Friday, November 22, 2024
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अभिनंदन से पहले IAF के 3 पायलट भी लौट चुके हैं पाकिस्तान से, पढ़ें इनकी कहानी

स्थानीय लोगों के पूछने पर वह सबको अपना नाम मंसूर अली बता देते थे और पाकिस्तानी रुपया दिखा देते थे। लेकिन एक पाकिस्तानी रेंजर ने उन्हें कलमा पढ़ने कहा, जब वह नहीं पढ़ पाए तो उन्हें गिरफ्तार करके पाकिस्तानी सेना को सौंप दिया।

भारतीय वायुसेना विंग कमांडर अभिनंदन आज (मार्च 1, 2019) स्वदेश लौट रहे हैं। यह मौक़ा जितना देश को गौरवान्वित करने वाला है उतना ही भावुक करने वाला भी है। पाकिस्तान द्वारा हिरासत में लिए जाने के बाद सोशल मीडिया के कारण हमें अभिनंदन की सकुशलता की ख़बरें लगातार मिल रही हैं। इससे हमारे मन में उठने वाले सवालों के जवाब के लिए हमें किसी प्रकार के माध्यम पर आश्रित नहीं रहना पड़ा।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अभिनंदन से पहले भी भारत-पाक के युद्ध में सेना के कुछ जवान पाकिस्तान पहुँच गए थे। उस समय सोशल मीडिया के अभाव में उनकी कुशलता की सूचनाओं के लिए इंतज़ार करना पड़ता था। नवभारत टाइम्स में छपी रिपोर्ट में आज अभिनंदन की घर वापसी के मौक़े पर सेना के उन पूर्व जवानों ने अपने अनुभवों को साझा किया।

नचिकेता

1999 में नचिकेता पाक की हिरासत में 8 दिन रह चुके हैं और नचिकेता से पहले 1971 में कॉमडोर भार्गव को पाक ने 1 साल बाद छोड़ा था। इसी तरह 1965 में केसी करियप्पा पाक की हिरासत में चार महीने तक रहे।

इन तीनों मामलों में पाकिस्तान द्वारा जेनेवा संधि का उल्लंघन किया गया था। अभिनंदन की वापसी पर नचिकेता कहते हैं, “पायलट का दिल हमेशा कॉकपिट में होता है। विंग कमांडर अभिनंदन वापस आएँगे और जल्द ही कॉकपिट को लौटेंगे।” साल 2017 में भारतीय वायु सेना से रिटायर हुए नचिकेता अब बतौर कमर्शियल पायलट होकर सेवा प्रदान कर रहे हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी के साथ IAF पायलट नचिकेता

1999 में कारगिल युद्ध के दौरान फ्लाइट लेफ्टीनेंट रहे नचिकेता मिग-27 में सवार थे। जो कि क्रैश होकर पाक अधिकृत कश्मीर में जा गिरा था। नचिकेता इस घटना के दौरान पाकिस्तानी फौज पर हवा से फायर कर रहे थे। इसलिए जैसे ही वह पाक आर्मी के कब्जे में आए, उन्होंने नचिकेता को मारना शुरू कर दिया। नचिकेता ने अपने अनुभवों को शेयर करते हुए बताया कि इस दौरान उन्हें मार डालने की भी कोशिश की गई। उनकी जान एक वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी द्वारा बचाई गई थी।

नचिकेता बताते हैं कि उन्हें काफ़ी प्रताड़ित किया था लेकिन सेना में मिले प्रशिक्षण के कारण वे इतने मज़बूत थे कि उन्होंने कुछ नहीं बोला।

जे. एल. भार्गव

1971 के युद्ध में पकड़े गए फ्लाइट लेफ्टिनेंट भार्गव ने कहा कि यदि विंग कमांडर का फोटो पाकिस्तान के स्थानीय लोगों द्वारा नहीं शेयर किया जाता था तो साबित करना नामुमकिन हो जाता था कि वह पाकिस्तान में ज़िंदा गिरे थे। भार्गव अपना समय याद करते हुए बताते हैं कि वहाँ पर सोने नहीं दिया जाता, सब जानकारी माँगते रहते हैं।

वो बताते हैं कि उनके हर सवाल पर न कहना कभी-कभी बेहद मुश्किल हो जाता था। उनसे स्क्वॉड्रन के पायलट्स के बारे में पूछा जाता था और इस पर वो अपने भाई-बहन का नाम बताते थे। भार्गव बताते हैं कि एक बार जब उनसे पूछा गया कि मेरी स्क्वॉड्रन का बेस्ट पायलट कौन है, तो उन्होंने कहा कि वह आपके सामने बैठा है।

भार्गव बताते हैं कि पायलट को एक सर्वाइवर किट, एक पिस्तौल और पाकिस्तानी रुपए दिए जाते हैं। जब 5 दिसंबर 1971 को उनका HF-24 में पाक में गिरा तो उन्होंने फौरन उससे बाहर छलांग लगा ली। नीचे गिरते ही उन्होंने अपना सामान लिया और जी सूट को छिपा दिया। घड़ी को तुरंत पाकिस्तानी स्टैंडर्ड टाइम पर सेट किया। तेज बुद्धि के इस्तेमान से वह 12 घंटे तक अपने भारतीय होने की पहचान छिपाने में सफल रहे थे।

स्थानीय लोगों के पूछने पर वह सबको अपना नाम मंसूर अली बता देते थे और किसी को शक होता था तो पाकिस्तानी रुपया दिखा देते थे। इस तरह उनके 12 घंटे बीते लेकिन फिर एक पाकिस्तानी रेंजर ने उन्हें कलमा पढ़ने को बोल दिया। जब वह नहीं पढ़ पाए तो उन्हें गिरफ्तार करके पाकिस्तानी सेना को सौंप दिया।

के सी करियप्पा

1965 में एयर मार्शल के सी करियप्पा ने भी अपना समय याद करते हुए कहा कि जंग के बाद वह 4 महीने तक पाकिस्तानी सेना की कैद में रहे थे।

उन्होंने बताया कि वहाँ पर रहते हुए उन्हें हमेशा एक डर सताता रहता था। उन्हें कुछ भी नहीं बताया जाता था कि जंग चल रही है या खत्म हो गई। बता दें कि जंग के आखिरी दिन करियप्पा के जहाज को गिराया गया था जिसके बाद वह सीधे पाक सेना के बीच गिरे थे।

करियप्पा विंग कमांडर अभिनंदन के मामले में सोशल मीडिया से काफ़ी नाराज़ हैं। उनका कहना है, “विंग कमांडर ने पाकिस्तानी सेना को कुछ भी बताने से इनकार कर दिया लेकिन नेटिजन्स (इंटरनेट यूजर्स) ने सारी जानकारियाँ सार्वजनिक कर दीं।”

हालाँकि, आज सोशल मीडिया के होने से हमें अभिनंदन की पल-पल की ख़बरें मिलती रहीं लेकिन करियप्पा का मानना है कि सोशल मीडिया असंवदेनशील है और इसका असर क़ैद हुए जवान के परिवार वालों के लिए ख़तरनाक होता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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