सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब मामले में ‘Split Verdict’, अर्थात बँटा हुआ फैसला दिया है। कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब में अनुमति के सम्बन्ध में दो जजों की पीठ सुनवाई कर रही थी, जिनकी राय अलग-अलग रही। जहाँ जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के जजमेंट को ख़ारिज करते हुए इसके खिलाफ याचिकाओं को अनुमति दे दी, वहीं जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया।
अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया गया है, जो एक बड़ी बेंच का गठन करेंगे। यही बेंच इस मामले की सुनवाई कर के फैसला देगी। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज करने का प्रस्ताव रखा। वहीं सुधांशु धुलिया ने कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गलत रास्ता चुना और ये पूरा मामला मजहब में अनिवार्यता का न होकर व्यक्तिगत पसंद का है, अनुच्छेद 14 और 19 का है।
उन्होंने कहा कि उनके मन में सबसे बड़ा सवाल लड़कियों की शिक्षा का था कि क्या हम उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं? उन्होंने कर्नाटक सरकार द्वारा 5 फरवरी,2022 को जारी किए गए आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब में क्लासरूम में आने की अनुमति नहीं दी गई थी। जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा कि वो इन प्रतिबंधों में ढील देने के पक्षधर हैं। 10 दिनों की सुनवाई के बाद 22 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में ऑर्डर रिजर्व कर लिया था।
Hijab is a matter of choice. Education of girl child priority top priority: Justice Sudhanshu Dhulia #hijab #SupremeCourt #KarnatakaHijabRow
— Bar & Bench (@barandbench) October 13, 2022
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जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कहा कि कई क्षेत्रों में लड़कियाँ स्कूल जाने के अलावा घर के कामकाज भी करती हैं, ऐसे में क्या हिजाब पर प्रतिबंध लगा कर हम उसके जीवन को बेहतर बना रहे हैं? वहीं जस्टिस हेमंत गुप्ता ने माना कि हिजाब पहनना इस्लाम मजहब का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और राज्य सरकार का आदेश शिक्षा तक पहुँच की भावना के लिहाज से सही है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश को सही ठहराया था, जिसमें स्कूल-कॉलेज के प्रबंधनों को यूनिफॉर्म के रूप में हिजाब को बैन करने का अधिकार मिल गया था। मुस्लिम लड़कियाँ इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुँची थीं