तमिलनाडु के कॉन्ग्रेस के मीडिया प्रभारी सैयद मोहम्मद तौसीफ ने माँग की है कि ऑपइंडिया को बंद कर देना चाहिए और इसके संपादकों को जेल भेज देना चाहिए। आपको पता है कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि ऑपइंडिया कुछ दिनों से मालाबार हिंदू नरसंहार के सच को दिखा रहा है।
सैयद मोहम्मद तौसीफ ने लिखा, “ऑपइंडिया को बंद कर दिया जाना चाहिए और सांप्रदायिक नफरत और हिंसा को हवा देने के लिए इसके संपादकों को अदालत में लाया जाना चाहिए और उन पर मुकदमा चलना चाहिए। यह लगातार अपने मालिक की इच्छा के अनुरूप सांप्रदायिक और फर्जी सूचनाओं शेयर कर रहा है।”
@OpIndia_com should be closed and its editors should be bought to the court to stand trial for fanning the winds of communal hate and violence.
— Syed Mohamed Thousif (@syedmthousif96) September 25, 2021
It has consistently been putting out communal and fake Information just as its master’s want https://t.co/KWTK5fhgVQ
बता दें कि तौसीफ ने यह ऑपइंडिया के एक ट्वीट को रीट्वीट करते हुए लिखा है, जिसमें मालाबार हिंदू नरसंहार को एक ग्राफिक्स के जरिए दर्शाने की कोशिश की गई है। ग्राफिक्स में मुस्लिम लोग हिंदुओं का गला काट कर बेरहमी से हत्या कर रहे हैं, महिलाओं की अस्मत लूट कर उसकी हत्या कर रहे हैं और फिर उसे कुएँ फेंक रहे हैं। इधर भयावह नरसंहार को कम्युनिस्ट ‘किसान विद्रोह’ बताता है, जो रईस जमींदारों के खिलाफ है।
आज मालाबार नरसंहार की 100वीं बरसी है। ठीक 100 वर्ष पहले आज के ही दिन 25 सितंबर 1925 को मालाबार में हिंदुओं नरसंहार हुआ था। हालाँकि इसकी भूमिका इससे पहले ही बन चुकी थी। केरल के मालाबार में लंबे समय तक हिंदुओं का कत्लेआम होता रहा, माताओं बहनों का बलात्कार होता रहा। लेकिन आश्चर्य देखिए इसके बाद भी इस भयावह नरसंहार को ‘कृषि विद्रोह’ कहा जाता रहा है।
25 सितंबर 1921 को 38 हिंदुओं का बेरहमी से सिर कलम किया गया था और उनकी खोपड़ी कुएँ में फेंक दी गई थी। ये बात दस्तावेजों में भी दर्ज है कि जब मालाबार के तत्कालीन जिलाधिकारी इलाके में गए तो कई हिंदू कुएँ से मदद के लिए गुहार लगा रहे थे। ऑपइंडिया का ग्राफिक्स इसी घटना को दर्शाता है।
केरल के मालाबार में मोपला मुसलमानों ने क्रूरता, हैवानियत, दरिंदगी का कोई भी कोना नहीं छोड़ा था। सरेआम सर कलम किए गए। लोगों को जिंदा जलाया गया। परिजनों के सामने महिलाओं की अस्मत लूटी गई। गर्भवती महिलाओं के पेट को चीर दिया गया। लोगों से जबरन धर्मांतरण करवाए गए। हैवानियत की सारी हदों के बारे में आप सोच सकते हैं और जो सोच तक नहीं सकते हैं वो सब हुआ। लेकिन इतिहास के इस क्रूरतम पाप को मोपला विद्रोह का नाम देकर लोगों को गुमराह कर दिया गया।
केरल के मालाबार में हुए विद्रोह को अंग्रेजों के खिलाफ बताया जाता है। लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को निशाना बनाया गया था। उनका नरसंहार हुआ था और जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया था। लेकिन वामपंथी इतिहासकार इसे सामंतवाद और अंग्रेजों के खिलाफ का विद्रोह करार देते हैं। मोपला विद्रोह एक सांप्रदायिक हिंसा थी जिसमें हिन्दुओं का नरसंहार हुआ था। तलवार के दम पर बड़े पैमाने पर मोपलाओं ने धर्मांतरण करवाए थे। खिलाफत पूरी तरह सांप्रदायिक आंदोलन था। जिसका देश की स्वतंत्रता संग्राम से कोई लेना-देना नहीं था।
इतिहास की किताबें बताती हैं कि खिलाफत आंदोलन वो आंदोलन था जहाँ हिंदू मुस्लिम एक दूसरे के साथ खड़े होकर ब्रिटिशों से लड़े। जबकि सच ये है कि इस आंदोलन का उद्देश्य मुस्लिमों के मुखिया माने जाने वाले टर्की के ख़लीफ़ा के पद की पुन: स्थापना कराने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालना था। भारतीय मुसलमान इस्लाम के खलीफा के लिए लड़ रहे थे और गाँधी ने इस आंदोलन में उनको समर्थन दिया था।
गाँधी के इस कदम ने इस्लामवाद को भारत में और अधिक पोसा। उनको लग रहा था कि ऐसे कदम से मुसलमानों के बीच ब्रिटिश विरोधी भावना मजबूत होगी। यह पहला आंदोलन माना जाता है जिसने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ ‘असहयोग आंदोलन’ को मजबूत किया।
मोपला नरसंहार की 100वीं बरसी पर बोलते हुए RSS विचारक जे नंदकुमार ने 25 सितंबर की एक क्रूरतम हत्याकांड को याद किया, जहाँ मल्ल्पुरम और कालीकट के बीच एक स्थान पर एक कुएँ के सामने 50 से ज्यादा हिन्दुओं को मुस्लिम आतंकियों ने बाँध कर रख दिया।
एक चट्टान के ऊपर बैठ कर उनके ‘गुनाहों’ की बात की गई और तिलक-चोटी-जनेऊ पर आपत्ति जताते हुए मंदिर में जाने को भी ‘गुनाह’ बताया गया और कहा गया कि शरीयत के शासन में ये ठीक नहीं है। हिन्दुओं के गले काट-काट कर कुएँ में धकेल दिया गया, जिसमें कई हिन्दू दम घुटने से भी मरे। इसके कई घंटों बाद कुएँ में आवाज़ सुन कर कुछ मुस्लिम कुएँ में उतरे और अधमरे लोगों के भी गले काट-काट कर हत्याएँ की गईं।