ससुराल के क्रूर व्यवहार से तंग आकर 21 साल पहले कीटनाशक पीकर आत्महत्या करने वाली मृतका वैशाली के मामले पर बीते बुधवार बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई की। इस दौरान मृतका की सास मंदाकिनी की सजा को अदालत द्वारा बरकरार रखा गया और उसके पति दिनेश को भी आईपीसी की धारा 498 के तहत दोषी पाया गया। जिसके आधार पर उसके खिलाफ़ सुनवाई के लिए नोटिस जारी हुआ।
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की बेंच ने की। अमेरिका की मैरी पॉलिन लोरी (जिन्हें महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने की वकालत करने के लिए जाना जाता है) का हवाला देते हुए अदालत ने कहा ‘एक महिला होने में दर्द है, लेकिन इसमें गर्व भी है।’ फैसले में कहा गया है, “मृतक वैशाली ने कष्टों का सामना किया, लेकिन वह एक जननी होने के गर्व का अनुभव करने के लिए जीवित नहीं रह पाई, उसने पहले ही अपने जीवन की लौ को बुझा दिया और दुनिया छोड़कर चली गई।”
क्या है मामला?
गौरतलब है कि वैशाली की शादी 8 मई 1998 को दिनेश से हुई थी । जिसके 6 महीने बाद ही उसने जीवन से तंग आकर डूनेट मेथनॉल (कीटनाशक) पीकर अपना जीवन समाप्त कर लिया था।
वैशाली के पिता ने शिकायत दर्ज करवाते हुए उसकी सास मंदाकिनी, ननद रुपाली और पति दिनेश पर अपनी बेटी के साथ क्रूर व्यवहार करने का आरोप लगाया था। पिता के मुताबिक वैशाली ने उन्हें बताया कि सास उसे परेशान करती और कहती है कि वह कभी नहीं चाहती थी उनके बेटे की शादी उससे हो। इसके अलावा वैशाली की सास उससे 2 लाख रुपए की भी माँग करती थी।
वैशाली के पिता दादा साहेब ने जानकारी देते हुए बताया था कि 4 नवंबर को जब वह अपनी बेटी से मिलने अस्पताल गए तो वह बेहोश थी। जब उन्होंने दिनेश से पूछा तो उसने बताया कि वैशाली का उसकी (दिनेश) माँ और बहन से विवाद हुआ था। जिसके बाद वैशाली ने कीटनाशक पी लिया। जाँच से पता चला कि मौत डूनेट मेथनॉल पीने के कारण हुई।
आईपीसी की धारा 498-ए, 304 बी और 306 के तहत मामला दर्ज किया गया। जाँच रिपोर्ट आने के बाद इसमें 302 को भी जोड़ा गया। लेकिन कुछ समय बाद, बाकी आरोपितों को इस मामले में धारा 302 और 304 बी के दंडनीय अपराधों से बरी कर दिया गया और मंदाकिनी को दोषी ठहराते हुए 3 साल की सजा सुनाई गई।
हाई कोर्ट का निर्णय
अब कोर्ट ने 21 साल बाद इस मामले में लिए गए निर्णय की दोबारा से जाँच करते हुए कहा है कि कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले का अवलोकन किया है। जिसमें उनका विचार है कि उस दौरान मृतक के पति दिनेश के ख़िलाफ़ उत्पीड़न के सबूतों पर कार्रवाई न करके सत्र न्यायाधीश ने बहुत बड़ी गलती की थी। जबकि अभियोजन पक्ष का हमेशा से कहना रहा है कि मृतका को उसकी सास के अलावा उसके पति दिनेश द्वारा भी उत्पीड़ित किया जा रहा था, जिसके कारण वह इन लोगों की शारीरिक और मानसिक क्रूरता की शिकार हो रही थी।
जस्टिस डांगरे की अदालत ने मामले की सुनवाई में कहा कि मौजूद सबूत बताते हैं कि वैशाली पर कठोरता और अत्याचार किए जा रहे थे, जिसके कारण उसने जीने की उम्मीद खो दी थी। उसकी सास उससे दुर्व्यवहार करती थी और उसका पति चुप्पी साधे रखकर अपनी माँ का साथ देता था, जो वैशाली के लिए शारीरिक और मानसिक यातना देना जैसा था। इन्हीं चीजों को लेकर वैशाली के मन में नकारात्मक विचार आए और उसने मौत को गले लगाना उचित समझा।
कोर्ट का कहना है कि वैशाली के पति दिनेश की उसके उत्पीड़न में एक बड़ी भूमिका थी, जिसने उसे आत्महत्या के लिए उकसाया। लेकिन मामले की सुनवाई में सत्र न्यायाधीस से ये पक्ष छूट गया और उन्होंने दिनेश को 498 ए आईपीसी धारा के दंडनीय अपराध से बरी कर दिया। अब कोर्ट ने दिनेश के खिलाफ सुनवाई के आदेश दिया हैं।