिया से बात करते हुए उन दोनों ने आरोप लगाए थे कि एक साजिश के तहत ये दुष्प्रचार चलाया जा रहा है। अब सभी को शिक्षा मंत्रालय के अंतिम निर्णय का इंतजार है।
जहाँ तक प्रोफेसर शील सिंधु पांडे की बात है, उन पर 2016 में ‘विक्रम विश्वविद्यालय’ में किताब खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। RTI कार्यकर्ता डॉक्टर मोहन बैरागी ने इस सम्बन्ध में RTI दायर की थी, जिसके बाद जाँच शुरू हुई थी। इसी बीच हाईकोर्ट में भी याचिका दायर हुई थी। अंततः प्रोफेसर शील सिंधु पांडे को इस्तीफा देना पड़ा था। आरोप लगे थे कि उन्हें विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यों से कोई मतलब नहीं रहता था।
उनके खिलाफ उच्च-न्यायालय में याचिका ‘भारतीय युवा संघ’ ने दायर की थी। फरवरी 2019 में उनके इस्तीफे के बाद मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित विक्रम यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों ने नारेबाजी कर के ख़ुशी भी मनाई थी। इसके बाद बीके शर्मा को वहाँ का अगला कुलपति नियुक्त किया गया था। साथ ही उन पर ‘RD गार्डी मेडिकल कॉलेज में 1 दिन में 36 लोगों की नियुक्ति करने का आरोप है, जिसे संदिग्ध बताया गया था।
आरोपों पर क्या कहते हैं प्रोफेसर शील सिंधु पांडे
प्रोफेसर शील सिंधु पांडे ने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों से इनकार किया है। ऑपइंडिया ने जब उनसे इस बाबत सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि जब टेंडर रद्द हो गया था और किताब की खरीद ही नहीं हुई थी तो घोटाले की बात कहाँ से आ गई? साथ ही एक दिन में 36 संदिग्ध नियुक्तियों पर उन्होंने सफाई दी कि एक प्राइवेट कॉलेज में इस तरह के निर्णय कुलपति द्वारा सीधे नहीं लिए जाते हैं और वो एक कमिटी भेजता है।
उन्होंने कहा कि इसी तरह उक्त कॉलेज में नियुक्तियों के लिए एक कमिटी बना कर भेजी गई थी, क्योंकि वहाँ कई पद खाली होने के कारण पठन-पाठन का कार्य प्रभावित हो रहा था। उन्होंने कहा कि इस निर्णय में उनकी कोई भागीदारी नहीं थी।