सूरत के मंदिरों में हनुमान चालीसा को लाउडस्पीकरों पर बजाते हुए 8 महीने हो गए हैं। इसकी शुरुआत सूरत के सोनी फलिया से हुई थी जहाँ देसाई नी पॉल स्थित है। वहाँ श्री साईनाथ युवक मंडल नामक एक युवा संगठन ने हनुमान चालीसा का पाठ दिन में दो बार लाउडस्पीकर पर करने का निर्णय लिया था। बाद में इससे एक पवित्र और धार्मिक माहौल इलाके में बनता गया।
यहाँ ये जरूरी नहीं है कि सिर्फ मंदिरों पर ही लाउडस्पीकर हो। कुछ स्थानीयों ने अपने घर की छतों पर भी हनुमान चालीसा बजाने के लिए लाउडस्पीकरों को जगह दी है। समय निर्धारित है- सुबह और शाम। रोज आरती के समय हनुमान चालीसा बजती है।
कुछ दृश्य हैं जो सूरत के आजाद नगर से हैं जहाँ चालीसा पाठ हुआ। वीडियो में स्पष्ट तौर पर हनुमानाष्टक का पाठ होते सुना जा सकता है।
स्थानीयों का कहना कि अन्य मजहब के लोग अपने प्रार्थना समय में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करते हैं और किसी भी उठने वाली आपत्ति का मजाक बनाकर उसे नीचा दिखाया जाता है। वहीं हिंदू मुश्किल से अपनी धार्मिक पहचान का प्रदर्शन करते हैं क्योंकि भारत में उनको सिखाया जाता है कि इसे छिपाएँ ताकि तथाकथित सेकुलरिज्म जिंदा रहे।
ऑपइंडिया से बात करते हुए बजरंग दल संयोजक ने और सूरत निवासी यग्नेश पटेल ने कहा, “हिंदुओं पर प्रतिबंध है जबकि दूसरे मजहब में लाउडस्पीकर इस्तेमाल होता है।”
पटेल कहते हैं, “एक निश्चित समुदाय के लोग तो हर शुक्रवार इकट्ठा होते हैं और अपनी मजहबी पहचान का प्रदर्शन सार्वजनिक जगहों पर करते हैं। सूरत में हमारे यहाँ 15 जगहों पर साप्ताहिक सत्संग होता है। लोग आते हैं और हनुमान चालीसा पढ़ते हैं। इस तरह हम धर्म के प्रति जागरूकता और माहौल में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा रहे हैं। यही हमारा उद्देश्य है। ”
पटेल कहते हैं, “हम रोड ब्लॉक नहीं करते और लोगों को परेशानी नहीं देते। हम मंदिर के परिसर में बैठते हैं और कुछ समय तक के लिए हर शनिवार सत्संग करते हैं। इससे हर कोई खुद को अपने धर्म के नजदीक पाता है।”
समय के साथ लोग इन प्रयासों को सराहते हैं और ज्यादा से ज्यादा लोग प्रार्थना और सत्संग में भाग लेते हैं। ये सिर्फ सूरत तक सीमित नहीं है। गुजरात के अन्य जगहों में भी हनुमान चालीसा के पाठ को बढ़ावा दिया जा रहा है। हिंदूवादी संगठन श्री साईनाथ युवक मंडल, दुर्गा वाहिनी का महिला समूह और मातृ शक्ति भी इस सत्संग में भाग लेते हैं।
हिंदुओं का प्रतिकार
पूरे भारत भर में नमाज दिन में पाँच बार लाउडस्पीकर पर होती है। एक तरफ जहाँ इस्लामी देशों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को मना किया जाता है और सिर्फ इंटरनल स्पीकरों को इस्तेमाल करने को कहा जाता है। वहीं अगर भारत में ऐसी कोई टिप्पणी कर दे तो इंसान को कट्टर और इस्लामोफोबिया से ग्रस्त कह दिया जाता है और ये खासकर खुद को लिबरल और सेकुलर कहने वाले लोग ज्यादा बोलते हैं।
भारत के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को संरक्षित करने के लिए भारत में किसी भी अदालत या सरकार ने इसके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं की। पुलिस भी कई बार ऐसे में मामलों में लाउडस्पीकर चलाने वालों से ज्यादा उसके ख़िलाफ़ शिकायत करने वालों पर एक्शन लेती है। जब कानून और व्यवस्था बनाए रखने वाले और सबके हितों की रक्षा करने वाले ही इस तरह एक तय समुदाय के प्रति इतकी नरमी रखेंगे ताकि उन्हें दुख ना हो तो इस पक्षपात पर सबका ध्यान जाएगा ही। लोग इस तरह सेकुलरिज्म के नाम पर किए जा रहे बदलावों को नजरअंदाज नहीं कर सकते।
जब हिंदुओं ने लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा का पाठ शुरू किया तो इस प्रतीकात्मक प्रतिकार का संदेश कहीं गहरा हुआ। वे कानून को अपने हाथ में नहीं ले रहे, मस्जिदों की बिजली नहीं काट रहे, लाउडस्पीकर नहीं हटवा रहे। वे बस न्याय और समानता के लिए नई शुरुआत कर रहे हैं। ऐसा ही प्रतिकार गुरुग्राम में भी देखने को मिला था, जब नमाज के नाम पर हुए अवैध कब्जे से कम्युनिटी ग्राउंड को आजाद करने के लिए स्थानीय लोगों ने सड़क पर बैठकर भजन किया था।
जो चीज पॉल के लिए अच्छी है, वो परवेज के लिए होनी चाहिए और जो परवेज के लिए अच्छी है वो प्रफुल्ल के लिए होनी चाहिए।
मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई निरवा मेहता की रिपोर्ट पर आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।