बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक लड़की का 10 साल की उम्र से एक लड़की का रेप करने के आरोपित को जमानत देने से इनकार कर दिया है। इतनी छोटी उम्र से रेप का शिकार बनने का बाद यह लड़की आगे चलकर यौन विकार से ग्रस्त होकर निम्फोमेनिक (Nymphomaniac) हो गई है। यानी पीड़िता अब अपनी यौन इच्छा को रोक नहीं पाती और उसके बिना रह नहीं पाती। अदालत ने इसे बेहद भयावह बताया।
बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की एकल पीठ ने सोमवार (29 अप्रैल 2024) को अपने फैसले में आरोपित द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज कर दिया। इसके साथ न्यायमूर्ति चव्हाण ने कहा कि अपराध न केवल एक विवेकशील व्यक्ति की अंतरात्मा को झकझोरने वाला है, बल्कि बेहद अप्रिय भी है। ऐसे भयानक अपराध के कारण पीड़िता एक निम्फोमेनियाक बन गई है।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में शब्दश: पीड़िता द्वारा अपनी आपबीती का वर्णन करते हुए लिखी गई 27 पेज की डायरी का हवाला दिया। अदालत ने कहा, “उसकी मानसिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्थिति और आरोपित के हाथों हुई दरिंदगी के प्रभाव का वर्णन करने के लिए शब्द कम पड़ जाएँगे।”
पीड़िता के पिता ने कहा कि वह दुबई में काम करते थे। इस बात का फायदा आरोपित और उसकी पत्नी ने उठाया। लड़की के माता-पिता ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी साल 2021 में पीड़िता की डायरी से मिली। तब 17 साल की पीड़िता की डायरी उसके कमरे से मिली थी। दरअसल, यह लड़की एक लड़के के साथ भाग गई थी जिसके बाद उसके माता-पिता ने उसके कमरे की तलाशी ली थी।
अपनी डायरी में पीड़िता ने लिखा था कि आरोपित ने उसके साथ तब से रेप करना शुरू किया, जब वह चौथी कक्षा में पढ़ती थी। इस बात से आरोपित की पत्नी भी अवगत है। पीड़िता ने यह भी लिखा है कि आरोपित अक्सर उसे एक टैबलेट खिलाता था, जिसके कारण वह यौन रूप से उत्तेजित हो जाती थी।
इस डायरी को पढ़ने के बाद पीड़िता के माता-पिता ने साल 2021 में आरोपित और उसकी पत्नी के खिलाफ मामला दर्ज करवाया। इस मामले में विशेष अदालत ने आरोपित पत्नी को जमानत दे दी, लेकिन आरोपित पत्नी को जमानत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद आरोपित ने बॉम्बे हाई कोर्ट का रूख किया था।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि आरोपित की पत्नी ने जानबूझकर और गैर-कानूनी कृत्यों में सहायता की और उकसाया। इसलिए वह भी समान रूप से दोषी प्रतीत होती है। पीठ ने यह भी कहा कि लड़की की डायरी में यह भी कहा गया है कि उसने कथित बलात्कार के बारे में अपनी माँ को बहुत पहले ही बता दिया था, लेकिन सामाजिक कलंक के कारण माँ ने कोई कार्रवाई नहीं की।
उच्च न्यायालय ने कहा कि ज्यादातर मामलों में यौन शोषण करने वाले बच्चे के परिचित व्यक्ति होते हैं। ऐसे में आरोपित को जमानत देना पीड़िता के घावों को और अधिक बढ़ाने एवं दुखाने जैसा होगा, जो कि अभी भी पीड़िता के दिमाग, शरीर और आत्मा में ताजा है।