पंजाब के अर्जुन और पद्म पुरस्कार विजेताओं ने अब प्रदर्शनकारी ‘किसानों’ के साथ एकजुटता दिखाने के लिए अपना पुरस्कार वापस करने की इच्छा व्यक्त की है। पद्म श्री और अर्जुन अवार्डी पहलवान करतार सिंह, अर्जुन अवार्डी बास्केटबॉल खिलाड़ी सज्जन सिंह चीमा और अर्जुन अवार्डी हॉकी खिलाड़ी राजबीर कौर उन लोगों में से हैं जो अपने पुरस्कार वापस करना चाहते हैं। उनका दावा है कि वे 5 दिसंबर को राष्ट्रपति भवन जाएँगे और अपना पुरस्कार बाहर में रख देंगे।
खिलाड़ियों ने प्रदर्शनकारियों को दिल्ली जाने से रोकने के लिए उन किए गए पानी की बौछार और आँसू गैस के इस्तेमाल पर नाराजगी जताई। प्रदर्शनकारी चार महीने का राशन लेकर आए हैं और विरोध प्रदर्शन जारी रखने के लिए तैयार हैं। सरकार ने मंगलवार (दिसंबर 1, 2020) को उनके साथ बातचीत की लेकिन अभी इसका कोई नतीजा नहीं निकला।
मंगलवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं में से एक ने दावा किया कि पंजाब से 150 पुरस्कार वापस किए जाएँगे।
विरोध प्रदर्शन का ‘अवार्ड वापसी’ स्वरुप
भारत में कई पुरस्कार विजेताओं का मानना है कि उन्होंने सरकार से जो पुरस्कार जीता है वह सरकार के खिलाफ विरोध का एक रूप है। कथित तौर पर ‘बढ़ती असहिष्णुता’ पर कुछ साल पहले इसकी शुरुआत हुई जब फिल्म और साहित्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों के कॉन्ग्रेस समर्थक लिबरलों ने पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को अपना पुरस्कार लौटाने का फैसला किया। तब से यह चलन बन गया है।
हालाँकि, इस बात का कोई आँकड़ा उपलब्ध नहीं है कि ऐसा करने की घोषणा के बाद वास्तव में कितने लोगों ने अपने पुरस्कार और पुरस्कार राशि लौटा दी है। हिंदूफोबिक कवि मुनव्वर राणा और लेखक काशीनाथ सिंह ने अवार्ड वापसी की घोषणा करने के बाद न तो साहित्य अकादमी में अपने पुरस्कार भेजे और न ही 1 लाख रुपए का प्रशस्ति पत्र दिया।
पंजाब के किसानों का आंदोलन
पंजाब के किसान इस साल सितंबर में लागू किए गए केंद्र सरकार के कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, जिसमें सरकार ने किसानों को एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) के बाहर बेचने की अनुमति दी, जिससे बिचौलियों का सफाया हो गया।
केंद्र सरकार ने मौजूदा व्यवस्था के अनुसार मंडियों में उपज की बिक्री के पुराने प्रावधान को जारी रखा है। हालाँकि, पंजाब के किसान चाहते हैं कि सरकार शहर के एपीएमसी और मंडियों को बंद न करे। केंद्र सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि ये बंद नहीं हो रहे हैं, लेकिन अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि किसान पहले से मौजूद कानून के खिलाफ आंदोलन क्यों कर रहे हैं।
इसके अलावा, किसान अब एक कानून चाहते हैं जो एमएसपी (न्यूनतम बिक्री मूल्य) की गारंटी देता हो। एमएसपी हमेशा एक प्रशासनिक निर्णय रहा है, जो प्रत्येक मौसमी फसल के बाद मामले के आधार पर लिया जाता है। हालाँकि, किसान अब प्राइवेट प्लेयर की तरह मंडियों के बाहर के लिए एमएसपी सहित इसके लिए एक कानून चाहते हैं। जबकि यह फ्री मार्केट की अवधारणा के खिलाफ होगा।