लिबरल मीडिया गिरोह अक्सर उसके पीछे पड़ जाता है, जो उनकी विचारधारा से इत्तिफ़ाक़ न रखता हो। ऐसे लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया जाता है और अगर उसका कोई पूर्वज 100 वर्ष पहले साइकिल से भी गिरा हो, तो उसे भी चीख-चीख कर बताया जाता है। प्रोपेगंडा पोर्टल ‘दी वायर’ (The Wire) में खबर आई कि जम्मू कश्मीर के पत्रकारों ने IPS अधिकारी संदीप चौधरी पर प्रताड़ना का आरोप लगाया है।
उनका आरोप है कि शारीरिक रूप से और फिर सोशल मीडिया पर, दोनों ही माध्यमों से पुलिस अधिकारी ने मीडियाकर्मियों को निशाना बनाया। संदीप चौधरी फ़िलहाल अनंतनाग के SSP हैं। मुदासीर कादरी और फयाज अहमद नाम के पत्रकारों के हवाले से ‘The Wire’ की खबर में दावा किया गया कि प्रदेश में चल रहे DDC चुनाव के मतदान के दौरान ही पुलिस अधिकारी ने पत्रकारों की पोलिंग बूथ पर ही पिटाई की।
साथ ही, पत्रकारों के उपकरण छीन लेने का भी आरोप लगाया गया। पत्रकारों का कहना है कि उन्हें पुलिस थाने ले जाकर कुछ घंटे हिरासत में रखा गया, जहाँ अहमद की तबीयत खराब होने के बाद उसे अस्पताल भेजना पड़ा। पीरजादा आशिक नामक एक पत्रकार ने आरोप लगा दिया कि एक खबर लिखने के कारण उसके खिलाफ भी FIR करवा दी गई थी। एक बशरत मसूद नामक पत्रकार ने कहा कि पत्रकारों को क्या लिखना है, ये पुलिस अधिकारी नहीं तय करेंगे।
‘The Wire’ तो यहाँ तक दावा कर बैठा कि SSP संदीप चौधरी का पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार करने का पुराना इतिहास रहा है। अनुराधा भसीन के बयानों के आधार पर कई दावे किए गए। जबकि ये वही पत्रकार हैं, जिनके संस्थान ‘कश्मीर टाइम्स’ का दफ्तर ही अवैध रूप से कब्जाए गए भवन में चल रहा था। कश्मीर प्रेस क्लब के अध्यक्ष के हवाले से दावे किए गए। बाद में इसे कश्मीर में ‘पत्रकारों की दुर्दशा’ से जोड़ा गया।
‘कश्मीर टाइम्स’ के संस्थापक वेद भसीन को एक प्लॉट दिया गया था, जिसका अधिकार अब वापस ले लिया गया है। इन्हें दो संपत्तियाँ दी गई थीं – एक दफ्तर के लिए और एक दिवंगत वेद भसीन के निवास के लिए। इन्हें खाली करने के लिए पहले ही नोटिस जारी किया जा चुका था। 90 के दशक में ही इस बिल्डिंग को ‘कश्मीर टाइम्स’ को दिया गया था। आज यही संदीप चौधरी के खिलाफ बयानबाजी कर रही हैं।
हमने जब IPS अधिकारी संदीप चौधरी के बारे में थोड़ा और खँगाला तो पता चला कि वो ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘द प्रिंट’ जैसे मीडिया संस्थानों में लेख भी लिखते हैं, जिसके माध्यम से वो आतंकवाद और उसकी पैरवी करने वालों पर करारा प्रहार करते हैं। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में एक लेख के माध्यम से उन्होंने बताया था कि कैसे अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने के बाद से प्रदेश में आतंकी घटनाओं में कमी आई है।
इसके लिए उन्होंने स्थानीय कश्मीरी जनता का ही उदाहरण दिया था। संदीप चौधरी ने बताया था कि कैसे रियाज नाइकू जैसे आतंकियों का महिमामंडन किया गया। बता दें कि मीडिया का एक वर्ग रियाज नाइकू को गणित का शिक्षक बताते हुए उसके महिमामंडन में जुटा हुआ था। पत्रकार कुरतुलुद्दीन रहबर ने सोपियाँ के तुर्कवंगम से नवंबर 4, 2020 को एक स्टोरी की थी, जिसमें दो लड़कों के जन्मदिन और उनमें से एक के नाम में उन्होंने गलती की थी।
ये वही पत्रकार हैं, जिन्होंने ‘The Wire’ में IPS संदीप चौधरी के ‘पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार’ को लेकर लेख लिखा है। संदीप चौधरी ने असल में पत्रकार की इन गलतियों की तरफ ध्यान दिलाया था। उसने अपने लेख में जब की घटना का जिक्र किया है, एचएम कमांडर आमिर खान के गाँव लिवर में भारी पत्थरबाजी हो रही थी और तीन पत्रकारों का एक समूह लड़कों को कह रहा था कि वो एक खास राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ताओं को पोलिंग बूथ पर न आने दें।
जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया जा रहा था, उन्होंने पुलिस से शिकायत की, जिसके बाद पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने को मजबूर होना पड़ा और उक्त पत्रकारों से भी कह दिया गया कि वो लड़कों को न भड़काएँ। पुलिस के बार-बार निवेदन के बावजूद वो नहीं माने तो उन्हें दछिनिपोरा क्षेत्र के उस संवेदनशील गाँव से हटाना पड़ा और इस प्रक्रिया में किसी भी पत्रकार को नुकसान नहीं पहुँचाया गया।
कुछ लोगों का कहना है कि जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ संदीप चौधरी खुल कर आवाज़ उठाते रहे हैं। मई 2019 में हुए एक एनकाउंटर को लेकर ‘The Wire’ में रघु कर्नाड ने एक लेख लिखा था, जिसमें PDP प्रवक्ता ने कहा था कि चुनाव से पहले एनकाउंटर का अर्थ है लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हत्या। ये एनकाउंटर शोपियाँ में हुआ था। बुरहान वानी का पिट्ठू लतीफ़ टाइगर नामक आतंकी इस एनकाउंटर में मार गिराया गया था।
IPS संदीप चौधरी ने इस भ्रामक खबर को लेकर आपत्ति जताई थी। वो सोशल मीडिया के माध्यम से ऐसे तत्वों पर नजर रखते हैं, इसीलिए भी ये मीडिया गिरोह चिढ़े रहते हैं। जब ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने आतंकियों के लिए ‘बंदूकधारी’ शब्द का प्रयोग किया, तब भी उन्होंने आपत्ति जताई थी। 27 नवंबर 2020 की इस खबर में बाद में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ‘Gunmen’ की जगह ‘मिलिटेंट्स’ लिख दिया। इससे साफ़ है कि जब भी इस तरह की गलत खबरों पर कोई आपत्ति जताता है, ‘The Wire’ उस अधिकारी के खिलाफ व्यक्तिगत खुन्नस के साथ रिपोर्टिंग करता है।
उन्होंने ‘The Print’ के लिए लिखे गए एक लेख में बताया था कि कैसे पश्चिमी मीडिया रियाज नाइकू को हीरो की तरह पेश कर रहा है। उन्होंने अपना अनुभव साझा किया था कि जब वो 2008-19 तक शोपियाँ में पदस्थापित थे, तब उन्होंने कई क्रूरतम हत्याएँ देखी थीं और उनके पीछे मीडिया के इसी ‘गणित के शिक्षक’ का हाथ था। उन्होंने पूछा था कि इन आतंकियों की मौत पर हंगामा मचाने वाले तब क्यों शांत रहते हैं, जब उनके द्वारा अनगिनत हत्याएँ की जाती हैं?
उन्होंने कहा कि पीरजादा आशिक ने भी समाचार पत्र ‘The Hindu’ में एक फेक न्यूज़ प्रकशित की थी, जिसके बाद उसे पूछताछ के लिए अनंतनाग बुलाया गया था। इस खबर में पीरजादा ने आरोप लगाया था कि तीन आतंकियों की लाशें कब्र से निकाली जा सकती हैं। इस खबर से कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने की संभावना थी। इस लेख में एक अधिकारी के माफ़ी माँगने की बात भी थी, लेकिन वो कौन है, उसने किससे माफ़ी माँगी – कोई डिटेल नहीं दिया गया।
इससे साफ़ है कि ‘The Wire’ ने आईपीएस संदीप चौधरी को इसीलिए निशाना बनाया है, क्योंकि वो आतंकी को आतंकी कहने की वकालत करते हैं और मीडिया में आतंकियों के महिमामंडन के खिलाफ रहे हैं। पत्रकारों पर युवकों को उकसा कर पत्थरबाजी कराने और एक विशेष राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने का आरोप लगा तो उलटा पुलिस अधिकारी के खिलाफ ही लेख लिख दिया गया। ये लोग जम्मू कश्मीर को शांत नहीं देख सकते।
आपको याद होगा कि ‘द वायर’ ने रियाज नायकू की मौत की खबर तो प्रकाशित की थी, लेकिन कहीं भी यह जिक्र नहीं किया कि वह एक आतंकवादी था, जिसका पहला लक्ष्य भी हर दूसरे आतंकी की तरह ही जिहाद था। घाटी में मौजूद आतंकवादियों का महिमामंडन और उन्हें पीड़ित, बेचारा, आदि-आदि साबित करने का यह अभियान बरखा दत्त जैसे कथित पत्रकारों से शुरू हुआ था। इस कतार में फिर ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को एक ‘आदर्श पिता’ की तरह पेश करने वाले ‘द क्विंट’ आदि भी शामिल होते रहे।